Sunday, December 22, 2024
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Rajat Sharma Blog: एग्जिट पोल के अनुमान मोदी के पक्ष में क्यों हैं ?

मुझे नहीं लगता कि एग्जिट पोल के अनुमानों में जो दावे किए गए हैं उनकी सत्यता पर संदेह का कोई कारण हो। अगर आप सारे एग्जिट पोल्स को मिला दें तो सैंपल साइज बीस लाख से ज्यादा होता है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated : May 21, 2019 20:09 IST
Rajat Sharma Blog: exit poll, projections, Modi
Image Source : INDIA TV Rajat Sharma Blog: Why the exit poll projections in favour of Modi sound convincing

एग्जिट पोल के अनुमान सामने आ चुके हैं और लगभग सभी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को स्पष्ट बहुमत मिलने की भविष्यवाणी की है। जहां बीजेपी के नेताओं ने इन अनुमानों का स्वागत किया है वहीं कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को अगाह किया है कि वे एग्जिट पोल से जुड़ी अफवाहों पर ध्यान न देते हुए मतगणना केंद्रों पर अपनी निगाह चौकस रखें। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा, ' मैं एग्जिट पोल से जुड़ी बातों पर भरोसा नहीं करती। इस तरह की बातों के जरिये हजारों ईवीएम में फेरबदल या हेरफेर करने का गेम प्लान है।' 

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के चीफ शरद पवार ने कहा कि एग्जिट पोल की भविष्यवाणी 'नौटंकी' है और 23 मई को सच सामने आएगा। पवार एक अनुभवी नेता हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से ऐसे बयान दे रहे हैं जिसकी उम्मीद कम-से-कम शरद पवार जैसे नेता से नहीं की जा सकती। पवार ने कहा कि अगर उनकी बेटी सुप्रिया सुले बारामती सीट से हार जाती हैं, तो इसका मतलब ईवीएम में हेरफेर किया गया है। निश्चित तौर पर ये खतरनाक बात है। पवार ने प्रधानमंत्री की केदारनाथ यात्रा पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के कंधों पर देश की जिम्मेदारी है और वो केदारनाथ में ध्यान क्यों लगा रहे हैं। शरद पवार ने यह टिप्पणी इफ्तार पार्टी में की। वैसे ये बात शरद पवार को भी पता होगी कि आजकल सोशल मीडिया पर क्या-क्या लिखा जा रहा है। उन्हें सोशल मीडिया पर की जा रही टिप्पणियों पर ध्यान देना चाहिए कि पहले के शासनों में, इफ्तार पार्टी की तस्वीरें प्रकाशित हुआ करती थीं, लेकिन अब समय बदल गया है, और अब चार धाम यात्रा की तस्वीरें दिखाई जा रही हैं। पवार जैसे अनुभवी राजनेता जनता के मन में होने वाले बदलाव को निश्चित रूप से समझेंगे।

अब एग्जिट पोल पर आते हैं: मुझे नहीं लगता कि एग्जिट पोल के अनुमानों में जो दावे किए गए हैं उनकी सत्यता पर संदेह का कोई कारण हो। अगर आप सारे एग्जिट पोल्स को मिला दें तो सैंपल साइज बीस लाख से ज्यादा होता है। यानि हर लोकसभा सीट का सैंपल साइज करीब तीन हजार आता है और ये बहुत बड़ा सैंपल साइज है। अगर सारे एग्जिट पोल्स कह रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी एक बार फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएंगे तो फिर इसमें शक की गुंजाइश नहीं रह जाती है। हां, सीटों में अंतर हो सकता है। अगर एनडीए को 250 से ज्यादा सीटें भी मिलती हैं तो भी नरेन्द्र मोदी की ही सरकार बनती दिख रही है। 

मुझे लगता है कि ऐसी स्थिति बनने के कई कारण हैं। पहला-ज्यादातर युवा मतदाता सोशल मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से जुड़े हुए हैं, और उनमें से अधिकांश ने मोदी को पसंद किया है। 'द हिन्दू' अखबार में एक रिपोर्ट छपी है, जिसमें कहा गया है कि है कि राफेल और रोजगार का मुद्दा चुनाव में युवा मतदाताओं पर ज्यादा असर नहीं छोड़ पाया। जीएसटी, जिससे दुकानदार प्रभावित हुए और राहुल गांधी ने जिसे गब्बर सिंह टैक्स बताया था, केवल 12 फीसदी मतदाताओं को प्रभावित कर पाया। राहुल गांधी की बहुप्रचारित एनवाईएवाई (न्याय)  योजना जिसमें बीपीएल परिवारों को 72 हजार रुपये सालाना देने का वादा किया गया था, मतदाताओं को लुभा पाने में विफल रही।

वहीं दूसरी ओर इस रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश मतदाताओं ने नरेन्द्र मोदी के बारे में माना कि वो ईमानदार हैं। इस चुनाव में भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं था। इस चुनाव में बीजेपी को मिले समर्थन के पीछे सबसे बड़ी बात ये कि विपक्षी दलों के पास प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के कद का कोई नेता नहीं है। ऐसा भी कह सकते हैं कि इस समय देश में मोदी का कोई विकल्प नहीं है। अधिकांश मतदाओं ने वंशवाद और परिवारवाद को साफ तौर से नकार दिया। 

मोटे तौर पर ये कहा जा सकता है कि पूरे चुनाव में नरेन्द्र मोदी अकेला बड़ा फैक्टर रहे। एनडीए की तरफ से कहा गया कि हमारे नेता नरेन्द्र मोदी हैं और वहीं विपक्ष में ढेर सारे दावेदार थे और ये कहा गया कि नेता कौन होगा बाद में बताएंगे। अगर एग्जिट पोल सही है तो इसका मतलब ये है कि लोगों के गले ये बात नहीं उतरी। इंडिया टीवी के रिपोर्टर्स ने मुझे बताया कि कई जगह लोग बीजेपी के उम्मीदवार से नाराज थे लेकिन मोदी को वोट देने के लिए उन्होंने उम्मीदवार का नाम नहीं देखा और मोदी के नाम पर मुहर लगा दी।

विरोधी दलों की सारी उम्मीद उत्तर प्रदेश पर टिकी थी, जहां बीजेपी को हराने के लिए सपा और बसपा एक साथ आ गए। लेकिन एग्जिट पोल में ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। चुनावी आंकड़ों के पंडितों को लगता था कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को इतना ज्यादा नुकसान होगा कि उसकी भरपाई कहीं से नहीं हो पाएगी। ये लोग पश्चिम बंगाल में भी टीएमसी की जीत की उम्मीद लगाए बैठे थे। लेकिन बंगाल के मतदाताओं के दृष्टिकोण में एक बड़ा बदलाव नजर आया है और ममता बनर्जी को अपने राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। पश्चिम बंगाल और ओडिशा दोनों में भाजपा के पक्ष में बड़े उतार-चढ़ाव हो सकते हैं। (रजत शर्मा)

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