विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की जीत का दिन है, यह अन्याय पर न्याय की जीत का दिन है, लेकिन किसान आंदोलन के धरने का केंद्र दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर से जो दर्दनाक तस्वीरें आईं वो अन्याय की ऐसी दास्तान है जो किसी को भी अंदर तक हिलाकर रख देगी। सिंघु बॉर्डर पर हैवानियत की सारी हदें पार कर दी गईं। किसानों के धरनास्थल पर निहंगों के एक समूह ने एक शख्स की काट-काट कर हत्या कर दी गई, उसका अंगभंग कर उसे पुलिस बैरिकेड पर लटका दिया गया। जिस शख्स की हत्या की गई उसका नाम लखबीर सिंह था। वह पंजाब के तरनतारन जिले का रहने वाला एक दैनिक वेतनभोगी मजदूर था और किसानों के धरनास्थल पर ही रहता था। लखबीर की हत्या के आरोप में पुलिस सरबजीत सिंह को गिरफ्तार किया है। प्रताड़ना देकर हत्या करने की इस बर्बर घटना से पिछले कई महीनों से चल रहे किसान आंदोलन एक बार फिर बदनाम हुआ है। इस अमानवीय और बर्बर कृत्य ने सारी हदें पार कर दी हैं।
यह घटना शुक्रवार तड़के 3.30 बजे के करीब हुई। निहंगों ने आरोप लगाया कि इस शख्स ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी इसलिए उसे सजा दी गई। लखबीर पर आरोप लगाया गया कि उसने पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की इसलिए उसे 'दंडित' किया गया। उसका अंग भंग करके उसकी हत्या की गई। उसका दाहिना हाथ काट दिया गया और पांव की हड्डियां तोड़ दी गईं। यह सब उस मंच के पास हुआ जहां किसान नेता आम तौर पर बैठकर भाषण देते हैं। घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने दर्द से कराहते इस शख्स का वीडियो तो बनाया लेकिन किसी ने उसकी जान बचाने की कोशिश नहीं की। किसी को उस पर रहम नहीं आया। अंगभंग करने के बाद उसे पुलिस बैरिकेड्स पर लटका दिया गया।
पुलिस को भी धरनास्थल पर घटना के चार घंटे बाद दाखिल होने की इजाजत दी गई। जब सोशल मीडिया पर इस बर्बर हत्याकांड के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे तब किसान नेताओं ने ऐलान किया कि इस बर्बर घटना से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
जो वीडियो और तस्वीरे सामने आईं हैं वे दिल दहलाने वाली हैं। कलेजे को छलनी करनेवाली हैं। पहले लखबीर सिंह को पीटकर उसे अधमरा कर दिया गया। वो अपनी जान की भीख मांग रहा था लेकिन वहां मौजूद लोगों ने एक बात नहीं सुनी। 35 साल का यह शख्स अपनी आखिरी सांस तक गिड़गिड़ाता रहा लेकिन उसका हाथ काटकर अलग कर दिया गया, शरीर से खून निकलता रहा और फिर किसान आंदोलन के मंच के पास पुलिस बैरिकेड्स पर उल्टा लटका दिया गया।
ये बात सही है कि गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी नहीं होनी चाहिए थी लेकिन ये भी सही है कि आरोपी की हत्या भी नहीं होनी चाहिए थी। उसे कानून के द्वारा दंडित किया जाना चाहिए थ। कुछ लोगों या फिर किसी समूह को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती। जब लखबीर खून ज्यादा बह जाने के कारण होश खो बैठा तब कुछ लोगों ने उसके हाथ-पैर में रस्सी बांधी। वहां निहंगों द्वारा खुलेआम तलवारें लहराई गईं और धार्मिक नारे लगाए गए। पांव में रस्सी बांधकर उसे घसीटकर किसान आंदोलन के मंच के पास ले जाया गया। वहां उसे उल्टा लटकाया गया। कुछ देर बाद उसके शव को पुलिस बैरिकेड पर ले जाकर लटका दिया गया।
