मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के लिए विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया। चुनाव आयोग की इस घोषणा के तुरंत बाद तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी एक प्रेस कॉन्फ्रेस बुलाई और यह आरोप लगाया कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर काम कर रहा है और भाजपा के मुताबिक ही चुनाव तारीखों की घोषणा की गई है।
ममता की नाराजगी की वजह: पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में वोट डाले जाएंगे, जबकि तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में एक ही दिन में मतदान होगा। ममता को लगता है कि पश्चिम बंगाल में 8 चरण में चुनाव इसलिए कराए गए हैं कि पीएम मोदी को वहां प्रचार करने के लिए ज्यादा टाइम मिल सके। यही वजह है कि इसके लिए एक जिले को भी दो या तीन हिस्सों में बांटकर मतदान की तारीखें तय की गई हैं। जहां ममता चुनाव आयोग के फैसले पर आपत्ति जता रही हैं वहीं बंगाल के अन्य प्रमुख राजनीतिक दल, कांग्रेस और सीपीआई (एम) में से किसी ने भी इस पर आपत्ति नहीं जताई। ममता बनर्जी ने यहां तक आरोप लगाया कि बंगाल चुनाव का पूरा शेड्यूल राज्य भाजपा दफ्तर में कई दिन पहले ही उपलब्ध था।
पांच साल पहले पिछले विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला कांग्रेस और सीपीएम से था। इस बार ये दोनों मिलकर ममता के खिलाफ लड़ रहे हैं पर ममता को इनकी ज्यादा परवाह नहीं है, क्योंकि उनकी पार्टी का मुकाबला बीजेपी से है। पश्चिम बंगाल में 27 मार्च से 29 अप्रैल तक आठ चरण में मतदान होंगे और चुनाव के इस पूरे शेड्यूल ने ममता की परेशानी बढ़ा दी है। हालांकि शुक्रवार को तृणमूल सुप्रीमो ने कहा कि उनकी पार्टी की जमीनी पकड़ बहुत मजबूत है और वह चुनाव में बीजेपी के ऊपर बड़ी जीत हासिल करेगी।
ममता बनर्जी ने 2016 के विधानसभा चुनाव में भी इसी तरह का एतराज जताया था। इस चुनाव में छह चरणों में मतदान हुआ था। उस वक्त भी ममता ने यही कहा था कि चुनाव आयोग भेदभाव कर रहा है। लेकिन नतीजे ममता बनर्जी के पक्ष में रहे थे और उनकी पार्टी को शानदार जीत मिली थी। विधानसभा की 294 सीटों में से टीएमसी 211 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। कांग्रेस को केवल 44 सीटें मिली थी जबकि बीजेपी सिर्फ तीन सीटें जीत सकी थी।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि ममता फाइटर हैं। वह आसानी से हार नहीं मानती हैं और यही उनकी जीत का राज है। इसीलिए बंगाल की जनता ने उन्हें दो बार (10 वर्ष) शासन का मौका दिया। लेकिन इस बार हालात पिछली बार के मुकाबले अलग हैं। ममता के कई सहयोगियों ने उनका साथ छोड़ दिया है और वे बीजेपी में शामिल हो गए हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी चौथे नंबर की पार्टी थी और उसे सिर्फ तीन सीटें मिली थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की और ममता को चिंता में डाल दिया।
2019 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 43.3 प्रतिशत वोट मिले जबकि बीजेपी को 40.7 प्रतिशत वोट मिले थे। इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 2 करोड़ 47 लाख 56 हजार 985 वोट मिले थे जबकि बीजेपी को कुल 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 343 वोट मिले। मतलब ये है कि बंगाल में बीजेपी तृणमूल कांग्रेस को बराबर की टक्कर दे रही है। इन वजहों से ममता की नींद हराम हो रही है। इसीलिए ममता अब बंगाल में बंगाली बनाम बाहरी को मुद्दा बना रही हैं। बंगाल के लोगों को ये समझाने की कोशिश कर रही हैं कि बीजेपी के लोग बाहरी हैं। बाहरी लोग आएंगे तो बंगाल की संस्कृति को खत्म करेंगे।
ममता बनर्जी चुनाव की तारीखों से इतनी परेशान क्यों है ये समझने की जरूरत है। तृणमूल कंग्रेस के लिए वह अकेली ऐसी कैम्पेनर (प्रचारक) हैं जिनकी बात का असर होता है। उनकी चुनावी सभाओं में भीड़ जुटती है। टीएमसी में कोई ऐसा नेता नहीं है जिसके अंदर भीड़ को आकर्षित करने की ममता जैसी क्षमता हो। बीजेपी की तरफ से जहां पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह लगातार कई रैलियां कर चुके हैं, वहीं पीएम नरेंद्र मोदी भी 2 रैलियां कर चुके हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और टेक्स्टाइल मंत्री स्मृति ईरानी भी रैलियां कर रही हैं। वहीं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और फायरब्रांड लीडर योगी आदित्यनाथ भी चुनाव प्रचार में उतरने वाले हैं। बंगाल में मार्च के दूसरे हफ्ते से शुरू होकर अप्रैल के अंत तक करीब 45 दिनों तक चुनाव प्रचार चलेगा।
