Friday, November 22, 2024
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अरुण जेटली: मेरे मित्र, मेरे आदर्श, मेरे मार्गदर्शक

अरुण जेटली मेरे लिए सिर्फ नेता नहीं थे, मेरे दोस्त थे, दोस्त से ज्यादा मेरे मार्गदर्शक थे, अच्छे बुरे वक्त में। हर स्थिति में साथ रहने का अहसास दिलाने वाले गाइड थे।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: August 26, 2019 11:58 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma | India TV- India TV Hindi
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma | India TV

आज मैं आपके साथ अपना दुख बांटने आया हूं, अपना दर्द बताने आया हूं। मन टूटा है, दिल में दर्द है, क्योंकि अरुण जेटली चले गए, इस दुनिया को अलविदा कह गए। अरुण जी की एक बात मुझे आज बार-बार याद आ रही है। वह कहते थे कि मुश्किलें आती हैं, बीमारी आती है, तकलीफें होती हैं, लेकिन काम नहीं रुकना चाहिए, ‘शो मस्ट गो ऑन’। देश ने एक अच्छा इंसान, एक अच्छा नेता खोया, और मैंने अपना अपना गार्जियन, और परिवार के बड़े को खोने का दर्द क्या होता है, वह मैं महसूस कर रहा हूं। अरुण जेटली मेरे लिए सिर्फ नेता नहीं थे, मेरे दोस्त थे, दोस्त से ज्यादा मेरे मार्गदर्शक थे, अच्छे बुरे वक्त में। हर स्थिति में साथ रहने का अहसास दिलाने वाले गाइड थे। अरुण जेटली मेरे लिए सिर्फ एक नाम नहीं था, मेरे लिए आदर्श थे।

Arun Jaitley and Rajat Sharma

इंडिया टीवी के लोकप्रिय शो 'आप की अदालत' में अरुण जेटली और रजत शर्मा।

45 साल पुराना रिश्ता

अरुण जेटली के साथ ये रिश्ता कोई 10-15 साल का नहीं था, बल्कि पैंतालीस साल पुराना रिश्ता था जो वक्त के साथ मजबूत ही हुआ। आमतौर पर नेताओं का पत्रकारों से रिश्ता प्रोफेशनल होता है, एक दूसरे की जरूरत का होता है, लेकिन अरुण जेटली के साथ मेरा रिश्ता उस वक्त से है जब वह नेता नहीं थे, और न मैं पत्रकार था। मैंने अरुण जेटली को राजनीति में सफलता की सीढ़ियां चढ़ते हुए देखा और उन्होंने बेहतर पत्रकार बनने में मेरी मदद की। आज जब पिछले पैंतालीस सालों को याद कर रहा हूं, तो एक-एक दिन, एक-एक पल की तस्वीरें आंखों के सामने घूम रही हैं। पिछले पन्द्रह दिन से ईश्वर से रोज प्रार्थना कर रहा था। रोज 'आज की बात' खत्म करने के बाद एम्स में अरुण जेटली को देखने जाता था, रोज इसी उम्मीद से लौटता था कि कल जब आऊंगा तो अच्छी खबर मिलेगी।

डॉक्टर्स रोज उनकी सेहत के बारे में बताते थे, डॉक्टर्स को भी उम्मीद थी कि सब अच्छा होगा लेकिन आज जब सब कुछ खत्म होने की खबर मिली, तो मैं अंदर से टूट गया, ऐसा लगा कि सबकुछ बिखर गया, सब कुछ खो गया है। अरुण जेटली कैसे हार सकते हैं? वो तो हारने वाले थे ही नहीं, लेकिन ईश्वर की मर्जी से कौन जीत पाया है? अरुण जेटली खूब बोलते थे, लोगों से मिलने की आदत थी, मैं अक्सर उनसे मिलने जाता था, खूब बात करते थे, मैं सुनता था, कई बार बीच में कहते थे- पंडित जी तुम भी कुछ बोलो। आज जब एम्स में अरुण जेटली को खामोश लेटे हुए देखा, तो बार बार दिल यही कह रहा था- जेटली जी उठो, कुछ तो बोलो। लेकिन जो चिरनिद्रा में सो गया, वो कहां बोलता है। जो चला गया वो कहां लौटता है? 

