नई दिल्ली: सरकार सुप्रीम कोर्ट में आज एक पुनर्विचार याचिका दायर कर एससी-एसटी के कथित उत्पीड़न को लेकर तुरंत होने वाली गिरफ्तारी और मामले दर्ज किए जाने को प्रतिबंधित करने के शीर्ष न्यायालय के आदेश को चुनौती देगी।
दरअसल, इस कानून का लक्ष्य हाशिये पर मौजूद तबके की हिफाजत करना है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में आज सोमवार को दायर की जाने वाली पुनर्विचार याचिका में यह कहे जाने की संभावना है कि शीर्ष न्यायालय का आदेश अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के प्रावधानों को कमजोर करेगा।
सूत्रों ने बताया कि मंत्रालय यह भी कह सकता है कि हालिया आदेश से कानून का डर कम होगा और इस कानून का उल्लंघन बढ़ सकता है। गौरतलब है कि शीर्ष न्यायालय ने इस कानून के तहत तुरंत होने वाली गिरफ्तारी और आपराधिक मामले दर्ज किए जाने को हाल ही में प्रतिबंधित कर दिया था।
दरअसल, यह कानून भेदभाव और अत्याचार के खिलाफ हाशिये पर मौजूद समुदायों की हिफाजत करता है। लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान और केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत के नेतृत्व में राजग के एसएसी और एसटी सांसदों ने इस कानून के प्रावधानों को कमजोर किए जाने के शीर्ष न्यायालय के फैसले पर चर्चा के लिए पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। गहलोत ने उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका के लिये हाल ही में कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को एक पत्र लिखा था।
उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि यह आदेश इस कानून को निष्प्रभावी बना देगा और दलितों एवं आदिवासियों को न्याय मिलने को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा। इस बीच, गहलोत ने शीर्ष न्यायालय के फैसले का विरोध कर रहे विभिन्न संगठनों और लेागों से शुक्रवार को अपना प्रदर्शन वापस लेने की अपील की। वहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने फैसले पर पुनर्विचार की मांग करते हुए कहा कि मूल अधिनियम को बहाल किया जाना चाहिए।