ममता बनर्जी ने शुक्रवार को एक और चाल चली। चुनाव की तारीखों का ऐलान होने और आचार संहिता लागू होने से कुछ घंटे पहले उन्होंने बंगाल में कॉन्ट्रैक्ट लेबर्स की मजदूरी बढ़ाने का ऐलान कर दिया। चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ममता बनर्जी ने भगवान का आशीर्वाद भी लिया। ममता बनर्जी के कालीघाट स्थित घर पर विशेष पूजा हुई। इस पूजा का आयोजन ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने किया। वह खुद पूजा के दौरान मौजूद थे। इस विशेष पूजा के लिए पुरी के जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी को बुलाया गया था। यह बंगाल में बहुसंख्यक बंगाली हिंदू मतदाताओं को संदेश देने के लिए एक दिखावा था कि वह हिंदू रीति-रिवाजों को मानती है।
असल में पिछले साल भर में बीजेपी ने बंगाल की जनता को ये समझाया है कि ममता बनर्जी को हिंदुओं की परवाह नहीं है। बीजेपी बार-बार ये कहती है कि ममता बनर्जी को ना दुर्गा से मतलब है ना ही बजरंग बली से। वह हिंदू देवी-देवताओं को नहीं मानती हैं। साथ ही ये बात भी ममता के साथ से चिपक गई कि वो 'जय श्रीराम' के नारे से चिढ़ती हैं। आपको याद होगा कि पीएम मोदी की मीटिंग में 'जय श्री राम' के नारे पर उन्होंने आपत्ति जताई थी। इसीलिए ममता को बार-बार दिखाना पड़ता है कि वह भी कम हिंदू नहीं हैं। ममता अपनी सभाओं में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों के बारे में बताती हैं, धारा प्रवाह दुर्गा स्तुति पढ़ती हैं। लेकिन हिंदुओं को लुभाने के चक्कर में, मंच से मंत्र पढ़ने के चक्कर में, कई जगह मुसलमानों के मन में ममता को लेकर सवाल पैदा हो गए हैं।
लेफ्ट फ्रंट और फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के बीच सीटों का समझौता इसका सबूत है। अब्बास सिद्दीकी ने ममता का साथ छोड़ दिया है। लेफ्ट और इंडियन सेक्युलर फ्रंट के बीच 30 सीटों पर सहमति बनी है। मुस्लिम मतदाताओं पर फुरफुरा शरीफ के पीरजादा का असर माना जाता है। इडिया टीवी संवाददाता अर्चना सिंह के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने कहा कि ममता बनर्जी को सत्ता से हटाने के लिए गठबंधन जरूरी था। इस बार मुसलमान मिलकर ममता के खिलाफ वोट करेंगे क्योंकि बंगाल में ममता ही बीजेपी को लाई हैं। दीदी-मोदी एक ही हैं।
अब्बास सिद्दीकी की कांग्रेस के साथ भी सीट बंटवारे को लेकर बातचीत चल रही है।दोनों के बीच सीटों को लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई है। इसके दो कारण है-पहला ये कि पीरजादा कांग्रेस 70 सीटों की मांग कर रहे हैं जो कांग्रेस बिल्कुल नहीं देना चाहती और दूसरा कारण ये कि कांग्रेस चाहती है कि असद्दुदीन ओवैसी किसी हाल में इस गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे। जब तक ये क्लियर नहीं होगा तब तक कांग्रेस आगे नहीं बढ़ेगी। ओवैसी ने पीरजादा से दो हफ्ते पहले मुलाकात की थी, लेकिन पीरजादा ने लेफ्ट के साथ सीट गठबंधन का विकल्प चुना। हालांकि ओवैसी को अभी आईएसएफ के साथ गठबंधन की उम्मीद है।
कुल मिलाकर झगड़ा मुस्लिम वोटों का है। पश्चिम बंगाल में 28 से 30 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं। ममता ने 40 वर्ष की अपनी राजनीति में इस वोट बैंक को हमेशा काफी संभाल कर रखा है। मुस्लिम मतदाताओं ने एक मुश्त उनके पक्ष में वोट दिया। उनके समर्थन के बिना ममता सत्ता में बने रहना का सपना नहीं देख सकतीं, लेकिन अब वक्त बदल चुका है।
अल्पसंख्यक तुष्टिकरण का भाजपा का आरोप अधिकांश बंगाली हिंदू मतदाताओं के मन में घर कर गया है। बीजेपी कार्यकर्ता मतदाताओं को ये बता रहे हैं कि ममता ने अपने सिर पर सफेद दुपट्टा कैसे पहना था और हर त्योहार के पर मुसलमानों को बधाई देने वाले विज्ञापन प्रकाशित कराए। बीजेपी कार्यकर्ता यह भी याद दिला रहे हैं कि ममता सरकार ने दुर्गा विसर्जन के मुकाबले ताजिए को तरजीह दी। उन्होंने इमामों की तन्ख्वाह बढ़ाई, लेकिन हिंदू मंदिर के पुजारियों का ध्यान नहीं रखा। अब ममता अपनी हिंदू साख को साबित करने की कोशिश कर रही हैं वहीं लेफ्ट पार्टी बंगाल में पुराना वैभव पाने की कोशिश कर रही है।
अब तक ममता बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत ये रही कि वह एग्रेसिव कैम्पेनर हैं, लेकिन इस बार मामला उल्टा है। बीजेपी के नेता एग्रेसिव हैं और ममता डिफेंसिव हैं। इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है। यह अब इस बात पर निर्भर करता है कि आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बीजेपी का चुनाव अभियान कैसे आगे बढ़ता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि बीजेपी की स्थिति अभी मजबूत है और ममता संघर्ष कर रही हैं। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 26 फरवरी, 2021 का पूरा एपिसोड