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Rajat Sharma's Blog: मोदी ने जेएनयू छात्रों से कहा- राष्ट्रहित को विचारधारा से ऊपर रखें

आज हर कोई अपनी विचारधारा पर गर्व करता है। ये स्वाभाविक भी है। लेकिन फिर भी, हमारी विचारधारा राष्ट्रहित के विषयों में, राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए, राष्ट्र के खिलाफ कतई नहीं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: November 13, 2020 15:51 IST
Rajat Sharma's Blog: मोदी ने जेएनयू छात्रों से कहा-राष्ट्हित को विचारधारा से ऊपर रखें- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्वामी विवेकानंद की 13 फीट ऊंची मूर्ति का अनावरण किया। इन दौरान पीएम मोदी ने छात्रों को बताया कि उन्हें राष्ट्र हित को अपनी विचारधारा से ऊपर क्यों रखना चाहिए। मोदी ने जेएनयू छात्रों के जरिए पूरे देश से कहा कि विचारधारा राष्ट्र से बड़ी नहीं होती। राष्ट्र के लिए, राष्ट्रहित के लिए अगर विचारधारा से समझौता करना पड़े तो करिए। राष्ट्र की एकता और देश की भलाई के लिए विचारधारा को छोड़कर सबको साथ आना चाहिए। 

पीएम मोदी ने कहा-'किसी एक बात जिसने हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया है- वो है राष्ट्रहित से ज्यादा प्राथमिकता अपनी विचारधारा को देना। क्योंकि मेरी विचारधारा ये कहती है, इसलिए देशहित के मामलों में भी मैं इसी सांचे में सोचूंगा, इसी दायरे में काम करूंगा, ये रास्‍ता सही नहीं है दोस्‍तों, ये गलत है। आज हर कोई अपनी विचारधारा पर गर्व करता है। ये स्वाभाविक भी है। लेकिन फिर भी, हमारी विचारधारा राष्ट्रहित के विषयों में, राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए, राष्ट्र के खिलाफ कतई नहीं।'

उन्होंने छात्रों को याद दिलाया कि कैसे महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता के संघर्ष में विभिन्न विचाराधारा के लोगों को एक साथ किया था। उन्होंने विभिन्न मतों के लोगों को अपनी विचारधारा को अलग रखकर स्वतंत्रता के उद्देश्य के लिए प्रेरित किया।

मोदी ने कहा-'आप देश के इतिहास में देखिए, जब-जब देश के सामने कोई कठिन समस्‍या आई है, हर विचार, हर विचारधारा के लोग राष्ट्रहित में एक साथ आए हैं। आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के नेतृत्व में हर विचारधारा के लोग एक साथ आए थे। उन्होंने देश के लिए एक साथ संघर्ष किया था। ऐसा नहीं था कि बापू के नेतृत्व में किसी व्यक्ति को अपनी विचारधारा छोड़नी पड़ी हो। उस समय परिस्थिति ऐसी थी, तो हर किसी ने देश के लिए एक Common Cause को प्राथमिकता दी।

मोदी ने जेएनयू छात्रों को यह भी याद दिलाया कि किस तरह 70 के दशक में इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, जनसंघ और वाम दलों के नेता लोक नायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एकजुट हुए थे।

उन्होंने कहा-'अब इमरजेंसी को याद करिए, इमरजेंसी के दौरान भी देश ने यही एकजुटता देखी थी। और मुझे तो उस आंदोलन का हिस्‍सा बनने का सौभाग्‍य मिला था, मैंने सारी चीजों को खुद देखा था, अनुभव किया था, मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं। इमरजेंसी के खिलाफ उस आंदोलन में कांग्रेस के पूर्व नेता और कार्यकर्ता भी थे। आरएसएस के स्वयंसेवक और जनसंघ के लोग भी थे। समाजवादी लोग भी थे। कम्यूनिस्ट भी थे। जेएनयू से जुड़े कितने ही लोग थे जिन्होंने एक साथ आकर इमरजेंसी के खिलाफ संघर्ष किया था। इस एकजुटता में, इस लड़ाई में भी किसी को अपनी विचारधारा से समझौता नहीं करना पड़ा था। बस उद्देश्य एक ही था- राष्ट्रहित। और ये उद्देश्य ही सबसे बड़ा था। इसलिए साथियों, जब राष्ट्र की एकता अखंडता और राष्ट्रहित का प्रश्न हो तो अपनी विचारधारा के बोझ तले दबकर फैसला लेने से, देश का नुकसान ही होता है। मोदी ने आगे कहा-'हां, मैं मानता हूं कि स्वार्थ के लिए, अवसरवाद के लिए अपनी विचारधारा से समझौता करना भी उतना ही गलत है। हमें अवसरवाद से दूर, लेकिन एक स्वस्थ संवाद को लोकतन्त्र में जिंदा रखना है।'

