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Lockdown: दिल्ली में मिले बेघर बुजुर्ग को अपने पैतृक गांव ले जाएगा रिक्शाचालक

दिल्ली में मिले बेघर बुजुर्ग जगदीश यादव को 19 वर्षीय रिक्शाचालक मुकेश अपने पैतृक गांव खेड़ा ले जाएगा जो उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में स्थित है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: May 16, 2020 22:52 IST
दिल्ली में मिले बेघर...- India TV Hindi
Image Source : PTI (REPRESENTATIONAL IMAGE) दिल्ली में मिले बेघर बुजुर्ग को अपने पैतृक गांव ले जाएगा रिक्शाचालक

नई दिल्ली: जंगपुरा मेट्रो स्टेशन के पास फुटपाथ पर बैठे जगदीश यादव गंभीर मुद्रा में बिना कुछ बोले शून्य में कुछ निहार रहे हैं, बीच-बीच में अपनी प्लास्टिक की बोतल से पानी के कुछ घुंट भर लेते हैं। अपनी उम्र 90 साल से ज्यादा बताने वाले यादव के बाएं कान के नीचे एक फोड़ा हो गया है जिसकी वजह से उन्हें मास्क लगाने में दिक्कत होती है लेकिन फिर भी उन्होंने मास्क लगा रखा है। उन्होंने कहा, “मैं इसे अपने लिए नहीं पहन रहा। मैंने इसे दूसरों की सुरक्षा के लिए पहन रखा है।”

यादव ने बताया कि वह उन्हें इलाहाबाद में अपना घर छोड़े 30 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। उन्होंने कई कारखानों में काम किया और देश के अलग-अलग हिस्सों में ट्रक भी चलाया जिससे उन्हें जीवन का नजरिया मिला। वह करीब 12 साल पहले दिल्ली आए थे और रिक्शा चलाते थे लेकिन बाद में उन्हें दिखना कम हो गया। वह दो अन्य रिक्शा चालकों के साथ किराये की जगह में रहते थे लेकिन अप्रैल में किराया नहीं चुका पाने की वजह से उन्हें निकाल दिया गया।

उन्होंने कहा, “सराय काले खां में अपने कमरे में, मैं अपने और कमरे में रहने वाले साथियों के लिए खाना पकाता था।” उन्होंने कहा, “अब, फुटपाथ मेरा घर है। मैं घर नहीं जा सकता। मैं यह भी नहीं जानता कि मेरे भाई और बहन जिंदा हैं या नहीं। वे अब तक मर चुके होंगे।” यादव ने विवाह नहीं किया था। उन्होंने कहा कि वह कमाने और परिवार का ध्यान रखने में इतना व्यस्त थे कि उन्होंने इस बारे में सोचा ही नहीं। उन्होंने कहा, “अगर अब मैं घर जाता हूं, तो उन लोगों को लगेगा कि अब मैं अपने आखिरी वक्त में उनसे अपना ख्याल रखवाने के लिए आ गया हूं।”

यादव के साथ कमरे में रहने वाला मुकेश (19) कह रहा है कि वह यादव को अपने गांव खेड़ा ले जाएगा जो उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में स्थित है। मुकेश ने कहा, “वह मेरे परिवार का हिस्सा होंगे।” उसने कहा, “बाबा हमारे लिए खाना बनाते थे, हमारा ध्यान रखते थे। वह मेरे दादा की तरह हैं। मैं उन्हें यहां अकेले नहीं छोड़ सकता।” कुमार कहता है कि घर पर उसके पिता और दो भाई हैं जो खेती करते हैं और वह भी उन्हीं के साथ काम करेगा कभी वापस नहीं आएगा।

उसने कहा, “हम बेघर हैं। मेरी जेब में एक पैसा नहीं है। न ही बाबा और न ही हमारे दूसरे साथी दीपक के पास जो नेपाल का रहने वाला है।” कुमार और यादव की योजना अंतरराज्यीय बस सेवा शुरू होने के बाद मुरादाबाद जाने की है। कुमार ने कहा, “मैं पैदल चला जाता लेकिन बाबा ज्यादा चल नहीं सकते।” यादव बीच में टोकते हैं, “मैं अब भी एक दिन में 60 किलोमीटर चल सकता हूं। मैंने अपनी जिंदगी में बहुत घी और दही खाया है।” फिलहाल दोनों एक पैदल पार-पथ के नीचे सोते हैं और पास के ही एक सार्वजनिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं।

कुमार ने कहा, “हमारे पास कोई साबुन नहीं है, इसलिए हम अपने कपड़े पानी से धो लेते हैं कि कम से कम बदबू न आए।” उन्हें जंगपुरा में एक नगर निगम विद्यालय में दिन में दो बार खिचड़ी मिलती है और आस-पास से गुजरने वाले लोग भी कुछ खाना दे जाते हैं। पुलिस द्वारा अप्रैल के मध्य में उत्तर प्रदेश की सीमा पर रोके जाने के बाद यादव और कुमार की तरह करीब 80-85 प्रवासी फुटपाथ पर ही रह रहे हैं।

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