प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से आह्वान किया है कि महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती, 2 अक्टूबर तक सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल से निजात पा लें। मथुरा में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने 9 महिला मजदूरों से मुलाकात की, उनके साथ तरह-तरह के प्लास्टिक के ढेर के पास बैठे और उनसे प्लास्टिक को कचरे से अलग करने के तरीके के बारे में बात की।
मैं प्रधानमंत्री मोदी के सिंगल-यूज प्लास्टिक को बंद करने के लिए शुरू किए गए महान मिशन का पूरा समर्थन करता हूं। हम सभी अपने दैनिक जीवन में प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन हम इनकी वजह से खुद के और पर्यावरण के लिए पैदा होने वाले खतरों के बारे में कभी नहीं सोचते। अब प्लास्टिक के इस्तेमाल को अलविदा कहने का समय आ गया है। सरकार सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान कर सकती है, लेकिन इसकी सफलता हमारे सहयोग पर निर्भर करती है। हमें एक बार इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक से पैदा होने वाले खतरों के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।
हममें से ज्यादातर लोग अपने दिन की शुरुआत ही सिंगल-यूज प्लास्टिक से करते हैं। हम पहले प्लास्टिक के पाउच में पैक किए गए दूध को खरीदते हैं, इसके बाद उन्हें पॉलिथीन के बैग में रखकर ले आते हैं। हम पॉलिथीन बैग में ही सब्जियां और फल खरीदकर लाते हैं। हम जो पीने का पानी खरीदते हैं वह भी प्लास्टिक की ही बोतल में पैक होता है। हम प्लास्टिक में पैक किए गए आलू के चिप्स और अन्य खाद्य पदार्थों की खरीदारी करते हैं। इसके अलावा दफ्तरों में और घर पर प्लास्टिक के ही कपों में चाय और कॉफी पीते हैं।
दूध से लेकर सब्जियों तक, चाय से लेकर कॉफी तक, सिंगल-यूज प्लास्टिक हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। हमें इससे छुटकारा पाना होगा। इनमें से अधिकांश सिंगल-यूज प्लास्टिक्स को कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है, और उसके बाद इनका ठिकाना हमारे शहरों के गार्बेज डंप होते हैं। पॉलिथीन शॉपिंग बैग, प्लास्टिक की बोतलें, स्ट्रॉ, कप, प्लेट, खाने के रैपर, गिफ्ट रैप्स, डिस्पोजेबल कॉफी कप, प्लास्टिक के चम्मच, प्लास्टिक के कांटे, प्लास्टिक के कंटेनर, इन सभी का आखिरी ठिकाना गार्बेज डंप ही होता है।
दिक्कत तब पैदा होती है जब इन्हें रिसाइक्लिंग के लिए ले जाया जाता है। हर साल हम 1.40 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा करते हैं। इसमें भी देश के 60 बड़े शहरों का योगदान सबसे ज्यादा होता है। आपको बता दें कि सिंगल-यूज प्लास्टिक ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारणों में से एक हैं। चूंकि इनमें से अधिकांश नॉन-बायोडिग्रेडेबल हैं, इसलिए वे आने वाली कई सदियों के लिए हमारी मिट्टी को नुकसान पहुंचाते हैं।
दिल्ली में ही पहाड़ों जैसे ऊंचे तीन गार्बेज डंप हैं, जिनमें से एक भलस्वा डेयरी में, दूसरा पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर में और तीसरा दक्षिण दिल्ली के ओखला में है। यहां अपशिष्ट पदार्थों का निपटारा करने के लिए काफी बड़े संयंत्र लगाए गए हैं, लेकिन वे सिंगल-यूज प्लास्टिक के 13वें हिस्से की, जो मुश्किल से 7 प्रतिशत बैठता है, की ही रीसाइक्लिंग करते हैं। बाकी की प्लास्टिक यहां-वहां फैली हुई है, जमीन में धंसी हुई है। बहता हुआ पानी प्लास्टिक के इसी ढेर से होता हुआ नदियों और समुद्रों तक पहुंचता है, और हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य खतरे में डालता है।
