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पीली गर्दन वाली चिड़िया ने बदली सालिम अली की जिंदगी, जानें इनके बर्डमैन ऑफ इंडिया बनने की कहानी

जहां कहीं भी पक्षियों के अध्ययन और अवलोकन की बात हो और डॉ. सालिम अली का जिक्र ना हो, यह असंभव है

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : November 12, 2017 20:08 IST
salim ali
salim ali

नई दिल्ली: जहां कहीं भी पक्षियों के अध्ययन और अवलोकन की बात हो और डॉ. सालिम अली का जिक्र ना हो, यह असंभव है। सालिम अली हमारे देश के ही नहीं बल्कि दुनिया भर के पक्षी वैज्ञानिक के रूप में प्रसिद्ध हुए। सालिम अली के प्रयासों से परिचित कोई भी आज भी राजस्थान के भरतपुर स्थित केवलादेव बर्डसेंचुरी में घूमते हुए सालिम अली को वहां महसूस कर सकता है। आज उनका 121वां जन्मदिन है।

भारत में हो या संसार भर में कहीं भी, इंसान ने अपने मनोरंजन के लिए चिड़ियाघर बना रखे हैं, जहां जंगल के तमाम अनोखे जानवरों को मनोरंजन के उद्देश्य से कैद कर प्रदर्शित किया जाता है। वहीं सालिम अली जो खुद कभी बहुत बड़े शिकारी बनना चाहते थे लेकिन बाद में उनकी दिलचस्पी प्राकृतिक पर्यावरण में जीवित पक्षियों में हो गई थी। वो एक ऐसी व्यवस्था करना चाहते थे कि किसी पशु-पक्षी को कैद करके गुलाम बनाने के बजाए इंसान उन्हें खुद पर विश्वास करने दें और उनका संरक्षण करें।

पंछियों का रहनुमा

  • भरतपुर बर्ड सेंचुरी के बनने में इनकी बहुत बड़ी भूमिका है।
  • पक्षियों के लिए सर्वे करने वाले वो हिंदुस्तान के शुरुआती लोगों में हैं।
  • मोटरसाइकिल को लेकर खास दिवानगी रखते थे। उनके पास एक NSU, तीन हार्ले डेविडसन, एक डगलस, एक स्कॉट, एक न्यू हडसन और एक जेनिथ बाइक थी।
  • 10 साल की उम्र में एक चिड़िया को मार गिराने पर पक्षियों को लेकर दिलचस्पी जागी। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के डबल्यू एस मिलार्ड की मदद से उन्होंने पता लगाया कि यह पीली गर्दन वाली चिड़िया थी।

आइए जानते है पंछियों के रहनुमा सालिम अली की कहानी-

सालिम अली के जीवन में एक घटना घटी थी जब वो मात्र 10-11 साल के थे। उस घटना ने उनकी जीवनधारा में ही बदलाव ला दिया। एक बार उनकी बंदूक का क छर्रा एक गौरेया जैसी पक्षी बया को लगा र वह नीचे गिर पड़ी। उन्होंने जब पास जाकर देखा तो वह आम गौरेया से कुछ अलग दिखी। उसकी गर्दन पर एक पीले रंग का धब्बा था। सालिम अली तुरंत उस पक्षी को अपने चाचा अमिरुद्दीन के पास लेकर गये ताकि उनका शंका समाधान हो सके पर चाचा इसमें असमर्थ थे तो उन्होंने सालिम को पक्षी के साथ बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सचिव डब्ल्यू. एस. मिलार्ड के पास भेज दिया।

मिलार्ड छोटे सालिम की इस जिज्ञासा से खुश हुए। उन्होंने न केवल सालिम को उस पक्षी की पहचान सोनकंठी गौरैया के रूप में बताई साथ ही उनको भारत के दूसरे विशिष्ट पक्षी भी दिखाए। बाद में उन्होंने सालिम अली को 'कॉमन बर्ड्स ऑफ मुंबई' नाम की एक किताब भी दी। सालिम अली ने अपनी आत्मकथा 'फॉल ऑफ ए स्पैरो' में इस घटना को अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट माना है जहां से उन्होंने पक्षियों के अध्ययन को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।

सालिम अली लंबे वक्त से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे और जब 1987 में उनका निधन हुआ, उस समय वह 91 वर्ष के थे। सालिम अली के नाम से कई पक्षी विहारों और रिसर्च सेंटर के नाम रखे गए हैं। उनकी लिखी सबसे प्रचलित किताब द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स है।

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