दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल की दुखद और शर्मनाक स्थिति को लेकर 'आज की बात' में दिखाई रिपोर्ट पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार और एलएनजेपी अस्पताल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, '10 जून को इंडिया टीवी ने एक वीडियो रिपोर्ट दिखाई जिसमें मरीज दयनीय हालत में हैं। वार्ड, लॉबी और वेटिंग एरिया में शव पड़े हुए हैं। यह एक सरकारी अस्पताल की हालत है।'
बुधवार की रात मैंने 'आज की बात' शो में दिखाया था कि एलएनजेपी अस्पताल में वार्ड के अंदर सांस लेने के लिए हांफते कोविड मरीजों के पास किस तरह से शव पड़े हैं। इंडिया टीवी पर दिखाई गई इन भयावह तस्वीरों पर एलएनजेपी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक (मेडिकल सुपरिटेंडेंट) ने हैरान करनेवाली सफाई दी।
मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुरेश कुमार ने दावा किया कि बुधवार की पूरी रात वो अस्पताल में ही रहे और सो नहीं पाए। लाखों अन्य दर्शकों की तरह मैं भी बुधवार की रात ठीक से सो नहीं सका। हर वक्त आंखों के सामने बेड के ऊपर बैठे एक कोरोना मरीज और उसके बेड के नीचे पड़ी कोरोना मरीज की नंगी लाश घूमती रही। वार्ड में बेहोश पड़े लोग, कॉरिडोर में उल्टियां करते रहे लोगों के बारे में सोच-सोचकर नींद उड़ गई।
मेडिकल सुपरिटेंडेंट ने दावा किया कि वो पूरी रात एलएनजेपी अस्पताल में रहे और उन्हें कोई गड़बड़ी नजर नहीं आई। मैं हैरान रह गया जब उन्होंने ये बातें इंडिया टीवी पर लाइव कही। मैं भी बहुत से डॉक्टर्स को जानता हूं और समझता हूं कि डॉक्टर्स किन हालात और दबाव में काम करते हैं, लेकिन कोई मेडिकल सुपरिटेंडेंट ये कहे कि हॉस्पिटल में बहुत कमजोर...बहुत गंभीर हालात में लोग आते हैं और गर्मी ज्यादा होने के चलते अपने कपड़े उतार देते हैं, यह वाकई हैरान करनेवाला बयान है।
एक मेडिकल सुपरिटेंडेंट के लिए यह कहना कि उन्होंने उन वीडियोज में कुछ भी गलत नहीं पाया जिसमें मरीजों को बेड से लटकते हुए दिखाया गया, मरीजों के बेड के आसपास डेड बॉडी दिखाई गई, यह वास्तव में हैरान करनेवाला है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक टीम ने गुरुवार को एलएनजेपी अस्पताल का दौरा कर वार्डों में मरीजों की स्थिति का जायजा लिया। दिल्ली सरकार ने LNJP अस्पताल में नर्सिंग के प्रमुख सहित दो कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया है, और ऐसा लगता है कि केवल यही एक चीज है जो राज्य सरकार कर सकती है।
सवाल यह नहीं है कि कर्मचारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई। सवाल इस अस्पताल के बारे में रोगियों और रिश्तेदारों के मन में भरोसा बहाल करने को लेकर है। मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. सुरेश कुमार ने जो भी कहा है वह निश्चित रूप से लोगों का भरोसा तोड़ देगा। आइए, सबसे पहले पढ़ते हैं कि एमएस ने क्या कहा।
इंडिया टीवी एंकर सुशांत सिन्हा ने एलएनजेपी के मेडिकल सुपरिटेंडेंट से गुरुवार सुबह लाइव बात की। बाहर खुले में स्ट्रेचर पर पड़े शवों के बारे में उन्होंने कहा- इन्हें नीचे लाया गया और लिफ्ट के बाहर रखा गया। बिना कपड़ों के बिस्तर पर लेटे मरीजों के बारे में उन्होंने जो स्पष्टीकरण दिया वह क्लासिक था। उन्होंने कहा- कोरोना वायरस के संक्रमण के खतरे के मद्देनजर सेंट्रल एसी कूलिंग सिस्टम को बंद कर दिया गया था और इसमें कुछ भी गलत नहीं है अगर 40 डिग्री तापमान की गर्मी में मरीज अपने कपड़े उतार देते हैं। मरीजों के बेड के नीचे पड़े नंगे शव के बारे में उन्होंने कहा कि कुछ मरीजों के कपड़े इसलिए उतारे गए थे क्योंकि उन्हें या तो सीपीआर दिया गया था या उनके यूरिन कैथेटर ट्यूब को बदला गया था।