पहली मुलाकात
मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरी अरुण जेटली से पहली मुलाकात हुई थी। मैं गरीब परिवार से था, दस भाई बहनों का बड़ा परिवार था। पुरानी दिल्ली में, एक छोटे से कमरे में पूरा परिवार रहता था लेकिन मैं पढ़ना चाहता था। श्रीराम कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचा था। उस वक्त अरुण जेटली दिल्ली यूनिवर्सिटी में ABVP के छात्र नेता थे। मैं एडमिशन फॉर्म जमा कराने गया था। एडमिशन फीस में 3 रुपये कम थे। मैं परेशान था कि 3 रुपये कहां से आएंगे। तभी पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रखा, मुड़कर देखा तो जेटली थे। शायद उन्होंने मेरे चेहरे को पढ़ लिया था, मेरी परेशानी को समझ लिया था। जेटली ने नाम पूछा, कहा- क्या दिक्कत है? मैंने थोड़ी हिचक के साथ दिक्कत बताई, तो बोले- चिन्ता न करो पंडित जी, पैसे के चक्कर में पढ़ाई थोड़े छूटेगी। मेरा फॉर्म पूरी फीस के साथ जमा हो गया, एडमिशन हो गया। उस दिन जो हाथ मेरी मदद में आगे बढ़ा था, वो आज छूट गया। जेटली से पहली मुलाकात 1973 में हुई थी। तब वो मेरे सबसे प्यारे दोस्त की भूमिका में आए थे और आज सुबह तक उसी रोल में रहे।
 
दिल्ली विश्वविद्यालय
अरुण जेटली जी के बारे में जितना कहूं, उतना कम है। जेटली ने पैंतालीस साल के पॉलिटिकल करियर में ABVP के कार्यकर्ता से लेकर देश के वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और राज्यसभा में विपक्ष के नेता तक का सफर तय किया लेकिन उनके दामन पर एक भी दाग नहीं लगा। राजनीतिक शुचिता और ईमानदारी अरुण जेटली के व्यक्तित्व का हिस्सा थी। आज के जमाने में उनके जैसे इंसान मिलना मुश्किल है। मैं उनके पूरा राजनीतिक सफर का गवाह हूं, उनके सफर का साथी हूं। 1973 में जब मैंने दिल्ली यूनीवर्सिटी में एडमिशन लिया, उस वक्त देश के बड़े बड़े नेता अरुण जेटली की प्रतिभा को पहचान चुके थे। वो उस वक्त दिल्ली यूनीवर्सिटी से बी. कॉम. कर रहे थे। उस वक्त करप्शन के खिलाफ जयप्रकाश नारायण देशव्यापी आंदोलन चला रहे थे। जेटली इस आंदोलन का हिस्सा बन गए। जयप्रकाश नारायण ने अरुण जेटली को छात्र संघर्ष समिति का राष्ट्रीय संयोजक बनाया। उस वक्त मैं भी अरुण जेटली के साथ उनके भाषण सुनने जाता था, सभाएं करता था। 1974 में अरुण जेटली दिल्ली यूनीवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े और जीते। वो जेटली का पहला चुनाव था। उस वक्त मैं जेटली के लिए प्रचार करता था। रात में साथ बैठकर आगे की रणनीति बनाते थे। मुझे स्कूटर चलाना नहीं आता था तो विजय गोयल के स्कूटर पर बैठकर जेटली के चुनाव प्रचार के पर्चे दीवारों पर चिपकाते थे और रात में सब साथ बैठकर खाना खाते थे। वो वक्त अलग था, वो दिन अलग थे। आज लग रहा है, ये सब जैसे कल की ही बात है।

Rajat Sharma's emotional tribute to Arun Jaitley: My friend, my ideal and my guide