सिंघु बॉर्डर पर पांच किलोमीटर का इलाका ऐसा है जो किसानों के कब्जे में है। इस इलाके में किसानों का आंदोलन चल रहा है। यहां सुरक्षा के लिए किसान नेताओं ने खुद अपने वॉलेंटियर लगाए हुए हैं। उनका कहना है कि इस जगह पुलिस की कोई जरूरत नहीं क्योंकि धरना शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। लॉ एंड ऑर्डर की कोई समस्या नहीं होगी। लेकिन इस बर्बर हत्या का वीडियो जब सर्कुलेट होने लगा तो सोनीपत पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची। लेकिन पुलिस की टीम को भी काफी देर तक घटनास्थल तक नहीं पहुंचने दिया गया। बड़ी मशक्कत के बाद पुलिस को घटनास्थल पर जाने दिया गया। पुलिस ने बैरिकेड से शव को उतारा और पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर पवन नारा ने घटनास्थल पर मौजूद कुछ निहंगों से बात की। निहंगों का कहना था कि ये मामला सुबह साढे तीन बजे के आसपास का है। उस वक्त लखबीर सिंह पवित्र गुरु ग्रंथ साहब को उठाकर ले जा रहा था। उसने तलवार भी ली हुई थी। वो महाराज साहब की बेअदबी कर रहा था इसीलिए उसे पकड़कर निहंगों की फौज के हवाले कर दिया। एक निहंग ने बताया-'हमने उसके हाथ से तलवार छीनी फिर उससे पवित्र ग्रंथ के बारे में पूछा, उसने वह जगह बताई और फिर पवित्र ग्रंथ को वहां से उठाया गया। इसके बाद उसे सजा दी गई।'
निहंगों का कहना था कि लखबीर के साथ जो कुछ हुआ उसका कोई अफसोस नहीं क्योंकि उसने पवित्र ग्रंथ के साथ बेअदबी की थी। एक निहंग ने कहा-'हम उसे मंच के पीछे ले गए और उसका हाथ काट दिया।' एक चश्मदीद ने कहा, 'जब उसके शरीर से बहुत सारा खून बह गया तो उसकी मौत हो गई।' एक निहंग ने कहा- 'उसने हमारे पवित्र महाराज, उनके कपड़े और तलवार को अपवित्र किया। जो कोई भी फिर से ऐसा करने की हिम्मत करेगा उसका सिर काट दिया जाएगा।'
किसान नेता पिछले 10 महीने से यह दावा कर रहे हैं कि उनका आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है लेकिन उनके मंच के सामने इस तरह से एक शख्स की बर्बर हत्या से सवाल उठना स्वभाविक है, चाहे इस हत्या की वजह कुछ भी रही हो। किसान नेताओं को इन सवालों का जवाब देने की जरूरत है।
पुलिस द्वारा शव ले जाने के कुछ घंटे बाद संयुक्त किसान मोर्चा का बयान आया। बयान में कहा गया-'संयुक्त किसान मोर्चा इस नृशंस हत्या की निंदा करते हुए यह स्पष्ट कर देना चाहता है कि इस घटना के दोनों पक्षों, इस निहंग समूह/ग्रुप या मृतक व्यक्ति, का संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है। हम किसी भी धार्मिक ग्रंथ या प्रतीक की बेअदबी के खिलाफ हैं, लेकिन इस आधार पर किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है। हम यह मांग करते हैं कि इस हत्या और बेअदबी के षड़यंत्र के आरोप की जांच कर दोषियों को कानून के मुताबिक सजा दी जाए। संयुक्त किसान मोर्चा किसी भी कानून सम्मत कार्यवाही में पुलिस और प्रशासन का सहयोग करेगा।'
