Tuesday, November 05, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog: मोदी ने भगवान राम को राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय शौर्य का प्रतीक क्यों बताया

Rajat Sharma’s Blog: मोदी ने भगवान राम को राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय शौर्य का प्रतीक क्यों बताया

मोदी ने यह संदेश देने की कोशिश की कि राम मंदिर के निर्माण को हिंदुओं की जीत और मुसलमानों की हार के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। यही कारण है कि उन्होंने भगवान राम को भारतीय सभ्यता और संस्कृति के एक प्रतीक, एक आइकन के रूप में पेश किया।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: August 06, 2020 14:25 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma, Blog, Rajat Sharma Blog on Ram Mandir- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

पांच अगस्त को अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भूमि पूजन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो भाषण दिया, वह सारगर्भित और विलक्षण पांडित्य से भरा था। राम के विश्वव्यापी रूप की ऐसी व्याख्या शायद ही पहले किसी प्रधानमंत्री ने किया हो। अपने भाषण में मोदी ने भारत की सभ्यता, संस्कृति और लोकाचार में भगवान राम के महत्व पर बल दिया।

तुलसीदास के रामचरितमानस, गुरु गोविंद सिंह के उपदेशों और रामायण के कई अन्य संस्करणों में कही गई बातों का जिक्र करते हुए मोदी ने लोगों से भगवान राम की ‘मर्यादा’ का पालन करने और विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोगों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने लोगों से दूसरों की भावनाओं को आहत न करने की भी अपील की और कहा कि भगवान राम केवल भारत के हिंदुओं के नहीं, बल्कि विभिन्न धर्मों के लोगों के हैं।

मोदी ने कहा, ‘दुनिया में कितने ही देश राम के नाम का वंदन करते हैं, वहां के नागरिक खुद को श्रीराम से जुड़ा हुआ मानते हैं, विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या जिस देश में है, उस इंडोनेशिया में भारत की तरह काकाविन रामायण, स्वर्णदीप रामायण, योगेश्वर रामायण जैसी कई अनूठी रामायणें हैं। राम आज भी वहां पूजनीय हैं। कम्बोडा में रमकेर रामायण हैं, लाओस में फा लाक, फ्रा लाम रामायण है, मलेशिया में हिकायत सेरी राम, तो थाईलैंड में रामाकेन हैं। आपको ईरान और चीन में भी राम के प्रसंग तथा रामकथाओं का विवरण मिलेगा।‘

‘भगवान बुद्ध भी राम से जुड़े हैं तो सदियों से ये अयोध्या नगरी जैन धर्म की आस्था का केंद्र भी रही है। राम की यही सर्वव्यापकता भारत की विविधता में एकता का जीवन चरित्र है! तमिल में कंब रामायण तो तेलगू में रघुनाथ और रंगनाथ रामायण हैं। उड़िया में रूइपाद-कातेड़पदी रामायण तो कन्नड़ा में कुमुदेन्दु रामायण है। आप कश्मीर जाएंगे तो आपको रामावतार चरित मिलेगा, मलयालम में रामचरितम् मिलेगी। बांग्ला में कृत्तिवास रामायण है तो गुरु गोबिन्द सिंह ने तो खुद गोबिन्द रामायण लिखी है। अलग अलग रामायणों में, अलग अलग जगहों पर राम भिन्न-भिन्न रूपों में मिलेंगे, लेकिन राम सब जगह हैं, राम सबके हैं। इसीलिए, राम भारत की ‘अनेकता में एकता’ के सूत्र हैं।’

मोदी ने कहा – 'जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं है, जहां हमारे राम प्रेरणा न देते हों। भारत की ऐसी कोई भावना नहीं है जिसमें प्रभु राम झलकते न हों। भारत की आस्था में राम हैं, भारत के आदर्शों में राम हैं! भारत की दिव्यता में राम हैं, भारत के दर्शन में राम हैं! हजारों साल पहले वाल्मीकि की रामायण में जो राम प्राचीन भारत का पथ प्रदर्शन कर रहे थे, जो राम मध्ययुग में तुलसी, कबीर और नानक के जरिए भारत को बल दे रहे थे, वही राम आज़ादी की लड़ाई के समय बापू के भजनों में अहिंसा और सत्याग्रह की शक्ति बनकर मौजूद थे! तुलसी के राम सगुण राम हैं, तो नानक और कबीर के राम निर्गुण राम हैं!'