दिल्ली विश्वविद्यालय में बिताए वे दिन: रजत शर्मा और अरुण जेटली।

ये जो तस्वीर आप देख रहे हैं, ये 1974 में अरुण जेटली दिल्ली यूनीवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे थे। तस्वीर कैंपेनिंग के वक्त की है। उस वक्त न गाड़ियां होती थी, न आज की तरह का इलैक्शन कैंपेन। पैदल घूम घूम कर प्रचार करते थे। शाम को सब मिलकर आगे की रणनीति बनाते थे। मैं भी कैंपेनिंग टीम का मेंबर था। जेटली खाने के बहुत शौकीन थे, अच्छा खाते थे और खिलाते थे। स्ट्रीट फूड के शौकीन थे और आइसक्रीम के तो दीवाने थे। ये तस्वीर उस वक्त की है। जब शाम को जेटली हम सब दोस्तों को आइसक्रीम खिलाने ले गए। बीच में धोती कुर्ता पहने जेटली खड़े हैं, उनके दाईं तरफ दूसरा जो शख्स दिख रहा है, वो मैं हूं। उस दिन हम सबने आइसक्रीम खाई लेकिन जेटली का एक आइसक्रीम से मन नहीं भरा। उन्होंने अपनी आइसक्रीम खा ली और मुझसे कहा- पंडित जी एक एक और खाओगे क्या? मैंने कहा, नहीं। आपने भी खा ली है, रहने दीजिए। बोले, ठीक है, फिर मैं खा लेता हूं और दूसरी आइसक्रीम भी खाने लगे। जेटली की उम्र बढती गई। राजनीतिक और सामाजिक कद बढ़ता गया, लेकिन खाने का शौक कम नहीं हुआ। हर तरह का खाना- कहां क्या अच्छा मिलता है, कौन सी डिश कहां मिलती है, डिश की खासयित क्या है, उन्हें सब मालूम था। उन्होंने एक बार कहा, पंडित जी, क्या आपको पता है कि अच्छा रोगन जोश कहां मिलता है? मैने जवाब दिया, मैं शाकाहारी हुं, मुझे कैसे पता होगा? अरुण ने जवाब दिया- अच्छा रोगन जोश मोदी महल में मिलता है और अच्छे से भी अच्छा आपके घर पर मिलता है। 

आपातकाल
अरुण जेटली जितने अच्छे इंसान थे, उतने ही अच्छे वक्ता थे। आमतौर पर हमेशा मुस्कुराते रहते थे, नाराज़ कभी नहीं होते थे। जेटली उभरते हुए नेता थे। डूसू के अध्यक्ष थे। जब इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी, उसी रात पुलिस अरुण जेटली को ढूंढते हुए उनके घर पहुंची थी लेकिन वो पीछे के दरवाजे से निकल गए। अगले दिन सुबह हम लोगों ने यूनिवर्सिटी में एक जुलूस निकाला, तानाशाही के खिलाफ नारे लगाए। अरुण जेटली ने कॉफी हाउस में टेबल के ऊपर खड़े होकर जोरदार भाषण दिया, और उसके बाद पुलिस ने चारों तरफ से घेरा डालकर उनको गिरफ्तार कर लिया। अरुण जेटली कई महीने अंबाला की जेल में रहे, फिर उन्हें दिल्ली के तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया। मैं भी उस वक्त तक तिहाड़ पहुंच चुका था। जेल में हम अलग-अलग वॉर्ड में थे लेकिन कभी-कभी मुलाकात हो जाती थी। अरुण जेटली के साथ उनके वॉर्ड में बड़े-बड़े नेता थे, उस वक्त के बड़े पत्रकार थे और वो उनके जीवनभर के मित्र बन गए। 19 महीने तक जेल में रहने के दौरान मैंने अरुण जेटली को और करीब से समझा, उनकी हिम्मत और उनकी ताकत को पहचाना। चुनाव हुए, जनता पार्टी की सरकार बनी। अरुण जेटली की उम्र कम थी इसलिए वो लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ सके लेकिन मुझे वो दिन कभी नहीं भूलता जब चन्द्रशेखर ने जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा की। इस कार्यकारिणी में मोरारजी देसाई, प्रकाश सिंह बादल, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, नानाजी देशमुख जैसे दिग्गजों के साथ 25 साल के अरुण जेटली भी का नाम भी था। लेकिन उन्हें कभी किसी पद का लालच नहीं था। संघ के नेताओं के कहने पर अरुण जेटली ने अगले ही दिन कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया। 
 
मोरारजी देसाई
पैंतालीस साल कोई छोटा वक्त नहीं होता। जेटली की यादें तो इतनी है कि समझ में ही नहीं आ रहा कि क्या क्या बताऊं। जब 1977 में हम दोनों जेल से निकले, तो मैंने ग्रेजुएशन कंपलीट किया और अरुण जी ने LLB में एडमीशन ले लिया। जेटली जी मुझे सियासत में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। मैंने डूसू का चुनाव लड़ा, जीत गया। उस वक्त तक देश में सरकार बदल चुकी थी। जनता पार्टी की सरकार थी। मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बन गए थे। जब मैं डूसू का चुनाव जीत गया तो अरुण जेटली से सलाह ली कि डूसू के उद्घाटन कार्यक्रम में किसे बुलाया जाए। तय हुआ प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को बुलाते हैं और अरुण जेटली को कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए बुलाया। उसके बाद तो जीवन में जो भी कार्यक्रम किया, हमेशा इच्छा होती थी कि अरुण जेटली ही उसकी अध्यक्षता करें।

