महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास स्थित करमाड में गुरुवार सुबह हुई एक भीषण दुर्घटना में एक मालगाड़ी की चपेट में आने से 16 प्रवासी मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई। हादसे की खबर मिलते ही पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। ये प्रवासी मजदूर जालना की एक स्टील फैक्ट्री में काम करते थे। इन्हीं में से 21 लोगों के एक ग्रुप ने पैदल ही मध्य प्रदेश के भुसावल जंक्शन जाने का फैसला किया था। 38 किमी तक रेल की पटरियों के किनारे-किनारे चलने के बाद वे थक गए। इसके बाद उन्होंने रेल की पटरियों पर ही बैठकर रोटी और चटनी खाई और फिर सो गए। मालगाड़ी के मजदूरों को रौंदने से पहले सिर्फ 5 मजदूर ही अपनी जान बचाने के लिए कूद पाए।
मौके पर बेहद ही खूनी मंजर था। शरीर टुकड़ों में कट गया था। खाना, नोट और अन्य सामान चारों ओर बिखरे हुए थे। हाइवे पर पुलिस की गश्त से बचने के लिए प्रवासी मजदूरों ने रेल की पटरियों के साथ चलना ही ठीक समझा। इस भीषण दुर्घटना में बचे लोगों ने कहा कि उन्होंने मध्य प्रदेश जाने के लिए जालना में रेलवे टिकट लेने की कोशिश की थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। यह त्रासदी भी हजारों मजदूरों को पैदल ही अपनी मंजिल की तरफ निकलने से नहीं रोक पाई है। इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने गुरुवार को ठाणे के पास रेल की पटरियों के किनारे टोली बनाकर जा रहे प्रवासी मजदूरों को देखा। उनमें से कई मजदूर अपने बच्चों को गोद में उठाए और सामान लादे हुए थे। मजदूर घंटों तक चलकर थक कर चूर होने के बाद ट्रैक पर चलने वाली मालगाड़ियों के खतरे से बेपरवाह होकर रेल की पटरियों पर ही बैठ गए।
मुझे विश्वास है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिवारों की मदद जरूर करेंगे, लेकिन प्रवासी मजदूरों की समस्या से बड़े पैमाने पर निपटना होगा। बहुत ज्यादा सावधानी की जरूरत है। अब तक भारतीय रेलवे ने लगभग 2.5 लाख प्रवासी कामगारों को ले जाने वाली 222 विशेष रेलगाड़ियां चलाई हैं, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में कुछ गंभीर कम्यूनिकेशन गैप नज़र आता है। श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में यात्रा करने वाले प्रवासी मजदूरों ने रेलवे की तारीफों के पुल बांधे हैं। इनमें से कई मजदूरों ने इंडिया टीवी को बताया कि उन्हें समय पर चाय और खाना परोसा गया था, और उन्हें रेलवे स्टेशनों तक ले जाने के लिए बसों की व्यवस्था की गई थी।
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि ट्रेनों की कोई कमी नहीं है। यदि राज्य सरकारें चाहें तो लगभग 10,000 ट्रेनों को चलाया जा सकता है, लेकिन कम्यूनिकेशन गैप के चलते उन मजदूरों को ही उस प्रक्रिया के बारे में नहीं पता जिसके तहत वे इस सुविधा का लाभ उठा सकें। यही कारण है कि हजारों प्रवासी श्रमिक अभी भी अपने गांव-घर तक पहुंचने की उम्मीद में अपना सामान लादे और अपने बच्चों को गोद में उठाए हाइवे पर और रेल की पटरियों पर पैदल ही चले जा रहे हैं। इंडिया टीवी के पत्रकारों ने कई जगहों पर प्रवासी मजदूरों से बात की। इससे तीन मुख्य बातें पता चलीं। पहली, इन मजदूरों को ट्रेनों के चलने के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, दूसरी, उन्हें यह नहीं पता है कि ट्रेनें कहां से चलेंगी। तीसरी, वे नहीं जानते कि कौन-से फॉर्म भरने हैं, कितने पैसे देने हैं और किसको देने हैं।