आपने मरी हुई गायों और अन्य मवेशियों के पेट से भारी मात्रा में पॉलिथीन बैग्स निकलने के दृश्य कई बार देखे होंगे। राजस्थान के नागौर से तो ऐसा मामला भी सामने आया था जिसमें एक गाय और एक बैल के पेट से कुल 170 किलोग्राम पॉलिथीन निकाली गई थी। इस घटना में गाय के पेट से लगभग 80 किलोग्राम पॉलिथीन निकाली गई और बची हुई 90 किलोग्राम पॉलिथीन बैल के पेट से निकली थी।
प्लास्टिक समुद्री जीवन को खतरे में डालते हुए समुद्र की तलहटी में भी इकट्ठा होती रहती है। फिलीपींस के दावाओ में एक मृत व्हेल के पेट से लगभग 40 किलो प्लास्टिक मिली थी। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल कम से कम एक लाख समुद्री जानवर प्लास्टिक से पैदा हुए कचरे के कारण मर जाते हैं। प्लास्टिक की वजह से हुए प्रदूषण के चलते मछली की लगभग 2,000 प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं। एक अन्य वैज्ञानिक अध्ययन में कहा गया है कि कम से कम 90 प्रतिशत समुद्री पक्षियों में प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण का प्रभाव देखा गया है।
यदि सिंगल-यूज प्लास्टिक को रिसाइकिल करने की बजाय जलाया जाए तो यह हवा में जहरीली गैसों को छोड़ता है। कचरे के ढेर पर पड़ी हुई सिंगल-यूज प्लास्टिक मिथेन गैस का उत्सर्जन करती है, जिसकी वजह से जलवायु परिवर्तन हो सकता है। मीथेन गैस कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 30 गुना अधिक जहरीली है। सेप्टिक टैंक में उतरने वाले कई सफाईकर्मियों की मौत मीथेन गैस की वजह से ही होती है। शायद आपको पता न हो, लेकिन यह एक तथ्य है कि सिंगल-यूज प्लास्टिक का एक ठिकाना हमारा शरीर भी बन गया है। प्लास्टिक कचरे के औसतन 50 अणु हवा, भोजन और पानी के माध्यम से हमारे शरीर में पहुंचते हैं। इनकी वजह से खतरनाक रोग हो सकते हैं। स्टायरोफोम भी प्लास्टिक परिवार का हिस्सा है। आम तौर पर स्टायरोफोम का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक और अन्य प्रॉडक्ट्स की पैकेजिंग के लिए किया जाता है। यह हमारे तंत्रिका तंत्र, फेफड़ों और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियों के लिए पॉलिथीन के दुष्प्रभाव किसी परमाणु बम से भी ज्यादा खतरनाक साबित होंगे। फिक्की के एक अध्ययन में कहा गया है कि एक औसत भारतीय एक वर्ष में न्यूनतम 11 किलोग्राम प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है, वहीं एक अमेरिकी एक साल में 110 किलोग्राम प्लास्टिक को अपने उपयोग में लाता है। दुनिया भर में हर साल 100 बिलियन प्लास्टिक बैग्स का निर्माण किया जाता है और हम हर साल 35 लाख टन प्लास्टिक बैग फेंक देते हैं।
भारत में हम प्रतिदिन 26,000 टन प्लास्टिक कचरा पैदा करते हैं। यह एक साल में 95 लाख टन तक पहुंच जाता है। उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, मध्य प्रदेश और ओडिशा, 5 ऐसे राज्य हैं जो प्लास्टिक उत्पादों का भारी मात्रा में उपभोग करते हैं। यही नहीं, हर साल 1.5 लाख टन प्लास्टिक कचरा विदेशी तटों से भारत में प्रवेश करता है। नेचर कम्युनिकेशन की 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल 1.1 लाख टन प्लास्टिक कचरा गंगा नदी में फेंक दिया जाता है।
