बुधवार को भारतीय सेना के 20 शहीदों के पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचे और पूरे देश ने नम आंखों से उन बहादुर योद्धाओं को श्रद्धांजलि दी जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। ताबूत में बंद जवानों के पार्थिव शरीर को समस्तीपुर, हैदराबाद, पटना, मेरठ, मयूरभंज, पटियाला, गुरदासपुर, मदुरै, रीवा, बीरभूम, साहिबगंज, कांकेर, कंधमाल, हमीरपुर, संगरूर, मनसा, भोजपुर, सहरसा, वैशाली और पूर्वी सिंहभूम भेजा गया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड के हालात को लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये मीटिंग की शुरुआत में अपने भाषण में कहा कि हमारे शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि भारत अपनी एक-एक ईंच जमीन और आत्मसम्मान की रक्षा करेगा। पीएम मोदी ने कहा, भारत की अखंडता और संप्रुभता सर्वोच्च है और कोई भी हमें इसकी रक्षा करने से नहीं रोकता। 'किसी को भी इसके बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए।' प्रधानमंत्री ने यह भी कहा, 'भारत शांति चाहता है, लेकिन अगर उकसाया जाएगा तो भारत उसका यथोचित जवाब देगा।' पूरे देश के लिए दुख की घड़ी में प्रधानमंत्री द्वारा कहे गए ये बेहद संतुलित और नपे-तुले शब्द थे।
वहीं दूसरी ओर चीन ने बिल्कुल युद्ध उकसाने वाला रवैया अपनाया। उसके विदेश मंत्री वांग यी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर से टेलीफोन पर बातचीत के दौरान कहा कि भारतीय सैनिकों ने एलएसी पार किया है, इसकी जांच कराई जाए और जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा दी जाए। वांग यी ने आगे कहा कि 'भारत को हालात का गलत आकलन नहीं करना चाहिए या भारत को चीन द्वारा अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा करने की इच्छाशक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए।'
चीन के विदेश मंत्री के इस बयान पर हमारे विदेश मामलों के मंत्री जयशंकर ने उन्हें दो-टूक जवाब दिया और कहा, 'लद्दाख में हुई हिंसा के लिए चीनी सैनिकों द्वारा की गई पूर्व निर्धारित और योजनाबद्ध कार्रवाई सीधे तौर पर जिम्मेदार थी और इस अभूतपूर्व कदम से द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।' उन्होंने कहा, 'इस समय जरूरत है कि चीन अपनी कार्रवाई का फिर से मूल्यांकन करे और सुधारात्मक कदम उठाए।'
जो कुछ भी जयशंकर ने कहा वह सही था। चीनी सैनिक लोहे की छड़ें, ब्लेड और नुकीले पत्थरों से तैयार होकर गलवान घाटी आए थे और उनका इरादा अचानक भारतीय जवानों पर हमला करना था। हालांकि हमारे जवान इस अचानक हमले के लिए तैयार नहीं थे, फिर भी वे बहादुरी से लड़े, और शुरुआती संघर्ष के बाद अतिरिक्त टुकड़ी पहुंचने से चीन को भारी नुकसान उठाना पड़ा। चीन के विदेश मंत्री का गुस्सा स्पष्ट तौर पर उस नुकसान (हताहत सैनिकों) को लेकर था जो उनकी सेना को झेलना पड़ा है।
सभी देशवासी उन वीर शहीदों को सलाम करते हैं जिन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया और एक इंच भी जमीन देने से इनकार कर दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, वह चीनी नेतृत्व के लिए भारत के इरादों का साफ संकेत है।
भारत अपनी पसंद के समय और पसंद की जगह पर अपना जवाब देगा। चीनी इस बात को जानते हैं, और इसलिए वे कई तरह के छल का सहारा ले रहे हैं। 36 घंटों तक उन्होंने यह स्वीकार नहीं किया कि उनकी सेना को बड़ा नुकसान हुआ है। इसके बदले उन्होंने भारत को हिंसा के लिए दोषी ठहराया। चीनी जानते हैं कि दुनिया उनके झूठ को स्वीकार नहीं करेगी। चीन ने मुद्दे को उलझाने के लिए एक सैन्य ड्रिल का प्रोपेगैंडा वीडियो यह दावा करने के लिए प्रसारित किया कि चीनी सैनिक गलवान घाटी में 'भारतीय घुसपैठ' को रोकने के लिए अभ्यास कर रहे हैं।
गलवान घाटी में ग्राउंड ज़ीरो पर भारत और चीन दोनों पीछे हट चुके हैं और बुधवार को दोनों सेनाओं के मेजर जनरलों के बीच तीन घंटे लंबी बातचीत हुई, लेकिन इसमें कोई नतीजा नहीं निकला। 16 जून को प्लैनेट लैब्स के सैटेलाइट चित्रों में स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि कैसे चीन ने गलवान घाटी में 250 से अधिक ट्रकों और अन्य सैन्य उपकरणों को इकट्ठा किया था। इस पूरे इलाके में तनाव है, और दोनों पक्षों की सेनाएं एलएसी पर लगभग युद्ध के हालात की तरह बेहद अलर्ट मोड में हैं।