Rajat Sharma's emotional tribute to Arun Jaitley: My friend, my ideal and my guide

जब मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई।

वकालत 
1977 में अरुण जेटली ने कानून की पढाई पूरी की। चूंकि उनके पिता दिल्ली के जाने माने वकील थे इसलिए वो पिता के साथ प्रैक्टिस करने लगे। उस वक्त भी मेरा जेटली का साथ नहीं छूटा। हम अक्सर उनके घर जाते थे, उनके घर में ही खाना होता था और देश के सियासी माहौल पर चर्चा। जेटली वकालत के साथ साथ राजनीति में भी कदम बढ़ा रहे थे। दिल्ली में ABVP के अध्यक्ष थे और ABVP के अकिल भारतीय सचिव भी। 1980 में बीजेपी का जन्म हुआ, अरुण जेटली को दिल्ली बीजेपी का सचिव बनाया गया। उसके बाद बाइस साल तक लगातार पार्टी का काम करते रहे। बीजेपी के प्रस्ताव ड्राफ्ट करते रहे, रणनीति बनाते रहे लेकिन न लोकसभा के सदस्य बने, न राज्यसभा के। लेकिन उन्होंने कभी भी पद और प्रतिष्ठा पर ध्यान ही नहीं दिया। उनको इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि उनके पास कोई पद है या नहीं।वो सिर्फ पार्टी के लिए काम करना चाहते थे और आखिरी वक्त तक करते रहे।

मल्टी टास्किंग 
अरुण जेटली जैसे मल्टी टास्किंग मैंने अपने जीवन में दूसरा नहीं देखा। जेटली पार्टी का काम भी करते थे, वकालत करते थे, मीडिया के लिए आर्टिकल लिखते थे, क्रिकेट में पूरी दिलचस्पी रखते थे, क्रिकेट के प्रशासक थे, फिल्में देखते थे, पुराने गाने सुनते थे, साहिर लुधियानवी हो या शकील बदायूनी, उनकी शायरी की एक एक लाइन उन्हें याद थी। गोपाल दास नीरज की कविता सुना देते थे। अरुण जेटली को खाने का शौक था। देश के किस कोने में कौन-सा खाना कहां अच्छा मिलता है, किसका रोगन जोश सबसे अच्छा है, किसके चिकन विंग्स सबसे अच्छे हैं, कबाब कौन अच्छे बनाता है और दाल कहां की बेहतरीन होती है- अरुण जेटली को एक एक जगह, एक-एक कोना मालूम था। थोड़े दिन पहले की बात है जब वो वित्त मंत्री थे। मैं उनके साथ उनके दफ्तर में लंच कर रहा था। उन्होंने मुझसे अचानक पूछा कि बताओ सबसे अच्चा रोगन जोश कहां मिलता है। मैंने जवाब दिया, मैं एक शाकाहारी हूं, मुझे कैसे पता चलेगा। अरुण ने कहा- मोती महल में सबसे अच्छा मिल सकता है, और उससे भी अच्छा अपने घर पर। अरुण जेटली के दोस्त, परिवार वाले और पार्टी के नेता सब उनके खाने के शौक के बारे में जानते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जेटली के इस शौक को अच्छी तरह जानते थे। जब 'आप की अदालत' शो के इक्कीस साल हुए, बड़ा प्रोग्राम हुआ, अरुण जेटली सामने बैठे थे., नरेन्द्र मोदी मंच पर पहुंचे तो मोदी ने पूछा कि कैसे दोस्ती है आप लोगों की? एक को खाने का शौक और दूसरा खाने से पहले सौ बार सोचता है।
 
