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ओडिशा के गांव में मिला सैकड़ों साल पुरानी मूर्तियों का खजाना, 7 सिरों के सर्प वाली मूर्ति भी मिली

टीम ने इससे पहले परिसर के चारों ओर बिखरे एक प्राचीन मंदिर के सतही अवशेषों की खोज की थी जिसमें नक्काशीदार पत्थर के खंड शामिल थे।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : August 13, 2021 18:16 IST
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Image Source : PTI REPRESENTATIONAL IMAGE टीम के अगुवा अनिल धीर ने बताया कि मंदिर की रसोई के पिछले हिस्से में कूड़े के ढेर के नीचे करीब 2 दर्जन पुरावशेष मिले।

भुवनेश्वर: खोई हुई विरासत की खोज करने वाले एक ग्रुप ने शुक्रवार को दावा किया कि उन्होंने भुवनेश्वर-पुरी मार्ग पर सातशंखा के पास लौदंकी गांव में प्राचीन मंदिर मूर्तियों एवं चौखटों के खजाने की खोज की है। 6 सदस्यों की टीम जो रत्नाचीरा घाटी का सर्वेक्षण कर रही थी, उन्हें गुरुवार को प्राचीनतम मूर्तियां मिलीं जब वे पिपली से महज 15 किमी और भुवनेश्वर से 40 किमी दूर गांव में प्राचीन गाटेश्वर मंदिर के परिसर का निरीक्षण कर रहे थे। टीम के अगुवा अनिल धीर ने बताया कि मंदिर की रसोई के पिछले हिस्से में कूड़े के ढेर के नीचे करीब 2 दर्जन पुरावशेष मिले।

मनसा देवी की 7 सिरों के सर्प वाली मूर्ति भी मिली

टीम ने इससे पहले परिसर के चारों ओर बिखरे एक प्राचीन मंदिर के सतही अवशेषों की खोज की थी जिसमें नक्काशीदार पत्थर के खंड शामिल थे। रत्नाचीरा परियोजना का नेतृत्व कर रहे ‘रिडस्कवर लॉस्ट हैरिटेज’ के मुख्य समन्वयक दीपक कुमार नायक ने बताया कि खोजी गई मूर्तियों में मयूरासन में भगवान कार्तिकेय की तीन फुट लंबी मू्र्ति, अर्धपरायनिका में दो फुट लंबे गणेश, दो फुट लंबी महिसासुरमर्दिनी, आलस्यकन्या की जटिल नक्काशी के साथ मंदिर की चौखटों के अलावा मनसा देवी की 7 सिरों के सर्प वाली मूर्ति, ब्रूशव, नर विदाला आदि शामिल हैं। नायक ने बताया कि भगवान शिव का छोटा पीतल का मुखौटा भी मिला।

2 दशकों से कूड़े के ढेर में गड़ी हुई थीं मूर्तियां
पीतल के मुखौटे को छोड़कर अन्य सभी पुरावशेष 9वीं से 12वीं शताब्दी ईसवी के बीच की अवधि के हैं। मूर्तियों को मंदिर के अंदर रखा गया है और अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है। स्थानीय ग्रामीणों ने टीम को बताया कि कई पुरानी मूर्तियां राज्य के पुरातत्व विभाग ने 1999 में मंदिर की मरम्मत के दौरान खोजी थी। इन्हें राज्य संग्राहलय ले जाने के लिए अलग रख दिया गया था। हालांकि, 1999 में भीषण चक्रवात के दौरान यह खजाना खो गया। धीर ने कहा कि अधिकारी भी इन मूर्तियों को भूल गए और तब से पिछले 2 दशकों से ये कूड़े के ढेर में गड़ी रहीं।

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