बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता जब हमने वे विजुअल्स देखे थे जिनमें बड़ी संख्या में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज न्यूयॉर्क, इटली और स्पेन के अस्पतालों में जा रहे थे लेकिन वहां बिस्तर खाली नहीं थे, और मरने वालों की संख्या रोज बढ़ रही थी। अब दिल्ली और मुंबई के अस्पताल भी ऐसी ही विकट स्थिति में हैं। पूरे भारत में हालात चिंताजनक है। एक दिन में सबसे ज्यादा 295 मौतों के साथ भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण से जान गंवाने वालों की संख्या 6,643 तक पहुंच गई है।
शुक्रवार को कोरोना वायरस से संक्रमण के 9,377 नए मामले सामने आए और 2,36,117 मामलों के साथ भारत अब इटली को पीछे धकेलते हुए छठे स्थान पर आ गया है। दिल्ली और मुंबई में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां अस्पतालों ने गंभीर रूप से बीमार COVID रोगियों को भर्ती करने से इनकार कर दिया। अस्पतालों द्वारा मरीजों को भर्ती न किए जाने के चलते उनकी मौत हो रही है।
मैं कुछ उदाहरण देता हूं। दिल्ली के गंगाराम अस्पताल ने 9 महीने की गर्भवती महिला को भर्ती करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसे COVID पॉजिटिव पाया गया था। महिला के घरवालों ने आरोप लगाया कि अस्पताल ने उसको भर्ती करने के लिए 5 लाख रुपये की मांग की थी। चूंकि परिवार गरीब था, इसलिए वे केवल दो लाख रुपये ही जुटा पाए। इस प्राइवेट अस्पताल ने तब परिजनों से कहा कि वे महिला को किसी सरकारी अस्पताल ले जाएं जहां मुफ्त में इलाज होता है। बाद में, अस्पताल प्रशासन ने अपनी गलती मानते हुए महिला के इलाज का पूरा खर्चा वहन करने का वादा किया।
मुंबई में डायबिटिज से पीड़ित 69 साल की एक मरीज को गॉल ब्लैडर की सर्जरी करानी थी, लेकिन वह COVID पॉजिटिव पाई गईं। शनिवार को मरीज का ऑक्सिजन लेवल 50 पर्सेंट गिर गया। मरीज के इंजीनियर बेटे ने बीएमसी हेल्पलाइन को फोन किया, लेकिन बताया गया कि किसी भी अस्पताल में जगह नहीं है। उन्होंने लगभग एक दर्जन अस्पतालों से संपर्क किया और उन सभी ने इनकार कर दिया। रात करीब 9:30 बजे एक प्राइवेट अस्पताल मरीज को भर्ती करने के लिए तैयार हो गया। बेटे ने एक एम्बुलेंस ड्राइवर से संपर्क किया, जिसने मरीज को सिर्फ 300 मीटर की दूरी तक ले जाने के लिए 8,000 रुपये मांगे। ड्राइवर ने दावा किया कि उसके मालिक ने उससे हर मरीज से 8,000 रुपये किराया लेने के लिए कहा है। अंत में महिला ने कुर्ला स्थित अपने घर में ही दम तोड़ दिया।
मुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर ने इंडिया टीवी को बताया कि सामान्य दिनों में शहर में लगभग 3,000 एम्बुलेंस उपलब्ध थीं, लेकिन अब इनकी संख्या घटकर सिर्फ 100 रह गई है। मेयर ने कहा कि ज्यादातर एम्बुलेंस ड्राइवर COVID के डर से काम करने को तैयार नहीं हैं, जिसके चलते ऐसी स्थिति पैदा हुई है। यह हालत उस महानगर की है जहां 45 हजार COVID मरीज हैं। मुंबई के जोगेश्वरी में 55 साल के एक मरीज को 7 अस्पतालों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया और उसने व्हील चेयर पर ही दम तोड़ दिया। दिल्ली की नंद नगरी में रहने वाले और कोरोना वायरस से संक्रमित 75 वर्षीय मोती राम गोयल ने दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था ताकि वह उन्हें सरकारी अस्पताल में बिस्तर उपलब्ध करवाने का निर्देश दे। हाई कोर्ट के समक्ष अपील दायर करने के 2 घंटे बाद ही 3 जून को गोयल की मृत्यु हो गई।