सबसे कम उम्र के महाधिवक्ता
अरुण जेटली प्रतिभा के धनी थे, आकर्षक व्यक्तित्व था, कुशल वक्ता थे, हर विषय पर पकड़ थी, गहरी जानकारी थी, इसलिए हर कोई उन्हें पसंद करता था। जेटली दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट में बड़े बड़े केस लड़ रहे थे। उम्र सिर्फ पैंतीस साल थी। उस वक्त अरुण जेटली को दिल्ली हाईकोर्ट ने सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिया था लेकिन ये तो अरुण जेटली के लिए सिर्फ एक छोटा सा पड़ाव था। वो मेहनत से पीछे नहीं हटते थे, केस की स्टडी करते थे, हर बारीकी को देखते थे। जेटली की खूबी ये थी कि वो केस की बात करते वक्त परिवार की बात कर लेते थे, खाने के बारे में पूछ लेते थे, क्रिकेट को डिस्कस कर लेते थे, सामने वाले को लगता था कि वो उसकी बात पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, लेकिन जब बात खत्म होती थी, तो वे सवाल पूछना शुरू करते थे। तब समझ में आता था कि केस की एक-एक बारीकी उन्हें पता है। एक वक्त में कई सारे काम एक साथ करना उनकी बड़ी खूबी थी, इसीलिए वो देश के सबसे सफल वकील बने। चाहते तो चार-पांच केस लड़ते और एक करोड़ रुपया रोज कमा सकते थे लेकिन ज्यादातर केस वो फ्री में लड़ते थे और जिस दिन मौका लगा करोड़ों की कमाई छोड़ने का, उन्होंने एक मिनट भी नहीं सोचा, क्योंकि राजनीति उनका पहला पैशन (जुनून) थी। जब वह प्रतिपक्ष के नेता बने तो उन्होंने वकालत छोड़ दी। जेटली ने इतनी कम उम्र में बड़ी-बड़ी सफलताएं हासिल की। आप अरुण जेटली की काबलियत का अंदाजा इस बात से लगा सकते है कि जब वो सिर्फ 37 साल के थे, उस वक्त देश के एडिशनल सॉलीसिटर जनरल बन गए थे। ये अपने आप में एक रिकॉर्ड है। 1989 में वीपी सिंह की सरकार बनी। वीपी सिंह ने अरुण जेटली को सॉलीसिटर जनरल बनाया। बोफोर्स केस अरुण जेटली ने लड़ा, और सिर्फ अदालत में नहीं लड़ा,  इस केस को जनता की अदालत में ले गए। इसके बाद कांग्रेस का क्या हाल हुआ, वो इतिहास है।

Rajat Sharma's emotional tribute to Arun Jaitley: My friend, my ideal and my guide

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अरुण जेटली।

अटल जी के मंत्री
अरुण जेटली अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे भरोसमंद सलाहकार थे। 1999 तक सिर्फ संगठन में काम कर रहे थे। पहले तेरह दिन के लिए अटल जी की सरकार बनी, फिर13 महीने के लिए और फिर पूरे पांच साल के लिए। अटल जी ने अरुण जेटली से कहा कि वो उन्हें मंत्री बनाना चाहते हैं, जेटली कौन सा मंत्रालय लेना चाहेंगे। जेटली ने कहा कि वो संगठन में ही ठीक हैं, लेकिन अटल जी ने उन्हें मंत्री बनाया। 1999 में सिर्फ 47 साल की उम्र में अरुण जेटली केंद्र में मंत्री बने। सूचना और प्रसारण मंत्रालय दिया गया। अटल जी ने नए मंत्रालय बनाए थे, विनिवेश मंत्रालय और नौवहन मंत्रालय। दोनों मंत्रालयों के पहले मंत्री अरुण जेटली बने। इसके बाद कानून मंत्रालय और कंपनी अफेयर्स मंत्रालय की जिम्मेदारी भी अटल जी ने अरुण जेटली को सौंपी। इतनी कम उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी कोई छोटी बात नहीं थी लेकिन जेटली देश की उम्मीदों पर खरे उतरे। अटल जी ने मुझसे एक बार कहा था, अरुण जी के वगैर सरकार चलाना मुश्किल है और जेटली जी बार-बार संगठन में जाने की बात कहते हैं। अरुण जेटली 2003 में मंत्री पद छोड़कर संगठन में आ गए, पार्टी के प्रवक्ता बन गए, चुनाव की तैयारी करने लगे लेकिन अटल जी ने उन्हें फिर वापस बुलाया, उन्हें दोबारा मंत्री बनाया।
 