 
प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की जरूरत पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा- 'आज देश आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य और संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। आज आत्मनिर्भर भारत का विचार 130 करोड़ से अधिक भारतीयों के Collective Consciousness (सामूहिक चेतना) का, हमारी Aspirations (आकांक्षाओं) का हिस्सा बन चुका है। आत्‍मनिर्भर राष्‍ट्र तभी बनता है जब संसाधनों के साथ-साथ सोच और संस्‍कारों में भी वो आत्‍मनिर्भर बने।'
  
जेएनयू को वामपंथी रुझान वाले छात्रों और शिक्षकों का गढ़ माना जाता है। ये पहला मौका है जब प्रधानमंत्री मोदी जेएनयू के किसी कार्यक्रम में शामिल हुए और वहां के छात्रों को संबोधित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने जो बातें कहीं वो बेहद अर्थपूर्ण हैं।  प्रधानमंत्री ने विवेकानंद की जिस मूर्ति का अनावरण किया वह मूर्ति 2018 में ही बनकर तैयार हो गई थी। 2015 में बीजेपी से जुड़े छात्र संगठन एबीवीपी ने कुलपति जगदीश कुमार के सामने स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा स्थापित करने की मांग रखी थी। 2017 में जेएनयू की कार्यकारी परिषद में इसे लेकर एक प्रस्ताव रखा गया. जिसे मान लिया गया। 2018 में मूर्ति बनकर तैयार हो गई थी। लेकिन मूर्ति को लेकर विवाद होते रहे। अनावरण से पहले मूर्ति पर कालिख पोत दी गई। स्वामी विवेकानंद को हिन्दुत्व का प्रतीक बताकर अतिवादी वामपंथियों ने कुछ अपशब्द लिखे। इसके बाद मूर्ति का अनावरण नहीं हो सका।

पीएम मोदी ने कहा-' ये सिर्फ एक प्रतिमा नहीं है बल्कि ये उस विचार की ऊंचाई का प्रतीक है जिसके बल पर एक संन्‍यासी ने पूरी दुनिया को भारत का परिचय दिया। उनके पास वेदान्‍त का अगाध ज्ञान था। उनके पास एक विजन था। वो जानते थे कि भारत दुनिया को क्‍या दे सकता है। वो भारत के विश्‍व-बंधुत्‍व के संदेश को लेकर दुनिया में गए। भारत के सांस्‍कृतिक वैभव को, विचारों को, परम्‍पराओं को उन्‍होंने दुनिया के सामने रखा। गौरवपूर्ण तरीके से रखा।'

मोदी ने कहा-' आप सोच सकते हैं जब चारों तरफ निराशा थी, हताशा थी, गुलामी के बोझ में दबे हुए थे हम लोग, तब स्‍वामीजी ने अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में कहा था, और ये पिछली शताब्‍दी के प्रारंभ में कहा था। उन्‍होंने क्‍या कहा था? मिशिगन यूनिवर्सिटी में भारत का एक संन्‍यासी घोषणा भी करता है, दर्शन भी दिखाता है। वो कहते हैं – यह शताब्‍दी आपकी है। यानी पिछली शताब्‍दी के प्रारंभ में उनके शब्‍द हैं- ‘’ये शताब्‍दी आपकी है, लेकिन 21वीं शताब्‍दी निश्चित ही भारत की होगी।‘’ पिछली शताब्‍दी में उनके शब्‍द सही निकले हैं, इस शताब्‍दी में उनके शब्‍दों को सही करना, ये हम सबका दायित्‍व है।'
 
जेएनयू में मोदी का यह भाषण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले पांच वर्षों में जेएनयू कैंपस राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के कारण चर्चा में आया। जेएनयू में भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह ...इंशा अल्लाह के नारे सुनाई दिए। कश्मीर की आजादी के नारे लगे। छात्र नेता उमर खालिद और कन्हैया कुमार जैसे लोगों को मंच मिला। इसीलिए आज मोदी ने कहा कि एक-दूसरे से चर्चा करो, विवाद और तर्क करो...विचारधारा को मत छोड़ो। लेकिन विचारधारा के चक्कर में देश को तोड़ने की बात तो मत कहो।
 
जेएनयू कैंपस में विवेकानंद की प्रतिमा का प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अनावरण करने के कुछ राजनीतिक मायने भी हैं। पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस बंगालियों की चेतना के महान प्रतीक हैं। बंगाल में स्वामी विवेकानंद का बहुत सम्मान है। स्वामी विवेकानंद ने बंगाल में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। खुद नरेंद्र मोदी रामकृष्ण मिशन के वैल्लूर मठ में रहे हैं। मोदी ने एक संन्यासी के कहने पर रामकृष्ण मिशन में शामिल होने का फैसला लिया था लेकिन बाद में एक वरिष्ठ संन्यासी की सलाह पर वे वापस गुजरात लौट आए। मोदी ने  स्वामी विवेकानंद को बहुत गहराई से पढ़ा और समझा है, इसीलिए उन्होंने इतने विस्तार से इस पर बात की। लेकिन पश्चिम बंगाल में चुनाव है। इसलिए कुछ लोग मोदी की बात को बंगाल के चुनाव से जोड़कर भी देखेंगे। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 12 नवंबर, 2020 का पूरा एपिसोड

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