जब मैंने कल रात 'आज की बात' में तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद कांधलवी के भाषण को दिखाया, तब मुझे दुख भी हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था। अपने भाषण में मौलाना साद निजामुद्दीन मरकज में हो रही इजलास में अपने अनुयायियों को नसीहत दे रहे थे कि वे सोशल डिस्टैंसिंग बनाए रखने की डॉक्टरों की सलाह को न मानें। इसके साथ ही तबलीगी जमात का वह दावा हवा हो जाता है जिसमें उन्होंने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के दौरान सावधानी बरतने की बात कही थी। सबसे पहले 19 मार्च को इजलास को संबोधित करते हुए अपने 42 मिनट के भाषण में मौलाना साद ने कहा था, ‘अगर तुम्हारे दिल में ये बात आ भी जाए कि मस्जिद में इकट्ठा होने से कोई मर जाएगा, तो मरने के लिए मस्जिद से बेहतर कोई जगह नहीं है।’
मौलाना जानते थे कि डॉक्टरों ने सोशल डिस्टैंसिंग की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने इजलास में कहा, 'हमें सिर्फ उस डॉक्टर की सलाह कबूल है जो अल्लाह को मानने वाला हो। अगर वह भी ऐसा मशविरा दे कि मस्जिदों में जाने से बीमारी बढ़ेगी, वहां इकट्ठा मत हो, तो उसकी बात भी नहीं मानी जाएगी।’ उन्होंने कहा, 'उन्होंने आपके दिमाग में डर डाल दिया है क्योंकि आप अखबार पढ़ते हैं न कि कुरान।' साफ है कि तबलीगी जमात के मुखिया लोगों को सोशल डिस्टैंसिंग के लिए सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन न करने के लिए उकसा रहे थे। इसका नतीजा यह हुआ कि जमात के लगभग दो हजार अनुयायी ग्रुप बनाकर देश में चारों तरफ निकल गए और खतरनाक वायरस को फैला दिया।
दिल्ली में इस्लामिक सेंटर में मौजूद 1500 लोगों में से 450 लोगों में वायरस के लक्षण नजर आए हैं। अब तक तबलीगी जमात के लोगों या उनके संपर्क में आए 10 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 24 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। इसके अलावा फिलहाल मरकज से होकर गए हजारों लोगों की पूरे देश में तलाश की जा रही है। आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, इस समय देश के 12 राज्यों में इस जमात के 824 मौलाना मौजूद हैं। इनमें से अधिकांश मलेशिया और इंडोनेशिया समेत दूसरे मुल्कों से होकर आए हैं। राज्यों की बात करें तो कर्नाटक में 50, पश्चिम बंगाल में 70, यूपी में 132, झारखंड में 38, हरियाणा में 115, ओडिशा में 11, एमपी में 49 और राजस्थान में 13 मौलाना मौजूद हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि ये मौलाना उन 300 से ज्यादा विदेशी मौलानाओं से अलग हैं जो निजामुद्दीन में 13 से 15 मार्च तक चले मजहबी इजलास में शामिल हुए थे।
तबलीगी जमात का दावा है कि यह एक रूटीन सभा थी, लेकिन वे इस तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं कि दिल्ली सरकार ने 13 मार्च को 200 से ज्यादा लोगों के किसी भी तरह के समारोह पर बैन लगा दिया था। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बताया है कि दिल्ली के 97 में से 24 कोरोना पॉजिटिव मामले निजामुद्दीन के थे। दिल्ली के क्वारंटाइन शेल्टर्स में एक हजार से भी ज्यादा लोगों को ट्रांसफर करना पड़ा। मुझे अब यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि मौलाना साद कोरोना वायरस के फैलाने के दोषी हैं क्योंकि उन्होंने खुले तौर पर दिशा-निर्देशों की अवहेलना की। इसके अलावा उन्होंने तबलीगी जमात के लोगों को देश भर में घूमने के लिए प्रेरित किया जिसके चलते वायरस फैलता गया। अब तबलीगी जमात के संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का पता लगाना बहुत ही मुश्किल काम है।
इस जमात के लोगों के संपर्क में आने के बाद जिन लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण हुआ है, जिनके परिवार वालों की जान खतरे में पड़ी, उन सबके लिए मौलाना साद जिम्मेदार हैं। अल्लाह को मानने वालों को अल्लाह के नाम पर इजलास में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया। जमात और उसके मुखिया देशभर में वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने दिल्ली को जानबूझकर कोरोना वायरस के गढ़ों में से एक बना दिया। यह देश के खिलाफ गुनाह है। वीडियो को देखते हुए मैं बसों से सड़क पर थूक रहे वायरस संदिग्धों को देखकर हैरान था। इन लोगों को क्वारंटाइन में भेजने के लिए ले जाया जा रहा था। ऐसे लोगों द्वारा सड़क पर थूकने से वायरस फैल सकता है, और मुझे लगता है, ये लोग यह बात जानते थे। जमात और मौलाना साद के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
मैं तबलीगी जमात के नेताओं से पूछना चाहता हूं: यदि काबा, मक्का और मदीना की मस्जिदें, वेटिकन सिटी, वैष्णो देवी, तिरुपति, सिद्धिविनायक, सोमनाथ और काशी विश्वनाथ मंदिर कोरोना वायरस के चलते बंद हो सकते हैं, तो उन्हें इस्लाम और अल्लाह के नाम पर इतना बड़ा इजलास करने की क्या जरूरत थी? ऐसे समय में जब भारत में मस्जिदों ने बाहरी लोगों को नमाज अदा करने से रोक रखा है, गुरुद्वारों में बाहरी लोग अरदास नहीं दे सकते, मंदिरों ने भक्तों को अंदर आने से रोक दिया है, तो आखिर जमात ने मजहब के नाम पर यह गुनाह क्यों किया?
यह कहना गलत होगा कि सभी मुस्लिम मौलवी कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में सरकार का समर्थन नहीं कर रहे हैं। इस जंग में अधिकांश मौलाना हमारे प्रधानमंत्री के साथ खुलकर खड़े हैं, और यह आरोप लगाना गलत होगा कि एक समुदाय के रूप में मुसलमान सोशल डिस्टैंसिंग के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश के मौलनाओं ने लोगों से जुमे की नमाज मस्जिद की बजाय घर पर अदा करने की अपील की थी, और इसके बाद मस्जिदों पर कोई भीड़ नहीं दिखाई दी। इससे हमें उम्मीद है कि कोरोना वायरस के खिलाफ इस जंग में हम सभी एकजुट हैं, और जीत हमारी ही होगी। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात, रजत शर्मा के साथ', 31 मार्च 2020 का पूरा एपिसोड