कई मजदूरों के मन में डर है कि घर पहुंचने पर उन्हें दो हफ्ते के लिए क्वॉरन्टीन में रहने के लिए मजबूर किया जा सकता है। यही वजह है कि मजदूरों ने पुलिस और क्वॉरन्टीन दोनों से बचने के लिए पैदल यात्रा करने का विकल्प चुना है। प्रवासी मजदूर मुंबई से भोपाल, कोलकाता, कच्छ (गुजरात) जैसी जगहों तक जाने के लिए पैदल ही निकल रहे हैं। लखनऊ, पटना और भागलपुर जाने वाले कई मजदूर साइकिल से ही निकल पड़े हैं। इंडिया टीवी के रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने जयपुर में रेल की पटरियों पर चल रहे मजदूरों से बात की। ये सभी मजदूर राजस्थान के जोधपुर से आए थे। वे 850 किलोमीटर पैदल चलकर यूपी के फतेहपुर जाना चाहते थे और उसमें से भी लगभग 550 किलोमीटर की दूरी चलते-चलते तय कर चुके थे।
जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो इन मजदूरों ने कहा कि उन्होंने स्पेशल ट्रेन के लिए अपना नाम रजिस्टर किया था, लेकिन उन्हें एक एसएमएस आया जिसमें 10-15 दिनों तक इंतजार करने के लिए कहा गया था। इन मजदूरों ने कहा कि उनके पास घर का किराया या बस किराया देने के लिए पैसे नहीं थे और राशन भी बहुत कम बचा था। इसलिए उन्होंने पैदल ही सफर पर निकलना बेहतर समझा। इनमें से कई मजदूरों को औरंगाबाद में हुई भीषण दुर्घटना के बारे में पता था, लेकिन उन्होंने कहा कि शहरों में भूखे रहने की बजाय वे पैदल घर जाना चाहेंगे। प्रवासी मजदूर अहमदाबाद, मंगलुरु, कठुआ, और आसनसोल जैसी जगहों से पैदल ही निकल पड़े हैं और उनका केवल एक ही लक्ष्य है और वह है अपने गांवों तक पहुंचना। सबसे बड़ा पलायन आर्थिक तौर पर मजबूत महाराष्ट्र और गुजरात से हो रहा है जहां ज्यादातर प्रवासी मजदूर काम करते हैं।
इंडिया टीवी के रिपोर्टर निर्णय कपूर ने बताया कि गुजरात से अब तक 4.25 लाख मजदूरों को उनके गृह राज्यों में भेजा जा चुका है। 98 स्पेशल ट्रेनों के जरिए यूपी, ओडिशा, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के 1.21 लाख मजदूरों को भेजा गया है। राज्य सरकार ने अहमदाबाद में कॉल सेंटर बनाया और एक टोल फ्री नंबर जारी किया। प्रवासी मजदूर को उस नंबर पर फोन करना होगा, खुद का रजिस्ट्रेशन कराना होगा, इसके बाद रजिस्ट्रेशन लिंक भेजा जाएगा, और रजिस्ट्रेशन डेटा के आधार पर स्पेशल ट्रेन के लिए रिक्वेस्ट भेजी जाएगी। रोज औसतन 20 हजार मजदूर अपने नामों का रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं। गुजरात में 42 लाख से भी ज्यादा प्रवासी मजदूर हैं, और यही वजह है कि सारे इंतजाम कम पड़ रहे हैं। वहीं, प्रवासी मजदूर भी इंतजार करने के मूड में नहीं हैं।
वहीं कुछ भेड़िए भी हैं जो इन परेशान मजदूरों के शिकार में लगे हुए हैं। वे मजदूरों से उनके गंतव्य तक ले जाने के लिए मनमाने पैसे वसूल रहे हैं। नोएडा पुलिस ने 2 ऐसे ही लोगों को गिरफ्तार किया है, जो अपने गिरोह के सरगना मोनू के साथ बिहार के प्रवासी मजदूरों से भरे एक इलाके में अपनी बसों को ले गए थे। उन्होंने पहले तो मजदूरों को मुफ्त में ले जाने की बात कही, लेकिन जब मजदूर अपने सामान के साथ आए, तो उन्होंने प्रति सवारी 3 हजार रुपयों की मांग की। जब पुलिस मौके पर पहुंची तो गिरोह का सरगना पैसे लेकर फरार हो गया। उसके 2 सहयोगी पुलिस की गिरफ्त में हैं।
यूपी के मुरादाबाद में लुटेरों के एक गिरोह ने बिजनौर से लखनऊ की ओर जा रहे प्रवासी मजदूरों को रोका और उनके पैसे लूट लिए। तभी स्थानीय ग्रामीण बीच में आए और लुटेरों में से एक को पकड़कर उसकी पिटाई कर दी। उसका साथी लूटी गई रकम लेकर फरार हो गया। लेकिन बड़ी चुनौती अभी बाकी है। हरियाणा में लगभग एक लाख प्रवासी मजदूरों ने काम पर लौटने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया है। इन प्रवासियों को कुछ दिन पहले ही हरियाणा से बाहर ले जाया गया था। लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि कारखाने फिर से खुल रहे हैं, वे काम पर वापस आना चाहते हैं। जल्द ही अन्य राज्यों को भी इस समस्या का सामना करना पड़ेगा। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 08 मई 2020 का पूरा एपिसोड