ऐसे दौर में जब महिलाओं के साथ सिलसिलेवार अपराध हो रहे हैं, ऐसे दौर में जब 4 महीने की बच्ची से लेकर 80 साल की बुजुर्ग महिला तक को नोचा खसोंटा जा रहा हो, ऐसे दौर में, जब बच्चियों का घर से निकलने का अर्थ अनर्थ की आशंका से भरा हो, ऐसे वक्त में जब राह पर चलते हुए बेटियों के कदम कांपे, ढलता हुआ सूरत उन्हें डराए, और हर अजनबी की आहट उन्हें खौफ से भर दे, ऐसे ही दौर में जी रहे हैं हम भारत के लोग। बच्चियों के साथ होने वाले अपराध के खिलाफ चाहे तो सरकारों को दोष देकर अपने मन को संतोष दे लीजिए, चाहे तो पुलिस कानून को कोंसकर सांत्वना दे लीजिए, लेकिन इस बात से इनकार मत कीजिए कि इस अपराध को रोकने में अबतक आपकी भागीदारी शून्य ही रही है?
अबतक आप सिर्फ रोए हैं, अपनी बेटियों की नंगी लाश देखकर, आप तड़पे हैं, अपनी बहन को झाड़ियों में पड़ा देखकर किया कुछ नहीं है। चलिए प्रण कीजिए कि कुछ करना है, कुछ कर गुजरना है। पहला काम कीजिए अपने बेटों को, अपने पतियों को, अपने पिताओं को, अपने बुजुर्गों से खुलकर बात करेंगी। उन्हें अंतर समझाएंगी अपनी बेटी और पड़ोस की बेटी के बीच का अंतर। उन्हें समझाएंगी औरत का अर्थ। उन्हें समझाएंगी कि महिलाओं पर मर्दानगी करने से कोई मर्द नहीं बनता, उनका सम्मान उन्हें पुरुषोत्तम बनाता है। उन्हें समझाना होगा कि किसी भी बेटी, बहू, महिला पर बुरी नजर डालने से पहले अपने घर की आरतों का ख्याल जरूर रहे?
उसके लिए चलिए तय कीजिए कि अपनी बच्चियों को बोलना सिखाएंगे, उन्हें गुड टच, बैड टच की शिक्षा देंगी, उन्हें बताएंगी कि जब भी लगे कि किसी भइया, अंकल, पापा के दोस्त, पड़ोसी, किसी ने भी उनके साथ कुछ गलत करने की कोशिश की है तो वो खुलकर बोलेंगी। ये सब कहने की लिखने की बोलने की जरूरत क्यों पड़ी, जानते हैं? क्योंकि आकड़ें सुनेंगें तो कानों में शीशा पिघल जाएगा। आंकड़े देखेंगे तो आखों में खून उतर आएगा। भारत में हर 15 मिनट में एक रेप होता है। आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं, भारत में हर 4 घंटे में एक गैंगरेप की वारदात होती है। साल की बात करें तो 2015 में 34 हजार 651 महिलाओं से रेप हुआ। 2015 में 2 हजार 113 महिलाओं के साथ गैंगरेप हुआ। हर 2 घंटे में बलात्कार का असफल प्रयास होता है ये आंकड़ें 2015-एनसीआरबी के हैं। और सुनिए बलात्कार के 50 फीसदी मामलों में केस दर्ज ही नहीं होता, मतलब खबरें बनती ही नहीं, आंकड़ों में वो दर्ज होते ही नहीं।
समाज, संस्कृति, सोच, और चरित्र बेहतर कैसे बनेगा। सोचिए, सोचना पड़ेगा। फिर कोई रेप का मुद्दा टीवी सुर्खियों का हिस्सा बनेगा फिर आप निकलेंगे घर से कैंडल लेकर लेकिन अगर उससे पहले ही खुद के घर में एक बार ये शुरुआत करेंगे तो देश की बेटियां और आपकी खुद की परी इस देश में खुद को सुरक्षित महसूस करेगी। रात का अंधेरा उसे डराएगा नहीं, शाम होने पर उसके घर नहीं पहुंचने पर आपका कलेजा बैठेगा नहीं। राह में चलने के लिए बेटी के लिए कानून नहीं कदम ही काफी होंगे, यकीन कीजिए। सरकार भले ही चाहे कितने ही कानून बना ले लेकिन जब तक शुरुआत आप खुद नहीं करेगें तो कानून तब काम करेगा जब किसी मासूम को कोई भेड़िया अपनी हवस का शिकार बना लेगा।
(ब्लॉग लेखिका रीना आर्या इंडिया टीवी में कार्यरत है और शिक्षा, राजनीति एवं समाजिक विषयों पर लेखन में रुचि रखती हैं)