नई दिल्ली: जहां तक नज़रें जाती है.. रेत और सिर्फ रेत नजर आती है.. लेकिन ये कोई रेगिस्तान नहीं है..आपको शायद यकीन न हो ये यमुना नदी है। भारत की सबसे बड़ी नदियों में से एक , वो यमुना जिसके किनारों पर हिंदुस्तान की सांस्कृतिक विरासत फली-फूली। जिसे देख भगवान कृष्ण और गंगा-जमुनी तहजीब याद आती है। वो नदी जो देश के चार राज्यों की प्यास बुझाती हैं। वो नदी जिसे हिंदू धर्म में मां का दर्जा दिया गया है। युग-युगान्तर से अविरल बहने वाली वही यमुना नदी आज अपने वजूद के लिए जद्दोजहद कर रही है। नदी के बेसिन में पानी के बजाय केवल रेत है और रेत का ये समंदर एक नदी के लुप्त होने की कहानी बयां कर रहा है। इंडिया टीवी संवाददाता मनीष झा ने हरियाणा के सोनीपत और आसपास के इलाकों में जाकर यमुना नदी के बेसिन को देखा तो हैरान करने वाली हकीकत सामने आई। वहां यमुना में पानी की एक बूंद तक नहीं हैं। नदी के एक छोर से दूसरे छोर तक जहां कभी नाव से ही पार जाना मुमकिन था। उसे अब पैदल पार किया जा सकता है। लेकिन यमुना की ये हालत सिर्फ सोनीपत में ही नहीं है। हरियाणा में यमुना करीब 125 किलोमीटर का सफर तय करती है। और हर जगह इसी तरह के हालात है।
भारत की सबसे लंबी नदियों में से एक यमुना नदी हिमालय के गंगोत्री से निकलकर इलाहाबाद के समीप संगम में गंगा से मिल जाती है। इस दौरान वो देश के चार राज्यों उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरप्रदेश से होकर गुजरती है। 1376 किलोमीटर लंबी यमुना नदी का कुल बेसिन 366223 वर्ग किलोमीटर का है और इस नदी के किनारे करोड़ो लोगों का जन-जीवन इस पर निर्भर है। हरियाणा में हथिनीकुंड बैराज से निकलते ही यमुना नाले में तब्दील हो जाती है। जैसे-तैसे 10 किलोमीटर का सफर कर यमुनानगर को पार करती है। करनाल, पानीपत और सोनीपत में कई जगह तो नदी में पानी का नामोनिशान तक नहीं है। हरियाणा के करीब 125 किलोमीटर तक नदी पूरी तरह से रेगिस्तान-सी हो गई है। इस वजह से एक पूरी जीवित नदी अब मर गयी है।
जब हमने हरियाणा के सोनीपत में यमुना के एक घाट का दौरा किया तो दिल-दहलाने वाली तस्वीरें देखी। नदी के एक किनारे यानी सोनीपत से दूसरे किनारे यानी उत्तरप्रदेश के बागपत के बीच करीब एक किलोमीटर चौड़ी नदी के बेसिन में एक बूंद पानी नहीं है। इंसानों के लिए तो दूर की बात बल्कि इस चिलचिलाती धूप और गर्मी में जानवरों और पक्षियों को भी पीने का पानी नसीब नहीं है। चूंकि गंगा की तरह यमुना का भी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में बेहद महत्वपूर्ण स्थान है इसलिए नदी में पानी नहीं होने की वजह से कुछ अजीबोगरीब घटनाक्रम में देखने को मिला। पर्व-त्योहारों में आस-पास के इलाकों में रहने वाले हजारों-लाखों लोग पहले नदी में स्नान करते थे लेकिन अब पानी नहीं है सो जब हजारों लोग वहां स्नान को आते हैं तो नदी के बीचों-बीच बेसिन में कई वाटर-पंप लगाये गये हैं और 10 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से उन्हें उन पंपों के जरिये स्नान कराया जाता है। हिंदुओं में अस्थि विसर्जन की परंपरा है लेकिन नदी में पानी नहीं होने से लोग अस्थियों को नदी के बेसिन में रेत में गाड़ देते हैं।
रेगिस्तान में तब्दील होती यमुना की इस बर्बादी के लिए कौन जिम्मेदार हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के साथ साथ सरकारों की नीतियों को भी इसका जवाबदेह मानते हैं। यमुना नदी के संरक्षण में सालों से लगे मनोज मिश्रा का कहना है कि यमुना जब हरियाणा के यमुनानगर के पास पहुंचती है तबतक काफ पानी होता है लेकिन वहां हथिनीकुंज में पानी जमा किया जाता है। नदी में लगातार बहाव के लिए 1800 क्यूसेक पानी की जरूरत है जबकि हथिनीकुंड बैराज में रोजाना करीब 1348 क्यूसेक पानी ही आ रहा है । इस पानी में से पश्चिमी यमुना लिंक नहर के जरिये 881 क्यूसेक पानी राजधानी दिल्ली को पीने के लिए भेजा जाता है जबकि बचे पानी में से 352 क्यूसेक पानी को ही नदी में छोड़ा जाता है जिसमें से हरियाणा के 125 किलोमीटर के लंबाई में केवल 115 क्यूसेक पानी ही मिलता है। इससे धीरे-धीरे यमुना सूखती गयी और आज विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गयी।
जानकारों के मुताबिक सरकारों के खनन नीति ने यमुना का सबसे ज्यादा नुकसान किया। नदी बेसिन से रेत निकालने के लिए बेहिसाब खनन होता है। कानूनी और अवैध खनन का ये कारोबार चरम पर है। राज्य सरकारों को भी इससे भारी राजस्व मिलता है। इंडिया टीवी संवाददाता मनीष झा को स्थानीय लोगों ने बताया कि सरकार जानबूझकर बांध के जरिये यमुना नदी के पानी को रोक देती है ताकि नदी में खनन के काम में कोई दिक्कत नहीं हो। साल के एकाध महीने खासकर बरसात को छोड़ दिया जाय तो पूरी नदी के बेसिन में पानी नहीं होने से अब नदी का पारस्थितिकि तंत्र खत्म हो चुका है। अब बांध से पानी छोड़ने पर भी वहां ना तो मछलियां हो सकती है और ना ही नदी में मिलने वाले दूसरे जीव-जंतु या पौधे। सबसे खतरनाक हालत तो ये है कि पूरे इलाके का भूमिगत जल स्तर भी तेजी से गिरता जा रहा है इससे आसपास की खेती की जमीन के बंजर होने से लेकर रेगिस्तान में बदलने का खतरा बढता जा रहा है।
यमुना के हालत पर सरकार चिंता तो जताती है लेकिन सरकारी अधिकारी इसे कुदरती कहर बता कर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। हरियाणा के सिंचाई विभाग के इंजीनियर ने इंडिया टीवी से कहा कि प्राकृतिक सोर्स के घटने की वजह से यमुना नदी को पहाड़ों से ही पानी कम मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन की मार झेलनी पड़ रही है और यमुना सूखने के लिए मजबूर है।