चेहरे पर धीमी सी मुस्कान..सरल स्वभाव, निडर..आम तौर पर देह पर काली कोट, और हाथ में फाइल..लिए यही पहचान है उनकी। जब बात देश में गिने-चुने अफ़सरों की आती है तो रिटायर्ड आईएएस नृपेंद्र मिश्रा का नाम सबसे पहले आता है। अखंडता और अनुशासन के मापदंडों का सलीके से पालन करने वाले अफ़सर रहे हैं नृपेंद्र मिश्रा। जॉन एफ कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट, हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े नृपेंद्र मिश्रा का जन्म 8 मार्च को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में हुआ था। ये 1967 बैच के रिटायर्ड आईएएस अफ़सर हैं। इनके पास वर्ल्ड बैंक, एशियन डिवेलपमेंट बैंक, नेपाल सरकार में सलाहकार के तौर पर काम करने का गज़ब का अनुभव रहा है। सत्ता और सरकार किसी की रही हो इनके कामों को हमेशा सराहना हुई है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'प्रधान सचिव' रह चुके नृपेंद्र मिश्रा को अब एक और बड़ी जिम्मेदारी मिली है।
इस बार 'राम मंदिर ट्रस्ट' में नृपेंद्र मिश्रा को अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण करवाने की जिम्मेदारी दी गई है। ये जिम्मेदारी अहम है, क्योंकि ये विषय करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा हुआ है। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद से कई लोगों के जहन में सवाल है कि आख़िर अयोध्या में राम मंदिर कैसा होगा? कितना भव्य होगा? कितना सुंदर होगा? और कब तक बनकर तैयार हो जाएगा? मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष होने के नाते अब इनका जवाब नृपेंद्र मिश्रा को खोजना है। प्रशासनिक तौर पर इन्होंने कई मौके पर खु़द को साबित किया है, लेकिन जब बात देश की श्रद्धा,आस्था और विश्वास की हो तो ये चुनौती काफ़ी अहम हो जाती है।
उत्तर प्रदेश की नब्ज़ को समझने में माहिर रहे हैं नृपेंद्र मिश्रा
2014 में बीजेपी ने जब बहुमत से सरकार बनाई थी और प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने शपथ ली थी, तब उस वक्त मोदी को एक ऐसे साथी की तलाश थी जो पीएमओ और कैबिनेट सचिवालय के बीच मुख्य कड़ी बनकर समन्वय कर सके। अमूमन गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए पीएम मोदी ने वहां के अफ़सरों पर ज्यादा भरोसा जताया था। लेकिन इस बार वो ऐसे काबिल अफ़सर की तलाश में थे जिसके दामन पर कोई दाग न हो और साथ ही उसे केंद्र में काम करने का लंबा अनुभव भी हो। काफ़ी दिनों की खोज़बीन के बाद मोदी की तलाश रिटायर्ड आईएएस अफ़सर नृपेंद्र मिश्रा पर जाकर ख़त्म हुई थी।
ये वही नृपेंद्र मिश्रा थे जो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान 2006 से 2009 के बीच ट्राई के चेयरमैन पद पर रहकर यहीं से रिटायर्ड हुए थे। इससे पहले उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों में वे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के निजी सचिव और पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता मुलायम सिंह के भी 'प्रधान सचिव' रह चुके थे।
जब पीएम मोदी भी हुए काबिलियत के कायल