दिल्ली के ही रहने वाले एक अन्य शख्स लखजीत सिंह को सुबह 7.30 बजे एलएनजेपी अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने पूछा कि उनका कोरोना टेस्ट कहां किया गया था, और जब उनके बेटे ने कहा कि टेस्ट गंगाराम अस्पताल में किया गया था, तो उन्हें अपने पिता को गंगाराम अस्पताल ले जाने के लिए बोला गया। बेटे ने डॉक्टरों से मदद की गुहार लगाई, जिसके बाद मरीज को जबरन एक स्ट्रेचर पर लादकर अस्पताल के अंदर ले जाया गया, फिर किसी तरह एक ऑक्सीजन सिलिंडर मंगवाया गया, लेकिन तब तक सांस लेने की कोशिश में बुरी तरह हांफ रहे उस बुजुर्ग की मौत हो चुकी थी। एलएनजेपी अस्पताल के अधिकारियों ने बाद में दावा किया कि मरीज को 'मृत अवस्था में लाया गया था', जो कि एक सफेद झूठ है।
निगम द्वारा संचालित बारा हिन्दुराव अस्पताल ने COVID स्वैब टेस्ट करना बंद कर दिया है। कुछ डॉक्टरों समेत लगभग 50 लोगों को, जो वहां टेस्ट कराने के लिए गए थे, लौटा दिया गया। यह अस्पताल NCDC (नेशनल सेंटर फॉर डिजीज़ कंट्रोल) को सैंपल भेजता था, जो फिर रिपोर्ट जारी करता था। एनसीडीसी ने कहा, हाल के दिनों में उनका बैकलॉग बढ़ गया है जिसके चलते वे और ज्यादा सैंपल्स नहीं ले सकते। अस्पताल ने तब नोएडा में एक लैब से संपर्क किया, लेकिन उसने भी सैंपल्स लेने से मना कर दिया।
मुंबई के पास स्थित ठाणे की एक प्राइवेट लैब में डांसर, कलाकार और जमादार को नियुक्त करके COVID स्वैब के सैंपल्स लिए गए। इनमें से किसी के भी पास इसकी तकनीकी जानकारी नहीं थी।इस पैथ लैब को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने COVID टेस्ट करने की मंजूरी दी थी। इस लैब में काम करने वाले 10 लोगों में से अधिकांश नॉन-टेक्निकल लोग हैं। लैब के मालिक ने इंडिया टीवी के रिपोर्टर को बताया कि जब उनकी लैब को अप्रैल में ICMR से मंजूरी मिली थी, तब उनके पास 8 से 10 टेक्निकल लोग काम कर रहे थे, लेकिन उन सभी ने कोरोना वायरस के डर से काम करना ही छोड़ दिया।
दिल्ली के जीटीबी अस्पताल के बाहर का एक वीडियो सामने आया जिसमें स्ट्रेचर पर लेटा एक मरीज सांस लेने के लिए हांफ रहा है, लेकिन वहां एक भी नर्स, डॉक्टर या अटेंडेंट मौजूद नहीं था। अस्पताल ने यह कहते हुए मरीज रवि अग्रवाल को भर्ती करने से इनकार कर दिया कि एक COVID समर्पित अस्पताल होने की वजह से वे किसी भी मरीज को बगैर COVID पॉजिटिव टेस्ट रिपोर्ट के ऐडमिट नहीं कर सकते। रवि अग्रवाल के रिश्तेदार उन्हें कई अस्पतालों में ले गए थे, लेकिन उनमें से किसी ने भी उन्हें भर्ती नहीं किया।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर जब जीटीबी अस्पताल के डॉक्टर राजेश कालरा से बात कर रहे थे, तभी सांस लेने में दिक्कत महसूस कर रहीं एक अन्य महिला को वहां लाया गया, लेकिन उन्हें बगैर किसी जांच के ही इमर्जेंसी वॉर्ड से बाहर कर दिया गया। महिला मरीज को लाने वाले पड़ोसी ने इंडिया टीवी के रिपोर्टर को बताया कि वे कई अस्पतालों में गए थे, और उन सभी ने मरीज को ऐडमिट करने से इनकार कर दिया। पटपड़गंज के मैक्स अस्पताल का भी एक वीडियो सामने आया, जिसमें गैर-COVID रोगियों को भर्ती न करने की बात कही जा रही है। हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने बाद में एक स्पष्टीकरण जारी किया।
