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अब छात्र पढ़ेंगे RSS का इतिहास और ‘राष्ट्र निर्माण’ में उसकी भूमिका, पाठ्यक्रम में हुआ शामिल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का इतिहास और ‘राष्ट्र निर्माण’ में इसकी भूमिका को नागपुर स्थित एक विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। आरएसएस का मुख्यालय भी इसी शहर में है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: July 09, 2019 18:07 IST
Rashtrasant Tukadoji Maharaj Nagpur University to teach about RSS role in freedom struggle- India TV Hindi
Rashtrasant Tukadoji Maharaj Nagpur University to teach about RSS role in freedom struggle

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का इतिहास और ‘राष्ट्र निर्माण’ में इसकी भूमिका को नागपुर स्थित एक विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। आरएसएस का मुख्यालय भी इसी शहर में है। राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय ने बीए (इतिहास) के द्वितीय वर्ष के पाठ्यक्रम में आरएसएस के इतिहास को शामिल किया है। 

पाठ्यक्रम के तीसरे खंड में राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका का ब्योरा है। वहीं, प्रथम खंड में कांग्रेस की स्थापना और जवाहर लाल नेहरू के उभार के बारे में बात की गई है। पाठ्यक्रम के द्वितीय खंड में सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे मुद्दों की बात की गई है। घटनाक्रम से करीब से जुड़े एक सूत्र ने कहा कि यह कदम इतिहास में ‘‘नई विचारधारा’’ के बारे में छात्रों को जागरूक करने के प्रयास का हिस्सा है। विश्वविद्यालय अध्ययन बोर्ड के सदस्य सतीश चैफल ने मंगलवार को पीटीआई को बताया कि भारत का इतिहास (1885-1947) इकाई में एक अध्याय राष्ट्र निर्माण में संघ की भूमिका का जोड़ा गया है, जो बीए (इतिहास) द्वितीय वर्ष पाठ्यक्रम के चौथे सेमेस्टर का हिस्सा है। 

उन्होंने कहा कि 2003-2004 में विश्वविद्यालय के एमए (इतिहास) पाठ्यक्रम में एक अध्याय ‘‘आरएसएस का परिचय’’ था। चैफल ने कहा, ‘‘इस साल हमने इतिहास के छात्रों के लिए राष्ट्र निर्माण में आरएसएस के योगदान का अध्याय रखा है जिससे कि वे इतिहास में नई विचारधारा के बारे में जान सकें।’’ विश्वविद्यालय के कदम को उचित ठहराते हुए चैफल ने कहा कि इतिहास के पुनर्लेखन से समाज के समक्ष नए तथ्य आते हैं। 

वहीं, आरएसएस पर अध्याय लाए जाने पर महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचित सावंत ने ट्वीट किया, ‘‘नागपुर विश्वविद्यालय आरएसएस और राष्ट्र निर्माण का संदर्भ कहां से ढूंढ़ेगी? यह सर्वाधिक विभाजनकारी बल है जिसने ब्रितानिया हुकूमत का साथ दिया, स्वतंत्रता आंदोलन का विरोध किया, 52 साल तक तिंरगा नहीं फहराया, संविधान की जगह मनुस्मृति चाही और जो नफरत फैलाता है।’’

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