स्पष्ट रूप से, ये मेडिकल सुपरिटेंडेंट द्वारा अपने डॉक्टरों, नर्सों और अटेंडेंट्स की ओर से की गई घोर लापरवाही से बचाव के लिए बताए गए झूठे बहाने थे। जब वीडियो बनाया गया था तो उस वक्त एक भी डॉक्टर या नर्स वार्ड में नजर नहीं आया।
हमने अपने रिपोर्टर पवन नारा को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल भेजा, जिसे हाल ही में एक COVID समर्पित अस्पताल में बदल दिया गया है। उन्होंने उन वार्डों का दौरा किया, जहां COVID रोगियों का इलाज किया जा रहा था। हमारे रिपोर्टर ने पीपीई किट, फेस मास्क और दस्ताने पहने हुए थे, और उन्होंने डॉक्टरों से बात करते समय एक दूरी बनाए रखी।
इस प्राइवेट अस्पताल में COVID रोगी को जब भर्ती कराया जाता है तो उसे सैनिटाइज किया हुआ साफ बेड दिया जाता है, और प्रत्येक बेड में ऑक्सीजन मॉनिटरिंग सिस्टम होता है। प्रत्येक COVID रोगी पर डॉक्टरों और नर्सों द्वारा बेहद सतर्कता से ध्यान दिया जाता है और वे यह सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतते हैं कि रोगी की स्थिति न बिगड़े।
यही मूल अंतर है दोनों अस्पतालों में। मैं सरकारी अस्पतालों की तुलना में निजी अस्पतालों के हेल्थ केयर वर्कर्स के बीच ईमानदारी की समझ अधिक पाता हूं। एलएनजेपी अस्पताल में COVID रोगियों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था, जबकि गंगाराम अस्पताल में डॉक्टरों, नर्सों, अटैंडेंट्स के साथ ही मरीजों के लिए ऑक्सीजन मॉनिटर, ड्रिप इत्यादि जैसी सुविधाएं हैं।
एक तरफ ये अस्पताल है जहां ऑक्सीजन का इंतजाम है, मरीजों की 24 घंटे मॉनिटरिंग होती है और वहीं दूसरा अस्पताल वो जहां मरीज अपने भाग्य भरोसे लाशों के बीच बेसुध पड़े हैं। जहां बेड के नीचे लाश पड़ी है और ऊपर मरीज़ लेटा है। एक अस्पताल ये है जिसने किसी तरह से मॉडिफाई करके अपने एयर कंडीशनिंग को शुरू किया है ताकि मरीजों को कोई परेशानी न हो, वहीं दूसरी ओर हमारे एक मेडिकल सुपरिटेंडेंट हैं जो यह बताते हैं कि मरीज 40 डिग्री सेल्सियस गर्मी में बिना कपड़ों के बिस्तर पर क्यों लेटे हैं।
एक तरफ ये अस्पताल है जिसमें जहां कैमरा घूमता है तो वहां कोविड मरीजों के पास पीपीई किट पहने डॉक्टर्स नजर आते हैं। नर्स और अटेंडेंट दिखते हैं। वहीं दूसरी तरफ एक ऐसा अस्पताल जिसमें 15 मिनट तक कैमरा घूमा लेकिन कहीं भी, एक भी डॉक्टर, एक भी नर्स और एक भी अटेंडेंट नजर नहीं आया।
इन दोनों वीडियो की तुलना कर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के बजाय प्राइवेट अस्पतालों को क्यों पसंद करते हैं। जब आप किसी अस्पताल के कोविड वार्ड में मरीज के बेड के नीचे नंगे शव को पाते हैं, अस्पताल के लगभग हर वार्ड में शव मिलते हैं तो ऐसे मामलों में किसी तरह की झूठी बहानेबाजी नहीं चलेगी।
मुझे सबसे ज्यादा दुख है LNJP अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट की ये बात सुनकर कि बुधवार की सारी रात वो अस्पताल के अंदर मौजूद थे। इसके बाद भी उन्हें ये नहीं पता कि वहां पर मरीज बेसुध-बेहोश क्यों पड़े हैं, उनकी देखरेख के लिए कोई क्यों नहीं है? उन्होंने कहा वो इसकी जांच करवाएंगे और गुरुवार शाम छह बजे तक सारी जांच करके हमें बताएंगे। लेकिन अभी तक किसी सवाल का जबाव नहीं मिला है। हम अभी-भी इंतजार कर रहे हैं।