दिल्ली सरकार का कहना है कि डॉक्टरों, नर्सों और अस्पतालों की कोई कमी नहीं है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। जब लोगों को पता चल रहा है कि उनके रिश्तेदारों को अस्पतालों में भर्ती नहीं किया जा रहा है, तो वे वीडियो बनाकर उसे सर्कुलेट कर रहे हैं। रोजाना मुझे ऐसे ढेरों वीडियो मिल रहे हैं और मैं अपने रिपोर्टर्स से उनकी जांच करवा रहा हूं। डॉक्टरों का कहना है कि COVID के हल्के लक्षण वाले रोगियों को घबराने की जरूरत नहीं है। वे 14 दिन अपने घर पर रहकर ही पूरी सावधानी बरतेंगे तो ठीक हो जाएंगे। डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल वे स्थान हैं जहां गंभीर रूप से बीमार लोगों को ऑक्सिजन और वेंटिलेटर दिए जाते हैं, और जिनमें कोरोना वायरस से संक्रमण के लक्षण हैं उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है।
ऐसा कहना आसान है लेकिन करना बहुत मुश्किल। COVID पॉजिटिव पाए जाने के बाद लोग डॉक्टरों और सरकार की इस बात पर भरोसा नहीं करते कि घर पर रहने से वे ठीक हो जाएंगे। लोगों के मन में भरोसा पैदा करने की जरूरत है। पहले से ही कोरोना वायरस से संक्रमण के आंकड़े चिंताजनक हैं। दिल्ली में 1 जून से 3 जून तक, 3 दिन के अंदर ही 44 लोगों की मौत हुई है, जिसके चलते मरने वालों की संख्या 708 तक पहुंच गई है। दिल्ली में शुक्रवार को 1,330 नए मामले आए जिसके बाद संक्रमितों की कुल संख्या 26,334 हो गई है। इसमें से भी 11,870 मामले पिछले 10 दिनों में सामने आए हैं। मुंबई में हालात ज्यादा खराब है। यहां शुक्रवार को 54 जानें गईं और मरने वालों की कुल संख्या 1,158 हो गई है। इसके अलावा 1,150 नए मामलों के साथ ही कुल आंकड़ा 45,000 को पार कर गया है।
यदि दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों का यह हाल है तो सोचिए ग्रामीण इलाकों में कैसे हालात होंगे। बिहार के अररिया में एक मिडवाइफ नर्स (एएनएम) ने डॉक्टरों से अपने पति का इलाज करने की गुहार लगाई, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। उनके पति जयप्रकाश सिंह 28 मई को दिल्ली से लौटे थे। उन्हें क्वॉरन्टीन में रखा गया था और फिर फॉरबिसगंज के एक अस्पताल में भेज दिया गया था। वहां से उन्हें अररिया जिला अस्पताल भेज दिया गया। चूंकि वह एक संदिग्ध COVID रोगी थे, इसलिए अररिया अस्पताल के डॉक्टरों ने उनका इलाज करने से इनकार कर दिया। आखिरकार उनकी मौत हो गई।
झारखंड के धनबाद का भी एक वीडियो सामने आया जहां PMCH अस्पताल से दो मरीजों की लाशों को एम्बुलेंस न होने के चलते ठेले पर लादकर ले जाया जा रहा था। बिहार और झारखंड दोनों में मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर पहले से ही कमजोर है। पहली भी सामने आया था कि वहां एक ही बिस्तर पर 3 मरीज सो रहे हैं और अब इस वीडियो में 2 शवों को ठेले पर ले जाया जा रहा है। इन परेशान करने वाले दृश्यों को लोग लंबे समय तक नहीं भूलेंगे। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 6 जून 2020 का पूरा एपिसोड