अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नए साल के पहले दिन ट्वीट करके धमकी दी कि वे पाकिस्तान को दी जानेवाली सारी मदद रोक देंगे। उन्होंने कहा कि उनके देश ने 'बेवकूफों की तरह पिछले 15 साल में पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर की मदद की है और उनलोगों ने सिवाय झूठ और धोखे के हमें कुछ नहीं दिया। उन्होंने हमारे नेताओँ को मूर्ख समझा।' ट्रंप ने आगे कहा, 'उन्होंने (पाकिस्तान) उन आतंकियों को पनाह दी जिन्हें हम अफगानिस्तान में तलाशते रहे। यह अब और नहीं चलेगा'
ट्रंप की धमकी के तुरंत बाद पाकिस्तान की सिविलियन और मिलिट्री लीडरशिप ने हड़बड़ी में एक बयान जारी करते हुए यह दावा किया कि पाकिस्तान की सेना किस तरह पिछले कई सालों से आतंकियों से लड़ती रही है। ठीक उसी समय सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज कमीशन ऑफ पाकिस्तान ने मोहम्मद हाफिज सईद के जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-ताइबा और फालाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन ट्रस्ट के चंदा लेने पर रोक लगा दी।
साफ है कि पाकिस्तान अमेरिका की चिंताओं को शांत करने के लिए ऐसा कर रहा है, यह पिछले साल हाफिज सईद के बनावटी 'हाउस अरेस्ट' की तरह ही है। पाकिस्तान को समझना चाहिए कि अब हाफिज सईद को दिखावे के लिए हाउस अरेस्ट करने, उसके ऑर्गेनाइजेशन को कागजों पर बैन करने से काम नहीं चलेगा। इस्लामाबाद के शासकों को आतंक से पैदा होनेवाले खतरों की गहराई का अहसास होना चाहिए और ठोस कार्रवाई करनी चाहिए, अन्यथा दुनिया पाकिस्तान को कभी गंभीरता से नहीं लेगी।
जहां तक ट्रंप के बयान का सवाल है वे वही बात कह रहे हैं जो भारत पिछले कई दशक से कहता आ रहा है। 'गुड टेररिस्ट' और 'बैड टेररिस्ट' जैसी कोई चीज नहीं है। अब ट्रंप के कड़े रूख का यह असर होगा कि पाकिस्तान में बैठे हुए हाफिज सईद और अन्य आतंकी संगठन के नेता कहेंगे कि भारत की बातों में आकर अमेरिका पाकिस्तान को दबाना चाहता है। ये जिहादी संगठन अमेरिका और भारत के खिलाफ जमकर जहर उगलेंगे। (रजत शर्मा)