नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट आज केरल में स्थित सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति के खिलाफ दायर समीक्षा याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए इसे बड़ी बेंच में भेज दिया। 5 जजों के बेंच ने 3-2 के बहुमत से सबरीमाला विवाद को 7 जजों की बेंच को ट्रांसफर किया। सबरीमाला विवाद पर फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा जब तक धार्मिक नियम नैतिकता के खिलाफ न हो तब तक उनकी अनुमति होती है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 64 रिव्यू पेटिशन के मामले चल रहे थे। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने आज सुबह 10.30 बजे इस मामले में फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ 28 सितंबर, 2018 के फैसले के बाद हुये हिंसक विरोध के बाद 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित कुल 65 याचिकाओं पर फैसला सुनाई।
हर साल की तरह 16 नवंबर को एक बार फिर से सबरीमाला मंदिर के दरवाजे भक्तों के लिए खुलने वाले हैं और उससे दो दिन पहले यानी आज सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। एक दो नहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ 64 रिव्यू पीटिशन डाले गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में अपने फैसले में कहा था कि ये महिलाओं की समानता का मामला है इसलिए 10 से 50 साल की महिलाओं पर मंदिर में प्रवेश की पाबंदी अवैध है। इसके बाद केरल में बवाल मच गया था। राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने पर अड़ी थी तो कई सियासी पार्टियां सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतर आई थी। हिंदू संगठन मंदिर के बाहर पहरा देने लगे।
कोर्ट के फैसले के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले एक बार फिर से मंदिर के बाहर डट गए हैं इसलिए केरल के सीएम को खुद जाकर सुरक्षा का जायजा लेना पड़ा। केरल में एक बार फिर सियासी और धार्मिक दोनों नजरियों से उबाल दिख रहा है। बीजेपी का कहना है कि हिंदुओं की आस्था पर सुप्रीम कोर्ट का ये प्रहार है, और इसके बाद 64 रिव्यू पीटिशन डाले गए।
दरअसल सबरीमाला मंदिर में भगवान अयप्पा की पूजा होती है। भगवान अयप्पा को शिव और मोहिनी का पुत्र माना गया है। भगवान अयप्पा का एक नाम हरिहरपुत्र ब्रह्मचारी भी है। ब्रह्मचारी होने की वजह से 10-50 साल की महिलाएं सदियों से भगवान अयप्पा का दर्शन नहीं करती हैं। 800 साल से मंदिर में ये परंपरा चली आ रही है।
कुछ महिला संगठनों ने इस परंपरा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिस पर कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना महिलाओं की आस्था का अपमान है। इस फैसले ने केरल की सियासत में एक नई लकीर खींच दी। पिनराई विजयन वाली एलडीएफ सरकार मानती है कि फैसले का विरोध करके हिंदू वोट को बटोरना है और बीजेपी कहती है हर फैसले से ऊपर आस्था और परंपरा है।
वहीं सबरीमला मंदिर की व्यवस्था देखने वाले त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने अपने रूख से पलटते हुये मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने की कोर्ट की व्यवस्था का समर्थन किया था। बोर्ड ने केरल सरकार के साथ मिलकर संविधान पीठ के इस फैसले पर पुनर्विचार का विरोध किया था। बोर्ड ने बाद में सफाई दी थी कि उसके दृष्टिकोण में बदलाव किसी राजनीतिक दबाव की वजह से नहीं आया है।
कुछ दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बोर्ड ने केरल में सत्तारूढ़ वाममोर्चा सरकार के दबाव में न्यायालय में अपना रूख बदला है। इस मसले पर केरल सरकार ने भी पुनर्विचार याचिकाओं को अस्वीकार करने का अनुरोध किया है। केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश के मामले में विरोधाभासी रूख अपनाया था।