यूं तो प्रधानमंत्री मोदी चुनिंदा अफ़सरों पर भरोसा जताते हैं, लेकिन वो नृपेंद्र मिश्रा पर भी खू़ब भरोसा करते आए हैं। यही वज़ह है कि अब नृपेंद्र मिश्रा को मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया है। दरअसल, राम मंदिर और संघ परिवार का अयोध्या आंदोलन से गहरा रिश्ता रहा है। ऐसे में पीएम मोदी ने माहौल को समझते हुए अपने सबसे काबिल प्रतिनिधि के तौर पर नृपेंद्र मिश्रा को आगे की जिम्मेदारी देने का फ़ैसला किया है। मोदी का ये भरोसा आज का नहीं है। इससे पहले भी वो कई मौके पर नृपेंद्र मिश्रा की खुलकर तारीफ कर चुके हैं। नृपेंद्र की काबिलियत ही थी जो उन्होंने मोदी के 'प्रधान सचिव' के तौर पर पहले 5 साल में उनका दिल जीता।
पीएम मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में नृपेंद्र के कंधों पर ही दोबारा प्रमुख सचिव की जिम्मेदारी भी सौंपी। इसके साथ ही उनको कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया। लेकिन समय बीतता गया और फिर कुछ समय बाद नृपेंद्र ने खु़द से कार्यमुक्त किए जाने की इच्छा जाहिर करते हुए हुए अपने पद से इस्तीफ़े की पेशकश की। जिसके बाद उनका इस्तीफ़ा मंजूर किया गया। लेकिन उस मौके पर पीएम मोदी काफ़ी भावुक भी हुए। तब पीएम मोदी ने इन शब्दों के साथ नृपेंद्र मिश्रा को विदाई दी थी। ‘श्री नृपेंद्र मिश्रा उत्कृष्ट अधिकारियों में से एक हैं जिनकी सार्वजनिक नीति एवं प्रशासन पर गहरी समझ है। जब 2014 में दिल्ली में नया था तब उन्होंने मुझे ढेर सारी चीजें सिखाईं और उनका मार्गदर्शन सदैव बहुमूल्य रहेगा’। जाहिर था देश के प्रधानमंत्री द्वारा इस तरह से सराहना मिलना किसी के लिए भी गौरव की बात होगी।
अहम जिम्मेदारी निभाना अभी बाकी है
नृपेंद्र मिश्रा को उनके अफ़सर रहते हुए कई मौके पर कई सारी जिम्मेदारियां सौंपी गई, जिसका उन्होंने बखूबी निर्वाहन किया। बात चाहे 2006-2009 के दौरान ट्राई के अध्यक्ष पद पर रहते हुए काम करने की हो यह फिर मोदी सरकार के कार्यकाल में अखंडता और अनुशासन के साथ काम करने की..मिश्रा ने नौकरशाही में एक ईमानदार और संवेदनशील अधिकारी के तौर पर एक मिशाल पेश की है। स्वतंत्र रूप से फ़ैसले लेना और बहुत ज्यादा काम करना भी इन्हें खूब पसंद रहा है। यही नहीं लंबा प्रशासनिक तजुर्बा भी इन्हें काफी अलग पहचान देता है। इन्हीं खूबियों को देखकर ही प्रधानमंत्री मोदी ने इन्हें अब राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया है। दरअसल, राम मंदिर एक ऐसा विषय है जिसको मिश्रा की अग्निपरीक्षा भी कहा जा सकता है। भगवान राम करोड़ों भारतीयों की आस्था का केंद्र बिदु है। ऐसे में मिश्रा के लिए भव्य मन्दिर निर्माण करवाने की जिम्मेदारी काफी अहम है।
लंबे समय से चले आ रहे इस विवाद का यूं तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अंत हो गया है। लेकिन बावजूद इसके मंदिर सबकी आस्था के हिसाब से बने और जिसको लेकर भविष्य में कोई विवाद न हो इस बात को भी ख़ास तौर पर ध्यान में रखना होगा। अगर ऐसा रहा तो ही करोड़ों भारतीयों की इच्छा पूरी हो पाएगी। ऐसे में कहा जा सकता है कि नृपेंद्र मिश्रा के लिए ये जिम्मेदारी काफ़ी अहम होने वाली है...और शायद जीवन काल की सबसे बड़ी भी।
लेखक-आशीष शुक्ला
(इस लेख में लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)