प्रधानमंत्री ने राम जन्मभूमि मंदिर के लिए किए गए आंदोलन की तुलना भारत की स्वाधीनता के लिए किए गए संघर्षों से की।

मोदी ने कहा – ‘हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई-कई पीढ़ियों ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था। गुलामी के कालखंड में कोई ऐसा समय नहीं था जब आजादी के लिए आंदोलन न चला हो, देश का कोई भूभाग ऐसा नहीं था जहां आजादी के लिए बलिदान न दिया गया हो। 15 अगस्त का दिन उस अथाह तप का, लाखों बलिदानों का प्रतीक है, स्वतंत्रता की उस उत्कंठ इच्छा, उस भावना का प्रतीक है। ठीक उसी तरह, राम मंदिर के लिए कई-कई सदियों तक, कई-कई पीढ़ियों ने अखंड अविरत एक-निष्ठ प्रयास किया है। आज का ये दिन उसी तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है। राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में अर्पण भी था, तर्पण भी था, संघर्ष भी था, संकल्प भी था। जिनके त्याग, बलिदान और संघर्ष से आज ये स्वप्न साकार हो रहा है, जिनकी तपस्या राम मंदिर में नींव की तरह जुड़ी हुई है, मैं उन सब लोगों को आज नमन करता हूँ, उनका वंदन करता हूं। संपूर्ण सृष्टि की शक्तियां, राम जन्मभूमि के पवित्र आंदोलन से जुड़ा हर व्यक्तित्व, जो जहां है, इस आयोजन को देख रहा है, वो भाव-विभोर है, सभी को आशीर्वाद दे रहा है।’

प्रधानमंत्री ने कहा – ‘राम हमारे मन में गढ़े हुए हैं, हमारे भीतर घुल-मिल गए हैं। कोई काम करना हो, तो प्रेरणा के लिए हम भगवान राम की ओर ही देखते हैं। आप भगवान राम की अद्भुत शक्ति देखिए। इमारतें नष्ट कर दी गईं, अस्तित्व मिटाने का प्रयास भी बहुत हुआ, लेकिन राम आज भी हमारे मन में बसे हैं, हमारी संस्कृति का आधार हैं। श्रीराम भारत की मर्यादा हैं, श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।’

‘भारत आज भगवान भास्कर के सान्निध्य में सरयू के किनारे एक स्वर्णिम अध्याय रच रहा है। कन्याकुमारी से क्षीरभवानी तक, कोटेश्वर से कामाख्या तक, जगन्नाथ से केदारनाथ तक, सोमनाथ से काशी विश्वनाथ तक, सम्मेद शिखर से श्रवणबेलगोला तक, बोधगया से सारनाथ तक, अमृतसर से पटना साहिब तक, अंडमान से अजमेर तक, लक्ष्यद्वीप से लेह तक, आज पूरा भारत राममय है। पूरा देश रोमांचित है, हर मन दीपमय है। आज पूरा भारत भावुक भी है। सदियों का इंतजार आज समाप्त हो रहा है। करोड़ों लोगों को आज ये विश्वास ही नहीं हो रहा कि वो अपने जीते-जी इस पावन दिन को देख पा रहे हैं।’

मोदी ने कहा, ‘बरसों से टाट और टेंट के नीचे रह रहे हमारे रामलला के लिए अब एक भव्य मंदिर का निर्माण होगा। टूटना और फिर उठ खड़ा होना, सदियों से चल रहे इस व्यतिक्रम से रामजन्मभूमि आज मुक्त हो गई है। हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई-कई पीढ़ियों ने अपना सब कुछ समर्पित कर दिया था। गुलामी के कालखंड में कोई ऐसा समय नहीं था जब आजादी के लिए आंदोलन न चला हो, देश का कोई भूभाग ऐसा नहीं था जहां आजादी के लिए बलिदान न दिया गया हो। 15 अगस्त का दिन उस अथाह तप का, लाखों बलिदानों का प्रतीक है, स्वतंत्रता की उस उत्कंठ इच्छा, उस भावना का प्रतीक है। ठीक उसी तरह, राम मंदिर के लिए कई-कई सदियों तक, कई-कई पीढ़ियों ने अखंड अविरत एकनिष्ठ प्रयास किया है। ये दिन उसी तप, त्याग और संकल्प का प्रतीक है।’

मोदी का भाषण न केवल स्पष्ट और जानकारी से भरा था, बल्कि इसमें कहीं किसी किस्म की कड़वाहट लेशमात्र नहीं थी। पूरे भाषण के दौरान कहीं भी इस बात की आलोचना नहीं की गई कि बीते दिनों में अयोध्या विवाद को कैसे हैंडल किया गया, राम भक्तों पर पुलिस ने कैसे गोलियां बरसाईं और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद सरकारों को कैसे बर्खास्त किया गया।