अब सवाल यह है: इससे निपटने का क्या तरीका है? हमें अपने जीवन से सिंगल-यूज प्लास्टिक को निकाल फेंकना होगा। पहले ही अमेरिका, न्यूजीलैंड, फ्रांस, कनाडा, मोरक्को, केन्या, जिम्बाब्वे, बांग्लादेश और दक्षिण कोरिया सहित 13 देशों ने एक बार इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत 2 अक्टूबर को इस तरह के प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने जा रहा है। भारत में सरकार ने पहले से ही 50 माइक्रोन से कम के प्लास्टिक के उत्पादन, आयात, भंडारण, परिवहन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन इस आदेश का कड़ाई से पालन नहीं हो रहा है।
प्रधानमंत्री की अपील के बाद कई शहरों और राज्यों में एक बार इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक के खिलाफ अभियान शुरू हो गया है। लोगों ने प्लास्टिक की बजाय धातु और कांच की बोतलों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों में प्लास्टिक की पानी की बोतलों का इस्तेमाल प्रतिबंधित है। कानपुर में डॉक्टर अंबेडकर प्रौद्योगिकी संस्थान के 3 छात्रों ने आलू और साबुन का उपयोग करके पर्यावरण के अनुकूल प्लास्टिक का उत्पादन किया है।
सिंगल-यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह बंद करना काफी मुश्किल है। हम प्रति वर्ष 1.7 करोड़ टन प्लास्टिक उत्पादों का उपभोग करते हैं, जिनमें से केवल 7-10 प्रतिशत का उपयोग पैकेजिंग में किया जाता है। एक और समस्या है कि वस्तुओं की पैकेजिंग के लिए प्लास्टिक की जगह किस चीज का इस्तेमाल किया जाए। भारत में पैकेज्ड वॉटर इंडस्ट्री का टर्नओवर लगभग 30,000 करोड़ रुपये है और यह इंडस्ट्री 7 लाख लोगों को रोजगार देती है। सिंगल-यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को बैन करने से पहले हमें इन बातों पर विचार करना होगा।
यह एक कड़वी सच्चाई है कि वर्तमान में सिंगल-यूज प्लास्टिक के लिए कोई व्यवहार्य विकल्प नहीं है। लेकिन अब प्लास्टिक को अलविदा कहने का वक्त आ गया है। शुरुआत में थोड़ी-बहुत दिक्कतें हो सकती हैं, लेकिन एक प्लास्टिक-मुक्त भारत हमारी भावी पीढ़ी के लिए और हमारी खूबसूरत धरती के लिए जरूरी है। कृपया प्लास्टिक से दूर रहें। जहां तक संभव हो सके, प्लास्टिक की जगह कपड़े या जूट के बैग का इस्तेमाल करें। ऐसी प्लास्टिक की बोतलों और प्लास्टिक के स्ट्रॉ का इस्तेमाल करने से बचें जिनका रीसाइकिल होना मुश्किल होता हो। इन छोटे सुझावों का यदि अच्छी तरह पालन किया जाए तो ये बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
दूसरा, हमारे R&D वैज्ञानिकों को सिंगल-यूज प्लास्टिक का विकल्प खोजने के लिए जोर-शोर से जुट जाना चाहिए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि प्लास्टिक मुक्त भारत के लिए इंडिया टीवी की पहल के तौर पर मैं अपने 'आज की बात' कार्यक्रम में उन वैज्ञानिकों की खबरें दिखाऊंगा, जो इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं और निश्चित रूप से सफल होंगे। मुझे उम्मीद है कि सरकार इन वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करेगी। आइए, हम प्लास्टिक का उपयोग न करने का संकल्प लें और इसके लिए दूसरों को भी मनाएं। आखिरकार यह एक महान मिशन है। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 11 सितंबर 2019 का पूरा एपिसोड