सुप्रीम कोर्ट ने आज भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया से जुड़े मामले को 5 सदस्यीय संसदीय पीठ को भेज दिया है। एक याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयुक्तों की नियुक्त प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की मांग की थी। याचिका में मुख्य चुनाव आयुक्त सहित अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोलेजियम प्रक्रिया को अपनाने की अपील की गई थी।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण की दलीलों पर विचार किया और कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का मुद्दा एक वृहद संविधान पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए। पीठ चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए पारदर्शी चयन प्रक्रिया की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह याचिका अनूप बरनवाल नामक व्यक्ति ने दाखिल की है। हालांकि केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा अपने पद का दुरुपयोग करने का कोई भी मामला अब तक सामने नहीं आया है। उन्होंने इस पद का मान बढ़ाने वाले टी एन शेषन एवं अन्य व्यक्तियों के नाम का संदर्भ भी दिया।
बता दें कि इस समय मुख्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्त सरकार करती है। संविधान के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भारत का राष्ट्रपति करता है। मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल ६ वर्ष या ६५ साल, जो पहले हो, का होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त को संसद द्वारा महाभियोग के जरिए ही हटाया जा सकता हैं। ऐसे में इस महत्वपूर्ण पद पर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगते रहते हैं।
वहीं कोलेजियम की बात करें तो भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश का चयन इसी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। अब इसी प्रक्रिया को दूसरे संवैधानिक पदों के लिए भी करने की मांग उठ रही है। अब 5 जजों की संवैधानिक पीठ इस पर फैसला सुनाएगी।