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Rajat Sharma's Blog: यूपी में योगी आदित्यनाथ ने अवैध रूप से बने धार्मिक स्थलों को हटाने का उठाया बीड़ा

अब जबकि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस महत्वपूर्ण काम को अंजाम देना शुरू किया है तो सभी राजनीतिक दलों की ये जिम्मेदारी है कि वे इस अभियान को अपना समर्थन दें। 

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: March 17, 2021 14:19 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार ने सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बनाए गए करीब 40 हजार धार्मिक स्थलों को हटाने का बड़ा अभियान शुरू किया है। योगी सरकार ने जिन धार्मिक स्थलों को हटाने का बीड़ा उठाया है उनमें मंदिर, मस्जिद और मजार भी शामिल हैं। राज्य सरकार यह कार्रवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच के 3 जून 2016 के उस आदेश का पालन करते हुए कर रही है जिसमें कहा गया है कि सरकार एक जनवरी 2011 के बाद सार्वजनिक जगहों पर अवैध तरीके से बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाए । 

 
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश को अब करीब पांच साल के बाद सख्ती से लागू किया जा रहा है। 12 मार्च को राज्य के गृह विभाग ने सभी जिला कलेक्टरों और पुलिस प्रमुखों को निर्देश जारी किया कि वर्ष 2011 से लेकर अब तक सड़कों या सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बनाए गए सभी धार्मिक स्थलों को हटाया जाए। योगी आदित्यनाथ ने अफसरों को सख्ती से इस आदेश का पालन करने की हिदायत दी है और दो महीने के भीतर इस आदेश पर हुई कार्रवाई की पूरी रिपोर्ट मांगी है।
 
योगी सरकार की तरफ से इस संबंध में सभी जिला कलेक्टरों को एक सुर्कलर भेजा गया है। इस सर्कुलर के जरिए यह निर्देश दिया गया है कि 1 जनवरी 2011 या उसके बाद सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बनाया गया कोई भी धार्मिक स्थान, चाहे वो मंदिर हो, मस्जिद या मज़ार, उसे वहां से हटाया जाए। संबंधित धार्मिक स्थलों का रखरखाव करने वालों से उसे 6 महीने के अंदर दूसरी जगह प्राइवेट जमीन पर शिफ्ट करने के लिए कहा जाए, अगर ऐसा नहीं होता है तो संबंधित धार्मिक स्थल को वहां से हटा दिया जाए। इतना ही नहीं योगी सरकार ने इस संबंध में जारी आदेश के अनुपालन को लेकर भी रिपोर्ट मांगी है। अधिकारियों ने क्या कार्रवाई की, अतिक्रमण कब तक खाली होगा, हटाया जाएगा या शिफ्ट होगा, अधिकारियों को इसकी पूरी रिपोर्ट शासन को भेजनी होगी। अगर हाईकोर्ट के आदेशों का पालन नहीं किया जाता है तो संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी। 
 
राज्य सरकार के सूत्रों की मानें तो पिछले 10 वर्षों में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बड़े पैमाने पर अवैध रूप से धार्मिक स्थलों का निर्माण किया गया। 2009 के बाद तत्कालीन बीएसपी सरकार ने एक सर्वे किया था जिसमें अवैध रूप से निर्मित करीब 40 हजार धार्मिक स्थलों की पहचान की गई थी। 
 
योगी सरकार के इस पूरे अभियान का सबसे आश्चर्यजनक पहलू यह है कि ये पूरी कवायद उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में की जा रही है, जहां राजनीति में धर्म और जाति का बोलबाला है, जहां मज़हब के नाम पर सरकारें बनती-बिगड़ती हैं। इस पूरे अभियान में अभी तक कहीं से भी झगड़े और झंझट की खबरें नहीं आई हैं। न कहीं नारेबाजी हुई है और न विरोध प्रदर्शन और न ही सियासत। ये इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि यहां सरकार का इकबाल है। 
 
अधिकारियों को अपने काम के लिए बिल्कुल फ्री हैंड दिया गया है, काम में किसी तरह की कोई दखलंदाजी नहीं है। ये नहीं देखा जा रहा है कि जमीन पर कब्जा करके मंदिर बनाया गया है या फिर मस्जिद। ये भी नहीं देखा जा रहा है कि कब्जा करने वाले किस पार्टी के समर्थक हैं, किस दल के वोटर हैं। सिर्फ जमीन के कागज देखे जा रहे हैं और सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक जमीन पर मार्किंग की जा रही है। अगर पूरा मंदिर सरकारी जमीन पर बना है या सड़क के किनारे अतिक्रमण करके बनाया गया है और लोगों को उसकी वजह से मुश्किल हो रही है तो फिर पूरा मंदिर हटाया जा रहा है। अगर मंदिर या मस्जिद का कुछ हिस्सा ही सरकारी जमीन पर है तो फिर उतना हिस्सा ही हटाया जा रहा है।
 
ये मुहिम उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में चल रही है। इंडिया टीवी के संवाददाताओं ने लखनऊ, बाराबंकी और गाजियाबाद में अवैध रूप से अतिक्रमण कर बनाए गए धार्मिक स्थलों की रिपोर्ट भेजी है। उदाहरण के तौर पर बाराबंकी के फतेहपुर में रोड के किनारे बनी मजार को शिफ्ट कर दिया गया है। उसी तरह लखनऊ में भी रोड पर मंदिर के नाम पर हुए कब्जे को हटा दिया गया है। असल में योगी आदित्यनाथ ने अफसरों को निर्देश दिया है कि 1 जनवरी 2011 या उसके बाद कोई भी धार्मिक स्थल अगर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाया गया है तो उसे फौरन हटाया जाए। वहीं अगर अतिक्रमण कट ऑफ डेट से पहले का है तो संबंधित धार्मिक स्थल को हटाने लिए इससे जुड़े न्यास या रखरखाव करनेवालों को छह महीने का समय दिया जाए। 
 