ये तो किसान मोर्चा की तरफ से एक लिखित बयान था लेकिन जब किसान नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो इस घटना में उन्हें साजिश नजर आने लगी। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा- 'लगता है कि लखबीर सिंह को जानबूझकर किसी ने धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए भेजा था और इसके लिए उसे 30 हजार रुपए दिए गए।' मृतक लखबीर सिंह पंजाब में तरनतारन के चीमाखुर्द गांव का रहनेवाला दलित युवक था। लखबीर का कोई आपराधिक इतिहास नहीं और किसी भी पॉलिटिकल पार्टी से भी कोई संबंध नहीं था। वह निहंग समूह के साथ सेवादार का काम करता था। डल्लेवाल ने बताया कि लखबीर कुछ दिन पहले धरना स्थल पर आया था। एक अन्य किसान नेता हन्नान मुल्ला ने आरोप लगाया कि ये सबकुछ किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए हो रहा है, यह एक साजिश है।
सिंघु बॉर्डर पर जो हुआ उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता। किसी शख्स को सरेआम लटका देना, उसके हाथ काटना, पैर तोड़ना,तड़पा-तड़पा कर मार डालना..कोई धर्म, समाज या कोई कानून इसकी इजाजत नहीं देता। साथ ही अगर किसी शख्स ने पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब का अपमान या बेअदबी की तो उसे किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
सही तरीका तो यह होता कि जिस शख्स ने पवित्र ग्रंथ के साथ बेअदबी की उसे पकड़कर पुलिस के हवाले किया जाना चाहिए था। लेकिन किसान आंदोलन में जो लोग धरने में बैठे हैं वो ना तो पुलिस को कुछ समझते हैं, ना किसी कानून को मानते हैं। वे लोग ना संसद, ना सरकार और ना सुप्रीम कोर्ट को मानते हैं, इसीलिए ऐसी घटनाएं होती हैं।
मुझे आश्चर्य है कि सिंघु बॉर्डर पर इतना बर्बर हत्याकांड हुआ। वहां बैठे लोगों ने किया और उसके वीडियो हैं, सारे सबूत हैं तो भी किसान नेता इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हैं। वो कहते हैं कि पुलिस को एक्शन लेना चाहिए था। लेकिन सच ये है कि सिंघु बॉर्डर पर जहां किसान संगठन धरना दे रहे हैं वहां तो पुलिस की एंट्री बैन है। इतनी भयानक घटना होने के बाद भी पुलिस को वहां कई घंटे बाद आने दिया गया। वहां बाहर से कोई आ-जा नहीं सकता। तो फिर किसान संगठनों के नेता ये कैसे कह सकते हैं कि निहंग ग्रुप से या मरने वाले व्यक्ति से उनका कोई लेना देना नहीं है।
जिस जगह पर पूरी तरह से किसान संगठनों का कब्जा है वहां इस तरह की घटना कोई पहली बार नहीं हुई है। एक बार एक युवक को जिंदा जला दिया गया था। एक बार बलात्कार की घटना हुई थी। उस महिला की बाद में मौत भी हो गई थी। इसी जगह पर पुलिस के दो ASI पर हमला हुआ था। इसी जगह से लालकिले पर पहुंचे लोगों ने तलवार और फरसे चलाए थे और तिरंगे का अपमान किया था। अगर उस समय किसान नेता संभल जाते और उन घटनाओं को आंदोलन को बदनाम करने की साजिश बताकर दबाने की कोशिश ना की जाती तो आज इतनी भयानक घटना नहीं होती। तीन बच्चियों के सिर से उसके पिता का साया नहीं उठता। इस घटना से किसान आंदोलन की साख कम हुई है। अब किसान संगठनों के नेताओं को चाहिए कि वो पुलिस का सहयोग करें। ये नेता जानते हैं कि अपराधी कौन हैं, हत्यारे कौन हैं। उन्हें पुलिस को सौंप कर सजा दिलवाई जानी चाहिए। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 15 अक्टूबर, 2021 का पूरा एपिसोड