लखनऊ। देश के प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने रविवार को कहा कि उनका संगठन अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेगा। इस विषय पर संगठन की ओर से बनाए गए पांच सदस्यीय पैनल की कानून के विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करने के बाद बनी राय के आधार पर यह निर्णय लिया गया।
मौलाना मदनी ने एक बयान में कहा, '' माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक हजार से अधिक पृष्ठों वाले निर्णय में मुस्लिम पक्ष के अधिकतर तर्कों को स्वीकार किया। ऐसे में अभी भी कानूनी विकल्प मौजूद हैं।'' उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान मस्जिद स्थानांतरित नहीं कर सकता इसलिए वैकल्पिक जमीन लेने का सवाल ही नहीं उठता।
मदनी ने दावा किया, ''अदालत ने पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट से यह स्पष्ट कर दिया कि मस्जिद का निर्माण किसी मंदिर को तोड़कर नहीं किया गया और 1949 में मस्जिद के बाहरी हिस्से में अवैध रूप से मूर्ति रखी गयी और फिर वहां से उसे अंदर के गुम्बद के नीचे वाले हिस्से में स्थानांतरित किया गया जबकि उस दिन तक वहां नमाज का सिलसिला जारी था।"
मदनी ने कहा, ''अदालत ने भी माना कि 1857 से 1949 तक मुसलमान वहां नमाज पढ़ता रहा तो फिर 90 साल तक जिस मस्जिद में नमाज पढ़ी जाती हो उसको मंदिर को देने का फैसला समझ से परे हैं।''
जमीयत प्रमुख ने कहा कि पुनर्विचार याचिका पर विरले ही निर्णय बदले जाते हैं लेकिन फिर भी मुसलमानों को न्याय के लिए कानूनी तौर पर उपलब्ध विकल्पों का उपयोग करना चाहिए। उन्होंने यह सवाल भी किया, "अगर मस्जिद को ना तोड़ा गया होता तो क्या अदालत मस्जिद तोड़कर मंदिर बनाने के लिए कहती?"
दरअसल, पुनर्विचार याचिका को लेकर संगठन में सहमति नहीं बन पा रही थी जिस वजह से पांच सदस्यीय पैनल बनाया गया था। अयोध्या मामले में उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम पक्ष की पैरवी कर चुकी जमीयत की कार्य समिति की बृहस्पतिवार को हुई मैराथन बैठक में पुनर्विचार याचिका को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई थी।
सूत्रों के मुताबिक, संगठन के कई शीर्ष पदाधिकारियों की राय थी कि अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहिए, लेकिन कई पदाधिकारी पुनर्विचार याचिका दायर करने की दिशा में कदम बढ़ाने पर जोर दे रहे थे। सहमति नहीं बन पाने के कारण जमीयत की ओर से पांच सदस्यीय पैनल बनाया गया। इसमें जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी, मौलाना असजद मदनी, मौलाना हबीबुर रहमान कासमी, मौलाना फजलुर रहमान कासमी और वकील एजाज मकबूल शामिल थे।
मौलाना मदनी ने बृहस्पतिवार को कहा था कि अयोध्या मामले पर शीर्ष अदालत का फैसला कानून के कई जानकारों की समझ से बाहर है। उन्होंने यह भी कहा था कि अयोध्या मामले में फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने जो पांच एकड़ भूमि मस्जिद के लिए दी है, उसे सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को नहीं लेना चाहिए।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने गत शनिवार को सर्वसम्मत फैसले में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया और केन्द्र को निर्देश दिया कि नई मस्जिद के निर्माण के लिये सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ का भूखंड आवंटित किया जाए। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस व्यवस्था के साथ ही राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील 134 साल से भी अधिक पुराने इस विवाद का निपटारा कर दिया।