नई दिल्ली | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एक बार फिर पश्चिम बंगाल पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इस बार आरएसएस सुप्रीमो मोहन भागवत खुद 'मिशन बंगाल' की बागडोर संभाल रहे हैं। भागवत राज्य में अपने तीन दिवसीय दौरे के लिए शनिवार को रवाना हो रहे हैं। इस यात्रा के दौरान उनके द्वारा राज्य के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर चर्चा करने की उम्मीद है। वह बंगाल के कुछ प्रमुख लोगों से भी मिलेंगे, जिनमें से कुछ लंबे समय तक संघ के काम से जुड़े रहे हैं। यह हालांकि अभी तक स्पष्ट नहीं है कि वह व्यक्तिगत रूप से उनसे मिलने जाएंगे या आरएसएस कैडर के साल्ट लेक निवास में एकत्रित होने वाले समूह में उनसे मिलेंगे।
भागवत रविवार को एक महत्वपूर्ण संगठनात्मक बैठक की अध्यक्षता करेंगे। यह बैठक संघ के क्षेत्रीय मुख्यालय केशव भवन में होगी। इस दौरान बंगाल के चुनिंदा आरएसएस नेताओं के साथ चर्चा होगी कि कैसे बंगाल में आरएसएस का विस्तार किया जाए। अब तक विश्व हिंदू परिषद (विहिप), आरएसएस के एक प्रमुख सहयोगी के तौर पर राज्य में बेहद सक्रिय रहा है। खासकर पुरुलिया, बांकुरा और मेदिनीपुर जैसे जिलों में इस संगठन की पकड़ रही है। इसका परिणाम पंचायत चुनाव में भी दिखाई दिया, जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पुरुलिया का चुनाव जीता और बाद में 2019 के आम चुनाव में राज्यभर में 18 सीटों पर जीत हासिल की।
भागवत की यात्रा और राज्य में संगठन का विस्तार करने के लिए उनकी बैठक को एक संकेत के रूप में माना जा रहा है कि आने वाले महीनों में बंगाल में आरएसएस की गतिविधियों में वृद्धि होगी। सूत्रों का कहना है कि आरएसएस प्रमुख पश्चिम बंगाल के प्रत्येक ब्लॉक में कम से कम एक शाखा चाहते हैं। इसके अलावा जिस ब्लॉक में पहले से ही शाखा है, वहां इनकी संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
भागवत किसी भी जनसभा को संबोधित नहीं करेंगे। जनवरी 2017 में पुलिस ने कोलकाता में आरएसएस प्रमुख की रैली के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया था। इसके अलावा एक सरकारी सभागार ने भी आरएसएस कार्यक्रम के लिए बुकिंग रद्द कर दी थी। जिस तरह से तृणमूल कांग्रेस और भाजपा बंगाल में एक भीषण राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं, उस दृष्टि से भागवत की यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।