उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले 29 वर्ष से राज्य के मुख्यमंत्रियों के मन में नोएडा यात्रा को लेकर प्रचलित अंधविश्वास को तोड़कर आज एक स्वागतयोग्य कदम उठाया। 25 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कालकाजी और नोएडा के बीच मेट्रो के मैजेंटा लाइन का उद्घाटन करने के लिए आने वाले हैं और इस कार्यक्रम की तैयारियों का जायज़ा लेने के लिए सीएम योगी आज नोएडा आए हुए थे। पिछले 29 साल से राज्य के नेताओं और अधिकारियों में यह अंधविश्वास था कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा आते हैं, उनकी कुर्सी बाद में चली जाती है।
1988 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने नोएडा का दौरा किया था और तुरंत बाद उन्हें अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। 1989 में नारायण दत्त तिवारी ने बतौर मुख्यमंत्री नोएडा का दौरा किया और उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी। ठीक इसी तरह 1995 में मुलायम सिंह को, 1999 में कल्याण सिंह, 2012 में मायावती को नोएडा दौरे के तुरंत बाद सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी। राजनाथ सिंह ने बतौर मुख्यमंत्री डीएनडी फ्लाईओवर का उद्घाटन दिल्ली की छोर से किया जबकि अखिलेश यादव ने तो मान लिया कि वो अंधविश्वास को मानते हैं। अपने पांच साल के कार्यकाल में वे एकबार भी नोएडा नहीं आए। उन्होंने नोएडा के सारे प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन अपने ऑफिस से ही कर दिया। मुख्यमंत्री के तौर पर इस अंधविश्वास को तोड़ने की शपथ योगी आदित्यनाथ ने ली है। योगी आदित्यनाथ का ये कदम उनके आत्मविश्वास के स्तर को दर्शाता है।
21वीं सदी में इस तरह के अंधविश्वास के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। सामान्यत: अंधविश्वास वहां पर होते हैं जहां कोई आश्चर्यजनक संयोग हो जाते हैं। राजनाथ सिंह नोएडा नहीं गए लेकिन उन्हें सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी। अखिलेश बतौर मुख्यमंत्री नोएडा से पांच साल दूर रहे लेकिन अपनी कुर्सी बचाने में सफल नहीं हो सके। मैं ऐसे सभी अंधविश्वासों को मूर्खता मानता हूं। (रजत शर्मा)