महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू होने के साथ ही पिछले एक हफ्ते से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस द्वारा सरकार गठन के लिए जो एड़ी चोटी के प्रयास किये जा रहे थे वे अब कुछ हद तक धीमे पड़ गए हैं। एनसीपी और कांग्रेस दोनों ने अब शिवसेना के साथ बातचीत के बाद कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार करने के लिए समितियों का गठन किया है। अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि वहां भी रोटेशनल चीफ मिनिस्टर की बात होगी या नहीं। साथ ही यह भी तय नहीं है कि क्या कोई उप मुख्यमंत्री भी होगा या नहीं। अरविंद सावंत और संजय राउत जैसे शिवसेना के नेताओं ने बुधवार को कहा कि उनकी पार्टी मुख्यमंत्री का पद हासिल करने पर जोर देगी।
विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी बीजेपी ने अपने आपको सत्ता की रेस से 9 नवंबर को अलग कर लिया था। तब लंबे इंतजार के बाद राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना को सरकार बनाने के रास्ते तलाशने के लिए आमंत्रित किया। शिवसेना ने सरकार गठन के लिए और मोहलत मांगी, लेकिन राज्यपाल ने ज्यादा समय देने से इनकार कर दिया। तीसरी सबसे बड़ी पार्टी एनसीपी ने भी सरकार बनाने के लिए तीन दिन की मोहलत मांग थी, लेकिन तब तक सरकार गठन की कोई तस्वीर नहीं उभर रही थी और तब राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी। 12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
कांग्रेस के सभी विधायक भी अब जयपुर से महाराष्ट्र लौट आए हैं। पार्टी को किसी तरह की फूट से बचाने के लिए इन विधायकों को कांग्रेस आलाकमान ने जयपुर भेज दिया था। बुधवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस नेताओं के साथ होटल में मुलाकात की और दावा किया कि बातचीत 'सही दिशा में आगे बढ़ रही है, और सब कुछ ठीक चल रहा है।'
जाहिर है कि यह उद्धव ठाकरे द्वारा अपने विधायकों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास था, जिन्हें एक रिसॉर्ट में रखा गया है। अभी तक न तो एनसीपी और न ही कांग्रेस ने शिवसेना के साथ सत्ता साझेदारी के मुद्दे पर किसी तरह की वचनबद्धता जाहिर की है। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने मंगलवार को कहा, 'नए साल की शुरुआत से पहले मुझे लगता है कि महाराष्ट्र को एक नई सरकार मिलनी चाहिए'।
वर्षों पहले शिवसेना छोड़कर कांग्रेस का दामन थामने वाले और बाद में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे ने मंगलवार रात दावा किया कि प्रदेश में बीजेपी अकेले दम पर सरकार बनाएगी। राणे ने कहा कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार बनाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सब इस्तेमाल होगा। साफ है कि वो सब फॉर्मूले काम में लाए जाएंगे जो उन्होंने शिवसेना में रहकर सीखे हैं। असल में नारायण राणे पुराने शिवसैनिक हैं और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे हैं। वे कांग्रेस की सरकार में मंत्री भी रहे हैं। अब बीजेपी में हैं इसलिए उन्हें हर पार्टी का अनुभव है और वे महाराष्ट्र की सियासत से पूरी तरह वाकिफ हैं।
कांग्रेस ने अहमद पटेल और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेताओं को शरद पवार और एनसीपी के अन्य नेताओं से मिलने के लिए मंगलवार को मुंबई भेजा था लेकिन कांग्रेस अभी भी सरकार गठन को लेकर प्रतिबद्ध नजर नहीं आ रही है।अहमद पटेल और शरद पवार ने मंगलवार को स्पष्ट कर दिया कि अभी शिवसेना के साथ गठबंधन करने पर फैसला होना बाकी है। दोनों नेताओं ने कहा कि दोनों दल पहले आपस में बैठक कर इस मसले पर फैसला करेंगे और फिर शिवसेना के साथ बातचीत शुरू होगी।
शरद पवार इस मामले में काफी स्पष्ट थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और शिवसेना की विचारधाराएं अलग-अलग है। 'अगर शिवसेना को कांग्रेस का समर्थन चाहिए तो कई सारे मुद्दों पर स्पष्टता होनी चाहिए, एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार करना होगा और इस प्रक्रिया में समय लगेगा।'
शरद पवार और अहमद पटेल की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद अब कई बातें बिल्कुल स्पष्ट हैं। लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को लेकर ताज़ा सवाल उठ रहे हैं। उन्होंने सोमवार को एनसीपी और कांग्रेस से समर्थन मांगा था, लेकिन मंगलवार की शाम तक दोनों दलों की तरफ से उनकी पार्टी को कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला था।
अब पहला सवाल यह उठता है कि समर्थन का ठोस आश्वासन मिले बगैर शिवसेना ने किस आधार पर राज्यपाल के सामने अपना दावा पेश कर दिया? जो दूसरा सवाल उठता है वह यह कि उद्धव ठाकरे जल्दी में क्यों थे? उन्होंने अपनी पार्टी के मंत्री को केंद्र में एनडीए सरकार से इस्तीफा देने का निर्देश क्यों दिया जबकि उन्हें एनसीपी और कांग्रेस से स्पष्ट समर्थन नहीं मिला था?
राजनीतिक हालात पर अभी-भी भ्रम के बादल छाये हुए हैं और शिवसेना के नेतृत्व में सरकार गठन के अब तक के घटनाक्रम पर कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि ' न सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा'। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 12 नवंबर 2019 का पूरा एपिसोड