दरअसल सितंबर 2009 में ही सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे के नाम पर सार्वजनिक स्थानों या सड़कों पर किसी भी तरह के अनधिकृत निर्माण की इजाजत नहीं दी जाएगी। अपने इसी आदेश को दोहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में सड़क, फुटपाथ या अन्य सार्वजनिक इस्तेमाल वाली जगहों पर प्रतिमा स्थापित करने या अन्य किसी प्रकार के निर्माण की इजाजत देने से राज्य सरकारों को रोक दिया था। 
 
सुप्रीम कोर्ट ने उस वक्त केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से कहा था, 'नाले के किनारे, तंबाकू-गुटखा बेचने वाले छोटी दुकानों के पास मंदिरों और मस्जिदों का निर्माण भगवान का अपमान है। इस तरह का निर्माण किसी आस्था की वजह से नहीं होता बल्कि लोग पैसा कमाने के लिए ऐसा करते हैं। राज्य सरकारों को उन्हें हटाना होगा। ”
 
अब जबकि योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इस महत्वपूर्ण काम को अंजाम देना शुरू किया है तो सभी राजनीतिक दलों की ये जिम्मेदारी है कि वे इस अभियान को अपना समर्थन दें। उत्तरप्रदेश में जो हो रहा है, वो दूसरे राज्यों के लिए नजीर है। 
 
योगी आदित्यनाथ ने जो किया वो बहुत हिम्मत का काम है क्योंकि कोई भी नेता न हिन्दुओं को नाराज़ करने का जोखिम उठाता है और न मुसलमानों को। चुनाव जीतने के लिए दोनों के वोट की जरूरत होती है। मंदिर टूटने से हिन्दू नाराज हो सकते हैं, मजार या मस्जिद टूटने से मुसलमान नाराज हो सकते हैं। लेकिन योगी ने नाराजगी की चिन्ता करने के बजाए आम लोगों की सहूलियत को ध्यान में रखा। लोगों को कहीं आने-जाने में किसी तरह की असुविधा न हो, इसका ख्याल रखा। दरअसल, पिछली सरकारों के उदासीन रवैए के चलते हर शहर की ये बड़ी समस्या है कि कहीं प्लेटफॉर्म पर मजार बनी है तो कहीं चौराहे पर बीचों-बीच मंदिर बना है।जहां जिसके मन में आता है वो एक मूर्ति रखकर चला जाता है और लिख देता है कि ये प्राचीन मंदिर है। इसके बाद उसे वहां से कोई नहीं हटाता है। सरकारी जमीन पर कब्जा करने का ये सबसे अच्छा और आसान तरीका बन गया है। 
 
अभी हाल का उदाहरण आपको देता हूं। इसी साल तीन जनवरी को दिल्ली के चांदनी चौक में बीच सड़क पर बने हनुमान मंदिर को दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर हटाया गया। इसके कुछ दिन के बाद 21 फरवरी को आधी रात के वक्त मंदिरनुमा स्टील के फ्रेम को सड़क पर रखकर फिर से हनुमान जी की वही मूर्ति रख दी गई। जबकि इस मूर्ति को हटाने के बाद नगर निगम के स्टोर में रखा गया था और वहां से इसे बड़े रहस्यमयी तरीके उठाकर मंदिरनुमा स्टील फ्रेम के अंदर रख दिया गया। और फिर से पूजा-पाठ शुरू हो गया। बड़ी बात ये है कि आधी रात में इस मंदिर के 'जीर्णोद्धार' में उत्तरी एमसीडी के मेयर, स्थानीय पार्षद और अन्य नेताओं ने हिस्सा लिया। बीजेपी और आम आदमी पार्टी, दोनों दलों के नेताओं ने दावा किया कि चांदनी चौक के लोगों ने मंदिर की फिर से स्थापना की है। वहां बीजेपी के नेता भी राम-नाम का जप करने पहुंचे और आम आदमी पार्टी के नेता भी हनुमान चालीस पढ़ने लगे वहीं कांग्रेस के नेता मूर्तियों को साष्टांग प्रणाम करते नज़र आए। तीनों पार्टियों के नेताओं ने ये सोचा  कि भक्त नाराज ना हो जाएं। आपको बता दें कि दिल्ली नगर निगम के चुनाव अगले साल अप्रैल में होने वाले हैं। 
 
दरअसल धार्मिक आधार पर वोट खोने के डर की वजह से राजनीतिक नेता इस तरह के अतिक्रमण और अवैध निर्माण की इजाजत देते हैं। वह काम जिसमें मंदिरों को भी गिराना शामिल हो, योगी आदित्यनाथ के लिए आसान नहीं है क्योंकि उनकी छवि एक राम भक्त की है। योगी अपने समर्थकों को कट्टर हिन्दू दिखते हैं। इसीलिए मेरा कहना है कि योगी आदित्यनाथ ने जो काम किया है, वो हिम्मत का काम है और इसका समर्थन करना चाहिए। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 16 मार्च, 2021 का पूरा एपिसोड

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