रुद्राक्ष का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व है जिसे लेकर ऐसी मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति भगवान शंकर की आँखों के जलबिंदु से हुई है। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। माना जाता है कि रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। ऐसा भी माना जाता है कि रुद्राक्ष शिवजी का मनपसंद आभूषण है। कहते है की रुद्राक्ष के बिना शिवजी का श्रंगार ही अधूरा होता है।
पद्म पुराण, देवी भागवत, रुद्राक्ष जबाला उपनिषद जैसे अनेक प्राचीन ग्रंथों में रुद्राक्ष की अति-अद्भुत एवं आश्चर्यजनक महत्ता का वर्णन किया गया है। रुद्राक्ष के मुखो की संख्या रुद्राक्ष की फलश्रुति निर्धारित करती है। वैसे तो 1 मुखी से 21 मुखी तक के सभी रुद्राक्ष लोकप्रिय है किन्तु 7 मुखी रुद्राक्ष आज के इस आधुनिक दौर में प्रत्येक मनुष्य के लिए अति आवश्यक है, इसलिए हम यहाँ पर 7 मुखी रुद्राक्ष के फायदों के बारे में आपको बताने जा रहे है।
7 मुखी रुद्राक्ष की अधिपति देवता है श्री महालक्ष्मी तथा इस रुद्राक्ष का शुक्र ग्रह पर अधिपत्य होता है (कुछ विद्वान इसका संबंध शनि से भी जोड़ते है जो सही नहीं है।) 7मुखी रुद्राक्ष धारण करने से धन-सम्पदा प्राप्त होती है। इस रुद्राक्ष को धारण करने वाले के ऐश्वर्य में लगातार वृद्धि होती है तथा गुप्तधन की प्राप्ति या अचानक धनलाभ हो सकता है। उन्नति के नए-नए अवसर तथा अल्प प्रयास में सभी ऐशो-आराम प्राप्त हो सकते है। जिन लोगों के माली हालात ठीक नहीं चल रहे हैं या जिनके पास अच्छी आय के बावजूद कोई बचत नहीं हो पाती वह सारे लोग 7 मुखी रुद्राक्ष जरूर धारण करें।
7 मुखी के साथ 8 मुखी रुद्राक्ष धारण करना अत्यंत शुभ फलदायी होता है क्योंकी 7मुखी की देवता श्री महालक्ष्मीजी व 8 मुखी के देवता श्री गणेशजी है और हिन्दू धर्म में लक्ष्मी और गणेश के एक साथ पूजा करने का महत्त्व अनन्यसाधारण माना गया है। विघ्नहर्ता गणेशजी की कृपा से 8 मुखी रुद्राक्ष धारणकर्ता की सभी बाधाएं दूर कर सफलता लाती है। एक बार बाधाएं दूर हो गयी तो लक्ष्मी प्राप्ति का मार्ग स्वयं ही प्रशस्त हो जाता है।
स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग 7 मुखी, 3 मुखी और 5 मुखी रुद्राक्ष का मेल धारण कर सकते है। 7 और 3 मुखी रुद्राक्ष मिलकर पाचन क्रिया में सुधार लाते है। पेट,खामियां और यकृत को मजबूती देते है। 5 मुखी रुद्राक्ष रक्तचाप को नियंत्रित करता है। अगर हाजमा ठीक है और रक्तचाप नियंत्रित है तो अन्य रोग भी दूर रहते है। हड्डीयों की कमजोरी, गठिया आदि में 7 मुखी रुद्राक्ष रहत दिलाता है। 7 मुखी, 3 मुखी और 12 मुखी रुद्राक्ष का मेल मणिपुर चक्र जागृत करने सक्षम होता है। अगर सिर्फ 7 मुखी धारण करना है तो कम से कम 3 मणि धारण करने चाहिए।
पद्म पुराण के अनुसार 7 मुखी रुद्राक्ष के मुखो में अनंत, कर्कट, पुण्डरीक, तक्षक, शंखचूड़,वशोशिबन व करोष आदि का वास होता है इसलिए धारणकर्ता सर्पभय से मुक्त हो जाता है। इसमें ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वराही, इन्द्राणी, चामुंडा नामक सप्तमातृका भी वास करती है जो धारणकर्ता पर सभी सांसारिक सुखों की वर्षा करती है। इसमें मारीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलत्स्य, पुलहा, वशिष्ठ व ऋतू यह सप्तर्षि भी वास करते है जो धारक को आसीम ज्ञान एवं इस जगत में सम्मान प्रदान करते है।
नाम, प्रसिद्धि, धन और प्रगति की चाहत रखने वाले सभी नर-नारी यह रुद्राक्ष धारण कर सकते है साथ ही अपनी तिजोरी में भी रख सकते है। रुद्राक्ष विशेषज्ञ और इस संकेत स्थल के संस्थापक, श्री. नितिन देशमुख के मतानुसार उचित परिणाम के लिए रुद्राक्ष वास्तविक होना चाहिए और विधिवत तरीके से उसकी प्राणप्रतिष्ठा व मंत्रसिद्धि की जानी चाहिए। (आजकल नकली रुद्राक्ष बड़े पैमाने पर बिक रहे हैं इसलिए सावधान रहें)। नेपाल से आने वाले रुद्राक्ष के परिणाम सर्वश्रेष्ठ व शीघ्र होते है। इसके अलावा इंडोनेशिया, श्रीलंका और भारत में भी रुद्राक्ष के वृक्ष पाए जाते है। रुद्राक्ष आंवले के आकार का (15 से 18 mm का) होना चाहिए और दिखने में तेजस्वी होना चाहिए। परिपक्व (Mature) होना चाहिए और मुख सुस्पष्ट रूप से नजर आने चाहिए।
हफ्ते में एक बार रुद्राक्ष को स्वच्छ करना जरूरी होता है। महीने में एक बार इसका गंगाजल से या शुद्ध पानी से अभिषेक करना चाहिए। रात को सोते समय रुद्राक्ष उतारकर किसी साफ़ सुथरी और पवित्र जगह पर रख देना चाहिए। (कुछ लोग इसे तकिये के नीच रखकर सोते है जो की उचित नहीं है)। सुबह स्नानादि कार्य से निपटकर ॐ नम: शिवाय का एवं इस रुद्राक्ष के बीजमंत्र का मंत्रोचारण करते हुए धारण करना चाहिए। इस रुद्राक्ष का बीज मन्त्र है: ॐ हुं नम:
शुद्ध मन, अटूट श्रद्धा और दृढ़ विश्वास सहित इसे धारण करने से यह रुद्राक्ष धारणकर्ता को शिवशम्भो का कृपापात्र बनाते हुए अत्यंत शीघ्रता से मनोवांछित फल देता है।