मैं मानता हूं कि कोरोना का कोई इलाज नहीं है और मरीजों को ठीक करने के लिए इसकी कोई दवा नहीं है। मैं ये भी मानता हूं बेहतर इलाज सिर्फ सुविधाओं के माध्यम से नहीं होता और न ही इसके लिए बेहतर एयर कंडीशनिंग की जरूरत होती है।
मैं ये भी मानता हूं कि बेहतर इलाज के लिए ये जरूरी नहीं कि कोविड मरीज के पास हर वक्त डॉक्टर और नर्सेज खड़े रहें। लेकिन मुझे यह पता है कि यदि आप चाहते हैं कि आपका रोगी ठीक हो जाए तो इलाज के लिए कम से कम उसे जिस चीज की जरूरत है, वह है हमदर्दी और हौसला।
अगर मरीज को यकीन हो कि उसका इलाज करने वाले वास्तव में उसका ख्याल रख रहे हैं और उसकी परवाह कर रहे हैं, अगर मरीज को भरोसा हो कि उसे मरने के लिए अकेला नहीं छोड़ा गया है, अगर डॉक्टर मरीज को ये हौसला दें कि वो जल्दी ठीक हो जाएगा तो मौत के दरवाजे पर खड़े लोगों को भी मैंने मौत को मात देते देखा है।
केवल एक चीज जो COVID से जूझ रहे एक मरीज को चाहिए होती है, वह है हिम्मत और डॉक्टर के दिल में हमदर्दी। लेकिन जब एक वार्ड के अंदर मरीज के चारों तरफ लाशें पड़ी हों तो वो क्या हौसला रखेगा। वह तो निश्चित रूप से मौत आने से पहले ही मर चुका होगा।
जिन दर्शकों ने LNJP अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को इंडिया टीवी पर बोलते हुए देखा वे अब साफ तौर पर समझ गए होंगे कि उनके दिल में मरीजों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं है। एलएनजेपी अस्पताल के वीडियो और मेडिकल सुपरिटेंडेंट द्वारा दिए गए स्पष्टीकरणों को देखने के बाद, मैं बिना किसी संदेह के कह सकता हूं कि उस अस्पताल में काम करने वालों की संवेदना मर चुकी है। वे केवल अपनी खाल बचाने के लिए बहानेबाजी की कोशिश कर रहे हैं। उनके हिसाब से लाशें लुढक सकती हैं, लाशें चल सकती हैं और बेड के नीचे पहुंच सकती है। उनके हिसाब से मरीज इसलिए बेहोश हैं क्योंकि वो आराम से सो रहे हैं।
ये सारी बातें हर उस मरीज के साथ जुल्म और अन्याय है जिन्होंने इस सरकारी अस्पताल में इलाज कराने का विकल्प चुना। ये मरीज़ हमारे और आपके पैसों से बने अस्पताल में इस उम्मीद में गए थे कि उन्हें जिंदगी वापस मिल जाएगी।
मैंने LNJP के वीडियो को दिल्ली सरकार के अलग-अलग लोगों को भेजे थे। सबसे निवेदन किया था कि कुछ एक्शन तो होना चाहिए। एक्शन हुआ और दो नर्सेज को सस्पेंड कर दिया गया। क्या ये खानापूर्ति नहीं तो और क्या है? मैं कभी नहीं चाहता कि किसी डॉक्टर को या नर्स को सस्पेंड किया जाए। इससे कुछ नहीं होता। ये पुराने जमाने के तरीके हैं और आजकल इनसे कोई नहीं डरता।
हम सभी चाहते हैं कि एलएनजेपी अस्पताल में अभी भी जिन 700 से अधिक COVID मरीजों का इलाज चल रहा है, कम से कम उनकी बेहतर देखभाल कैसे की जाए, इसका प्लान बनाया जाए। वार्डों से शवों को कैसे निकाला जाए, कैसे डॉक्टर और नर्स हर मरीज को अटैंड करें, इसकी व्यवस्था हो। 40 डिग्री सेल्सियस की गर्मी से रोगियों को कैसे बचाया जाए, और अंत में, तय करना होगा कि उन्हें बेबस हालत में मरने के लिए नहीं छोड़ा जाए। अगर अस्पताल इन बिंदुओं पर कार्रवाई करता है, तो मैं समझूंगा कि एक्शन हो गया और मुझे संतुष्टि महसूस होगी। जो हुआ सो हुआ। अब हमें आगे बढ़ना है और अपने हेल्थ केयर सिस्टम में सुधार करना है। यह जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 11 जून 2020 का पूरा एपिसोड