नई दिल्ली. देश की राजधानी नई दिल्ली की सीमाओं पर किसान संगठनों का आंदोलन जारी है। गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन का नेतृत्व भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत कर रहे हैं। 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद ये आंदोलन लगभग समाप्त हो चुका था, लेकिन राकेश टिकैत ने इसमें एकबार फिर से जान फूंक दी। राकेश टिकैत के बहाने अब कई सियासी दल अपनी खोई हुई सियासी जमीन तलाशने में लगे हैं। कई लोग कयास लगा रहे हैं कि वो सियासत में एकबार फिर से किस्मत आजमा सकते हैं लेकिन राकेश टिकैत ने ऐसी किसी भी संभावना से इंकार किया है।
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राकेश टिकैत ने इंडिया टीवी की संवाददाता अर्चना सिंह से बात करते हुए कहा कि वो अब चुनाव नहीं लड़ेंगे। राकेश टिकैत ने कहा कि वो संसद नहीं जाएंगे बल्कि सड़क पर लड़कर ही किसान संगठनों के लिए कानून बनवाएंगे। इस दौरान उन्होंने पश्चिम बंगाल पर भी बात की। राकेश टिकैत ने कहा कि वो बंगाल भी जाएंगे और राज्य व केंद्र सरकार दोनों से वहां के किसानों के मसले पर सवाल करेंगे।
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सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक अपनी बात पहुंचाएंगे किसान संगठन
कृषि कानून को लेकर दिल्ली के बॉर्डर पर पिछले 80 दिनों से ज्यादा समय से किसानों का प्रदर्शन जारी है, ऐसे में तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में बॉर्डर खाली होने की खबर पर किसानों में आक्रोश नजर आने लगा है, वहीं किसानों ने अब अपनी अगली रणनीति के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर लोगों तक अपनी बात पहुंचाने की रणनीति बनाई है। गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद किसान नेता जगतार सिंह बाजवा ने कहा, "हम समूचे मीडिया से गुस्सा नहीं हैं, लेकिन मीडिया का एक वर्ग लगातार भ्रामक और झूठी खबरें फैला रहा है।"पढ़ें- खुशखबरी! भारतीय रेलवे 22 फरवरी से चलाने जा रहा है 35 नई unreserved special trains, ये रही लिस्ट
उन्होंने कहा- किसानों के बेटों को एक्टिव किया जा रहा है, जो किसान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नहीं है, उनकी आईडी बनाकर उन्हें ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके बाद वह रोज बॉर्डर से कृषि विषयों पर पोस्ट करेंगे और यहां की सच्चाई कोने-कोने तक पहुंचाएंगे। उन्होंने आगे कहा, हाल ही में जो बॉर्डर खाली होने की खबरें चलाई गई हैं, उसके बाद हम लोगों ने ये रणनीति बनाई है। हमारी लड़ाई अब सिर्फ सरकार से ही नहीं, बल्कि उन लोगों से भी है जो इस आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया के इस जमाने में कुछ भी छिपता नहीं है, फिर भी ये अपनी आदत से लाचार हैं या उन्हें सरकार के तरफदार होने का सबूत पेश करने की मजबूरी रहती है।
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