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Rajat Sharma's Blog: कश्मीर में एक नये युग की शुरुआत का श्रेय मोदी और अमित शाह को जाता है

मोदी और अमित शाह ने न केवल इस अनुच्छेद को खत्म किया बल्कि इतनी सहजता से इसे सदन में लेकर आए कि लोकसभा में मौजूद तीन-चौथाई सदस्यों ने इस कदम का समर्थन किया।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : August 07, 2019 17:54 IST
Rajat Sharma's Blog: Modi, Amit Shah deserve credit for heralding a new era in Kashmir
Image Source : INDIA TV Rajat Sharma's Blog: Modi, Amit Shah deserve credit for heralding a new era in Kashmir

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक और जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने का प्रस्ताव ऐतिहासिक रूप से पारित होना कश्मीर में एक नए युग की शुरुआत है। यह गर्व का क्षण था जब लोकसभा के 370 सांसदों ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पक्ष में मतदान किया और 366 लोकसभा सदस्यों ने अनुच्छेद 370 को खत्म करनेवाले प्रस्ताव का समर्थन किया। 70 साल पहले हुई एक बड़ी ऐतिहासिक गलती को अब सुधार लिया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने इस ऐतिहासिक बिल और प्रस्ताव को संसद से पास कराने के लिए अथक प्रयास किया। यह मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के बिना संभव नहीं हो सकता था। एक अशांत क्षेत्र के इतिहास और भूगोल में संरचनात्मक बदलाव लाने के लिए मोदी और शाह ने अदम्य साहस दिखाया और बेहद सावधानी से कदम उठाए।

पिछले 70 साल से कथित कश्मीरी एक्सपर्ट्स भारतीय संविधान से अनुच्छेद 370 को खत्म करने के सवाल पर 'चेतावनी' दे रहे थे। ये कहते थे कि अनुच्छेद 370 को कभी हटाया नहीं जा सकता, इसके बड़े दुष्परिणाम होंगे। पिछले कई प्रधानमंत्रियों में से किसी में भी इतना कठोर कदम उठाने की हिम्मत और राजनैतिक इच्छाशक्ति नहीं थी, जिसकी वजह से जम्मू-कश्मीर में रहनेवाली कई पीढ़ियों का जीवन बदहाल हो रहा था।

मोदी और अमित शाह ने न केवल इस अनुच्छेद को खत्म किया बल्कि इतनी सहजता से इसे सदन में लेकर आए कि लोकसभा में मौजूद तीन-चौथाई सदस्यों ने इस कदम का समर्थन किया। राज्यसभा के लगभग दो-तिहाई सदस्यों ने सरकार के इस ऐतिहासिक कदम का समर्थन किया। 

सोमवार सुबह 11 बजे तक चंद गिनचुने लोगों के सिवा किसी को नहीं पता था कि कश्मीर के भविष्य को लेकर क्या फैसला होनेवाला है। इसे बेहद गुप्त रखा गया और कुछ लोगों को ही इसके बारे में मालूम था। 

इसका श्रेय गृह मंत्री अमित शाह को जाता है जो कि पहली पर केंद्रीय मंत्री बने हैं। उन्होंने संसद के दोनों सदनों में इस महत्वपूर्ण बिल पर बहस को बेहद चतुराई से संभाला। कहीं से कभी-भी यह नहीं नजर आया कि वे फर्स्ट टाइमर केंद्रीय मंत्री हैं और बहस को संभाल पाने में असमर्थ हैं। अमित शाह ने दोनों सदनों में सदस्यों द्वारा उठाए गए प्रत्येक प्रश्न का कुशलता से जवाब दिया।

अनुच्छेद 370 से किस तरह जम्मू कश्मीर के लोगों को लाभ हो रहा है, इसका एक भी कारण बता पाने में विपक्ष दोनों सदन में नाकाम रहा। वहीं दूसरी तरफ अमित शाह ने अनुच्छेद 370 हटने से जम्मू-कश्मीर के लोगों को किस तरह का लाभ होगा, इसे पूरी बारीकी से समझाया और कहा कि इस अनुच्छेद की वजह से लोग वर्षों से बहुत सारे लाभ से वंचित हैं। शिक्षा, रोजगार, पंचायती राज, केंद्रीय कल्याण योजनाएं, संपत्ति की खरीद-बिक्री, नए उद्योग आदि मुख्य लाभ हैं जिसकी चर्चा अमित शाह ने अपने भाषण में की।

जम्मू और कश्मीर के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों, महबूबा मुफ़्ती, फारूक अब्दुल्ला, गुलाम नबी आज़ाद द्वारा दिए गए राजनीतिक तर्क भी विश्वास से भरे नहीं थे, क्योंकि उनके वर्तमान बयान पूर्व के बयान से पूरी तरह अलग थे। ये लोग वक्त के हिसाब से बयान देते रहे। महबूबा ने तीन साल पहले बीजेपी गठबंधन के साथ सरकार बनाने पर यहां तक कहा था कि जम्मू कश्मीर की समस्या कोई सुलझा सकता है, तो वो नरेन्द्र मोदी हैं। लेकिन जब नरेन्द्र मोदी ने कदम उठाया तो महबूबा बौखला गईं।

एक न्यूज़ चैनल ने मंगलवार को दिखाया कि लोकसभा में ऐतिहासिक बहस में भाग न लेकर कैसे एक होटल से फारूक अब्दुल्ला बाहर आ रहे हैं। फिर फारूक अपने घर की बालकनी में नजर आए मीडिया के लोगों से झूठ बोला कि उन्हें हिरासत में रखा गया है। उन्होंने तरह-तरह के इल्जाम लगाए, लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में सारी स्थिति एक नहीं कई बार साफ कर दी। उन्होंने कहा कि राज्य के डीजीपी से उनकी बात हुई है और पूर्व मुख्यमंत्री न तो हाउस अरेस्ट और न ही उन्हें हिरासत में रखा गया है।

कश्मीर पर उठाए गए इस ऐतिहासिक कदम ने कांग्रेस नेताओं के बीच दरार को सार्वजनिक रूप से उजागर कर दिया। पार्टी के बड़े-बड़े नेता, राहुल गांधी के करीबी, उनके दोस्त कहे जाने वाले नेता भी पार्टी के स्टैंड की मुखालफत करते नजर आए। जनार्दन द्विवेदी, दीपेंद्र हुड्डा, मनीष तिवारी, प्रदीप भट्टाचार्य और मिलिंद देवड़ा जैसे सीनियर नेताओं ने कश्मीर पर हाईकमान की लाइन को नकार दिया। मनीष तिवारी के भाषण को सुनकर कोई यह समझ नहीं पाया कि वे सरकार के प्रस्ताव का समर्थन कर रहे थे या विरोध कर रहे थे। यह तब हो रहा था जब सदन में सोनिया गांधी मौजूद थीं और चुपचाप सब कुछ देख रही थीं। (रजत शर्मा)

देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 06 अगस्त 2019 का पूरा एपिसोड

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