व्यक्तिगत रिश्ता
मेरा और अरुण जी का साथ पुराना था। वो हर बात मुझसे शेयर करते थे। मेरी जिंदगी के हर फैसले में उनकी सलाह ही अन्तिम होती थी। आज मेरा ख्याल रखने वाले, हर दुख-सुख में मेरे साथ खड़े होने वाले, मेरे गाइड, मेरे दोस्त अरुण जेटली हमेशा के लिए चले गए। अरुण जेटली के जाने का गम पूरे देश में है लेकिन उनका जाना मेरे लिए बहुत बड़ी क्षति है, कभी न खत्म होने वाला गम है। हम दोनों शुरू से ABVP में थे, साथ-साथ बढ़े, साथ-साथ संघर्ष किया, साथ-साथ देश को बदलते देखा, देश की सियासत को बदलते देखा, अटल जी का पास साथ साथ जाते थे, अटल जी के साथ मेरा रिश्ता परिवार की तरह था, लेकिन ये रिश्ता अरुण जी के कारण बना। अरुण जेटली को अपनी प्रतिभा, अपनी मेहनत पर यकीन था, इसलिए उनको कभी किसी से खतरा महसूस नहीं हुआ। वह सबको आगे बढ़ाने की कोशिश करते थे, सबकी मदद करते थे। अरुण जेटली मेरे दोस्त थे, गाइड थे, मार्गदर्शक थे, वो राज्यसभा के सदस्य बने, अटल जी की सरकार में मंत्री बने, लेकिन 'आपकी अदालत' में पहली बार तब आए बीजेपी विपक्ष में थी। 2005 में अरुण जेटली पहली बार 'आपकी अदालत' में मेरे मेहमान बने। अरुण जेटली की विश्वसनीयता, पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा और उनकी ईमानदारी पर तो विरोधी भी आंख बंद करके यकीन करते थे। अरुण जेटली सौ प्रतिशत खरा सोना थे, सोलह आना ईमानदार नेता थे। वो जीवन भर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहे।

वकालत छोड़ी
अरुण जेटली देश के सबसे बड़े वकील थे। करोड़ों की कमाई कर सकते थे लेकिन जैसा मैंने आपको बताया कि राजनीति उनका पैशन (जुनून) था, वो जनता की सेवा करना चाहते थे, इसलिए जब राज्यसभा में विपक्ष के नेता बने, तो उन्होंने वकालत छोड़ दी, अपनी वकालत का लाइसेंस लौटा दिया।

पक्के पंजाबी
अरुण जेटली पंजाबी थे लेकिन उनकी शिक्षा दीक्षा, वकालत और राजनीति- सब दिल्ली में हुई, इसलिए जब पार्टी ने अरुण जेटली को अमृतसर से चुनाव लड़ने भेजा तो मुझे भी हैरानी हुई, लेकिन जेटली ने पार्टी के आदेश को माना। अमृतसर चुनाव लड़ने पहुंच गए, विरोधियों ने कैंपेन में उन्हें आउटसाइडर कहा। 'आप की अदालत' में मैंने अरुण जेटली से इसके बारे में पूछा, तो जेटली ने बहुत ही इंटरेस्टिंग जवाब दिया। उन्होंने कहा- उनकी रगों में पंजाबी खून है, और क्या चाहिए।

नोटबंदी
अरुण जेटली की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि वो हिम्मत वाले इंसान थे, न मुसीबतों से डरते थे, न घबराते थे, जो सही लगता था, वो फैसला लेने में हिचकते नहीं थे। अरुण जेटली का नरेंद्र मोदी की सरकार में वही रोल था जो शरीर में दिमाग का होता है। नरेन्द्र मोदी अरुण जेटली पर आंख बंद करके यकीन करते थे और अरुण जेटली भी हर वक्त चट्टान की तरह सरकार के फैसलों के साथ खड़े रहे। जब मोदी सरकार ने नोटबंदी का साहसिक फैसला किया, विरोधी दलों ने देशभर में इस फैसले के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया, कांग्रेस के नेताओं ने इल्जाम लगाया कि मोदी ने देशभर की जनता को लाइन में खड़ा कर दिया हैं, देश भर से जो तस्वीरें आ रही थी, उन्हें देखकर मैं भी परेशान था। जब अरुण जेटली 'आपकी अदालत' में आए मैंने भी उनसे तीखे सवाल पूछे तो 'आपकी अदालत' में उन्होंने देश को समझाया कि कैसे नोटबंदी का फैसला देश के हित में है।