मोदी ने कहा – ‘इस मंदिर के साथ सिर्फ नया इतिहास ही नहीं रचा जा रहा, बल्कि इतिहास खुद को दोहरा भी रहा है। जिस तरह गिलहरी से लेकर वानर और केवट से लेकर वनवासी बंधुओं को भगवान राम की विजय का माध्यम बनने का सौभाग्य मिला, जिस तरह छोटे-छोटे ग्वालों ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने में बड़ी भूमिका निभाई, जिस तरह मावले, छत्रपति वीर शिवाजी की स्वराज स्थापना के निमित्त बने, जिस तरह गरीब-पिछड़े, विदेशी आक्रांताओं के साथ लड़ाई में महाराजा सुहेलदेव के संबल बने, जिस तरह दलितों-पिछ़ड़ों-आदिवासियों, समाज के हर वर्ग ने आजादी की लड़ाई में गांधी जी को सहयोग दिया, उसी तरह आज देश भर के लोगों के सहयोग से राम मंदिर निर्माण का ये पुण्य-कार्य प्रारंभ हुआ है।’

यह कहकर  मोदी ने प्रकारान्तर में कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा गढ़े गए उन सिद्धांतो को साफ तौर पर खारिज कर दिया जिनमें ये कहा गया था कि  भगवान राम केवल ब्राह्मणों और अन्य उच्च जातियों के लिए एक प्रतीक थे।

करोड़ों भारतीयों ने मोदी को रामलला की मूर्ति के सामने साष्टांग दंडवत करते देखा। मोदी रामलला के मंदिर जाने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री हैं। भूमि पूजन समाप्त होने के बाद मोदी ने गर्भगृह से एक चुटकी मिट्टी ली और अपने माथे पर उसका तिलक लगाया। प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन से पहले और बाद में जो कुछ किया, उसमें कई भावनाएं अन्तर्निहित थीं। एक मजबूत नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके मोदी एक साधारण भक्त के रूप में भगवान राम के सामने आए थे।

लोगों को यह समझना चाहिए कि मोदी ने दूसरों के प्रति भाईचारे, एकता और द्वेष न रखने के बारे में क्यों कहा। मैं बताता हूं। कुछ ही लोग जानते हैं कि मोदी निजी जीवन में मन और कर्म दोनों से एक धार्मिक व्यक्ति हैं। जब वह एक किशोर थे तो गुजरात में अपना घर छोड़कर 'मोक्ष' की तलाश में हिमालय के लिए निकल पड़े, बेलूर मठ में साधुओं के साथ रहे, वह न तो सांसारिक जीवन से भागे और न ही रोजमर्रा के जीवन में आने वाली समस्याओं से मुंह मोड़ा। वह साधुओं की संगत में जरूर रहे, लेकिन समाज में रहकर समाज की बुराइयों को दूर करने का सबक सीखा। वह राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े, लेकिन बिना किसी शोर-शराबे के। उन्होंने पृष्ठभूमि में ही रहना पसंद किया। एक न एक दिन राम मंदिर बनाने की कसम खाते हुए वह अपने संकल्प को मजबूत करते रहे।

पांच अगस्त को वह दिन आ गया। मोदी की इस दृढ़ इच्छाशक्ति ने जनता के मन में उनके प्रति यह विश्वास जगाया कि मोदी जो कहते हैं, उसे करके भी दिखाते हैं। मोदी जीत के मौके पर भी संतुलन रखना जानते हैं। उन्होंने इस जीत को दूसरों की हार के रूप में पेश करने से परहेज किया, और 'सबका साथ, सबका विकास' के तहत सबको गले लगाने की बात कही। इसीलिए मोदी ने बुधवार को भगवान राम के गुणों का वर्णन करने के लिए समय लिया। उन्होंने भगवान राम द्वारा एक शासक के कर्तव्यों के बारे में, लोगों से अपेक्षित अनुशासन के बारे में कही गई बातों के महत्व को रेखांकित किया।

इन सभी चीजों का हवाला देकर मोदी ने यह संदेश देने की कोशिश की कि राम मंदिर के निर्माण को हिंदुओं की जीत और मुसलमानों की हार के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। यही कारण है कि उन्होंने भगवान राम को भारतीय सभ्यता और संस्कृति के एक प्रतीक, एक आइकन के रूप में पेश किया। भगवान राम राष्ट्र की एकता, राष्ट्र की शक्ति और राष्ट्र की समृद्धि के प्रतीक हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 5 अगस्त, 2020 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement