नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को अपने फैसले में स्पष्ट रूप से यह कहा कि अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के नीचे एएसआई की खुदाई से संकेत मिलता है कि ‘‘अंदर जो संरचना थी वह 12वीं सदी की हिन्दू धार्मिक मूल की थी।’’
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 23 अक्टूबर, 2002 को खुदाई और विवादित स्थल पर वैज्ञानिक जांच का काम सौंपा था। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई के नेतृत्व में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आम सहमति से अयोध्या मामले पर फैसला सुनाया और राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया।
पीठ ने कहा कि बहुस्तरीय खुदाई के दौरान एक गोलाकार संरचना सामने आयी जिसमें ‘मकर प्रणाला’ था, जिससे संकेत मिलता है कि आठवीं से दसवीं सदी के बीच हिन्दू वहां पूजा-पाठ करते थे। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘अधिसंभाव्यता की प्रबलता के आधार पर अंदर पाई गई संरचना की प्रकृति इसके हिंदू धार्मिक मूल का होने का संकेत देती है जो 12 वीं सदी की है।’’ पीठ ने कहा कि एएसआई की खुदाई से यह भी पता चला कि विवादित मस्जिद पहले से मौजूद किसी संरचना पर बनी है।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘मस्जिद का निर्माण कुछ इस तरह से हुआ कि पहले से मौजूद ढांचे की दीवारों का इस्तेमाल कर स्वंतत्र नींव बनाने से बचा गया।’’ उसने कहा कि एएसआई की अंतिम रिपोर्ट बताती है कि खुदाई के क्षेत्र से मिले साक्ष्य दर्शाते हैं कि वहां अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग सभ्यताएं रही हैं जो ईसा पूर्व दो सदी पहले ‘उत्तरी काले चमकीले मृदभांड’ तक जाती है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘एएसआई की खुदाई ने पहले से मौजूद 12वीं सदी की संरचना की मौजूदगी की पुष्टि की है। संरचना विशाल है और उसके 17 लाइनों में बने 85 खंभों से इसकी पुष्टि भी होती है।’’ पुरातात्विक साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद शीर्ष अदालत ने कहा कि नीचे बनी हुई वह संरचना जिसने मस्जिद के लिए नींव मुहैया करायी, स्पष्ट है कि वह हिन्दू धार्मिक मूल का ढांचा था।