जीएसटी
नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में अर्थव्यवस्था को लेकर दो बड़े ऐतिहासिक फैसले लिए, जो आने वाली कई पीढ़ियों तक याद किए जाएंगे। एक फैसला नोटबंदी का था और दूसरा फैसला था जीएसटी लागू करना। जीएसटी यानि ढेर सारे टैक्सों से आजादी, पूरे देश में एक जैसा टैक्स सिस्टम। सरकार के इस फैसले को दूसरी आजादी भी कहा गया। दोनों फैसले कठिन थे लेकिन ये दोनों फैसले नरेन्द्र मोदी इसलिए कर पाए क्योंकि उनके पास अरुण जेटली जैसा काबिल और ब्रिलिएंट वित्त मंत्री था। ये फैसले लागू कराना आसान नहीं था। जीएसटी के फैसले को लेकर भी उस वक्त सवाल उठे, जीएसटी को लेकर लोगों के मन में, कारोबारियों के मन में कई आशंकाएं थीं, अरुण जेटली ने जीएसटी को लेकर लोगों के डर को दूर किया, ये भी बताया कि जीएसटी क्यों जरुरी था।

बालाकोट हमला
अरुण जेटली सबसे ज्यादा बार 'आपकी अदालत' में आए और कभी ये उम्मीद नहीं की कि मैं सवाल पूछते वक्त उनसे व्यक्तिगत रिश्तों को याद रखूं। मैंने कड़े सवाल पूछे और उन्होंने तीखे जबाव दिए, लेकिन रिश्तों पर कभी इसका रत्ती भर भी असर नहीं पड़ा। अरुण जेटली इसी साल आखिरी बार 'आप की अदालत' में आए थे। पुलवामा आतंकी हमले के बाद हमारी वायु सेना ने बालाकोट में एयरस्ट्राइक की थी, लेकिन विरोधी दल सेना के शौर्य के सबूत मांग रहे थे। ये बात अरुण जेटली को सबसे ज्यादा चुभी। जब वो 'आपकी अदालत' में आए तो विरोधियों को उन्होंने तीखा जबाव दिया और याद दिलाया कि कैसे अमेरिका ने एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन का काम तमाम करने के बाद उसकी लाश को समुद्र में फेंका लेकिन दुनिया को आज तक उसकी पूरी जानकारी नहीं दी।

शनिवार को मैं दिनभर अरुण जेटली के साथ था। पहले वो खूब बोलते थे, लेकिन अब खामोश हैं। जेटली को इस तरह खामोश लेटा देखकर दिल कांप रहा था। चूंकि जेटली बार-बार कहते थे, तमाम परेशानियों के बाद भी काम नहीं रुकना चाहिए, इसलिए मैं आपके सामने आया, 'आज की बात 'शो किया। मुझे आज भी पैंतालीस साल पहले हुई अरुण जेटली की मुलाकात याद है और उनके साथ हुई आखिरी बातचीत भी ताउम्र याद रहेगी। जेटली अस्पताल जाने से कुछ दिन पहले अपने घर में मुझसे बात कर रहे थे। बातों-बातों में अचानक उन्होंने कहा कि पंडित जी जीवन में सबकुछ तो पा लिया, स्टूडेंट लीडर बना तो टॉप पर पहुंचा, वकालत की तो टॉप पर पहुंचा, राजनीति में गया तो नेता प्रतिपक्ष बना, मंत्री बना, जीवन में बच्चे सेटल हैं, तुम्हारा काम भी ठीक चल रहा है, अब और कोई इच्छा नहीं है। अगर बच गया, तो राजनीति छोड़ दूंगा, किताबें पढ़ूंगा, किताबें लिखूंगा। लेकिन आज जब जेटली के जाने की खबर मिली तो मैंने भगवान से शिकायत की, कि एक अच्छे नेक और ईमानदार इंसान को अपने पास बुलाने की इतनी जल्दी क्या थी। जब उनकी सभी इच्छाएं पूरी की, तो सुकून से बैठकर किताबें लिखने की इच्छा पूरी क्यों नहीं की?

मैंने एक दोस्त, मार्गदर्शक और अभिभावक खो दिया: अरुण जेटली को रजत शर्मा की भावभीनी श्रद्धांजलि | देखें

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