शहीद जवानों के परिजनों के शोक भरे चेहरों को देखते हुए, आज हर भारतीय का खून गुस्से से उबल रहा है। पूरा देश चाहता है कि चीन को ऐसा सबक सिखाया जाना चाहिए ताकि वह भविष्य में इस तरह के दुस्साहस को अंजाम न दे सके। शहीदों की खातिर यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि अलग-अलग राजनीतिक विचारों के बावजूद हम एकजुट रहें और संकट की इस घड़ी में प्रधानमंत्री मोदी के पीछे मजबूती से खड़े रहें।
शहीदों के परिवारों को यह संदेश जाना चाहिए कि पूरा देश उनके पीछे एकजुट है और चीन जैसी हरकत करेगा उसे वैसा ही जवाब देने के लिए भारत तैयार है। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है, और चीन के साथ एक और संघर्ष से अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंच सकता है। लेकिन हमें जवाबी कार्रवाई करनी होगी, किसी भी कीमत पर, परिणाम चाहे जो भी हो। प्रधानमंत्री ने भी कहा हे कि हमारे शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।
चीन का आरोप है कि भारतीय सैनिक LAC को पार कर उनके इलाके में दाखिल हुए, यह एक सफेद झूठ है। मुश्किल से 50 जवानों के साथ भारतीय सेना के कमांडर चीनी सैनिकों की वापसी की निगरानी कर रहे थे, लेकिन चीनी सैनिक घातक इरादों के साथ आए थे। पूरी दुनिया ने देखा है कि 1962 में "हिंदी-चीनी भाई-भाई" के नारे लगाने के बाद चीन ने कैसे भारत की पीठ में छुरा घोंपा और 1967 में सिक्किम सीमा पर नाथू ला में कैसे चीन ने भारतीय सैनिकों पर हमला किया। चीन को अपने विश्वासघात की कीमत चुकानी होगी। यह नया भारत है, न कि 1962 का भारत जब उसकी सेना को युद्ध के मोर्चे पर पीछे हटना पड़ा था। चीन भारत की सशस्त्र सेना की ताकत जानता है और यह भी जानता है कि भारत के पास एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व है। सवाल यह है कि चीन ने टकराव का रास्ता क्यों चुना? चीन के सैनिकों ने हमारे जवानों के साथ विश्वासघात क्यों किया?
इसका जवाब है - चीन इस बात से चिंतित है कि भारत ने एक आर्थिक शक्ति बनने के लिए आत्मनिर्भरता का रास्ता चुना है और उसने विदेशी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए पूर्व में अपनाई गई एफडीआई नीतियों को बदल दिया है। चीन जानता है कि भारत उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है जो कोरोना महामारी के कारण चीन छोड़ रहे हैं। स्वाभाविक रूप से, चीनी नेतृत्व भारत पर अपनी नापाक नजर गड़ाए हुए है।
महामारी के कारण हुए आर्थिक नुकसान के चलते भी चीन में घरेलू दबाव है। चीन अब दुनिया को दिखाना चाहता है कि विश्व की महाशक्तियां उसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती हैं,चाहे जो भी हो । इसके साथ ही चीन दुनिया को यह भी जताना चाहता है कि बढ़ती हुई आर्थिक महाशक्ति के तौर पर भारत कभी-भी उसके लिए बड़ी चुनौती नहीं बन सकता।
चीन इस बात से नाखुश है कि अमेरिकी राष्ट्रपति भारत को G 7 में शामिल करना चाहते हैं। चीन नहीं चाहता कि भारत और अमेरिका साथ आएं। पहले से ही हांगकांग और ताइवान के मुद्दों पर दुनिया भर में चीन को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।यही वजह है कि चीन भारतीय सीमा पर तनाव पैदा करके अपने नागरिकों का ध्यान डायवर्ट करना चाहता है, लेकिन संभवत: चीनी नेतृत्व ये सोच पाने में विफल रहा है कि यह 2020 का भारत है, 1962 का नहीं। चीनियों ने देखा कि कैसे भारत ने LAC के पास एक महत्वपूर्ण सड़क का निर्माण नहीं रोका और लद्दाख में चीन का मुकाबला करने के लिए अपनी थल सेना और वायु सेना को तैनात किया।
भारत के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री चीन की उकसावे वाली कार्रवाई पर सख्त टिप्पणी कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने चीन को खुली चेतावनी दी, और विदेश मंत्री जयशंकर ने भी चीनी विदेश मंत्री को ठीक उसी के स्वर में जवाब दिया। चीनी नेतृत्व को ये उम्मीद नहीं थी कि भारतीय सेना उसके इतने सैनिकों को मारेगी और घायल करेगी और भारत के प्रधानमंत्री सख्त रुख अपनाएंगे।
चीन को अब गलवान वैली से पीछे हटना ही होगा क्योंकि उसका प्लान फेल हो चुका है। चीन ने महसूस किया है कि सीमा के मुद्दे को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत कम देश उसका समर्थन करते हैं। चीन भारत के खिलाफ युद्ध नहीं जीत सकता और न ही वह भारत के साथ कूटनीतिक लड़ाई जीत सकता है। चीनी नेतृत्व को जल्द ही अहसास होगा कि उसे अपने दुस्साहस के लिए एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 17 जून 2020 का पूरा एपिसोड