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Rajat Sharma’s Blog: पीएम मोदी ने क्यों कहा, वंशवाद की राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरा

संविधान की गरिमा की रक्षा की जितनी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की है उतनी ही राहुल गांधी, शरद पवार, ममता बनर्जी और अन्य नेताओं की है। 

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: November 27, 2021 17:13 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

पार्लियामेंट के सेंट्रल हॉल में शुक्रवार को संविधान दिवस मानने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया। उन्होंने इस कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को आमंत्रित किया था। ओम बिरला ने सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को निमंत्रण भेजा था लेकिन कांग्रेस के कहने पर तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, डीएमके, वामदल, राष्ट्रीय लोक दल और आम आदमी पार्टी सहित 14 विपक्षी दलों ने इस समारोह का बहिष्कार किया। 

 
हालांकि इन पार्टियों ने कहा कि वे संविधान का सम्मान करते हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार से नाराज हैं और अपना विरोध दर्ज कराते हुए समारोह में नहीं गए। इन पार्टियों ने आरोप लगाया कि मौजूदा सरकार हर संस्थान को खत्म कर संविधान को कमजोर कर रही है। उन्होंने कहा कि संविधान पर लगातार हमले हो रहे हैं। 
 
इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पीढ़ियों से एक ही परिवार द्वारा नियंत्रित राजनीतिक दलों ने भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा किया है। उन्होंने कहा- 'भारत एक ऐसे संकट की ओर बढ़ रहा है जो संविधान को समर्पित लोगों के लिए चिंता का विषय और वो है पारिवारिक पार्टियां। ये लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।' 
 
पीएम मोदी ने इसका मतलब भी समझाया। उन्होंने कहा कि अगर एक ही परिवार के कई लोग राजनीति में आते हैं और वे चुनाव जीतकर विधानसभा और संसद में पहुंचते हैं, सरकार में मंत्री बनते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन अगर राजनीतिक दलों में वंशवाद है और पार्टी पर एक ही परिवार का कब्जा है, पार्टियों में आंतरिक लोकतन्त्र खत्म हो रहा है तो ये देश के लोकतन्त्र के लिए खतरा है। पीएम मोदी ने कहा, 'कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक ज्यादातर राज्यों में वंशवाद की राजनीति हावी है। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।'
 
मोदी की बात सही है। अगर आप वामपंथी दलों को छोड़ दें तो मुख्यधारा की जितनी पार्टियां हैं उन सबका यही हाल है। अधिकांश राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों पर पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार का कब्जा है। कांग्रेस में परिवारवाद के बारे में तो सब जानते हैं लेकिन कोई कांग्रेसी नेता यह मानने को तैयार नहीं होता कि कांग्रेस में परिवारवाद है। आज कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं ने इस मुद्दे को अनदेखा किया। लेकिन इसका जवाब सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिया जो राज्यसभा में कांग्रेस के नेता हैं। उन्होंने कहा- मोदी शायद गांधी परिवार की तरफ इशारा कर रहे थे। उस परिवार ने देश के लिए बलिदान दिए हैं और 1989 के बाद तो गांधी-नेहरू परिवार से कोई प्रधानमंत्री नहीं बना इसलिए मोदी कांग्रेस को उपदेश न दें, अपनी पार्टी को देखें।
 
खड़गे ने सही कहा कि 1989 के बाद गांधी-नेहरू परिवार से कोई प्रधानमंत्री नहीं बना लेकिन जो मुद्दा मोदी ने उठाया वह पीएम के बारे में नहीं था, बल्कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का मुद्दा था। 1998 में सीताराम केसरी को पार्टी अध्यक्ष के दफ्तर से जबरन निकालने के बाद आज तक वहां दस जनपथ का ही कब्जा है। सोनिया गांधी अध्यक्ष बनीं फिर 2017 में उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी को अध्यक्ष बनाया। राहुल गांधी इस पद पर दो साल तक रहे लेकिन चुनावी हार के बाद पार्टी में मतभेद सामने आए तो राहुल ने पद छोड़ दिया और सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष हैं। अब फिर राहुल गांधी को पार्टी की कमान सौंपने की तैयारी है।
 
मोदी सही कहते हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक अधिकांश क्षेत्रीय पार्टियों पर एक ही परिवार का नियंत्रण है। कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस पर दिवंगत अब्दुल्ला परिवार का नियंत्रण है। पीडीपी पर मुफ्ती परिवार का कब्जा है। पंजाब में अकाली दल मतलब बादल परिवार, यूपी में समाजवादी पार्टी का मतलब मुलायम सिंह यादव फैमिली, बिहार में आरजेडी का मतलब लालू यादव का परिवार, महाराष्ट्र में शिवसेना मतलब ठाकरे परिवार और एनसीपी का मतलब शरद यादव परिवार। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी और उनके भतीजे द्वारा नियंत्रित है। तमिलनाडु में डीएमके मतलब करुणानिधि का परिवार और झारखंड में जेएमएम का मतलब शिबू सोरेन का परिवार। कहने का अर्थ यह है कि देश में ऐसी पार्टी खोजना मुश्किल है जिसमें वंशवाद न हो, परिवारवाद की छाया न हो। लेकिन जब यही बात याद दिलाई जाती है तो नेता बुरा मान जाते हैं। जब आईना दिखाया जाता है तो आईने को तोड़ने की कोशिश करते हैं।
 
अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल ने इस मामले पर कहा-बीजेपी को दूसरों को ज्ञान देने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। मैं आपको ऐसे सौ उदाहरण दे सकता हूं जहां बीजेपी नेताओं के बेटे प्रभावशाली पदों पर हैं। सबसे दिलचस्प रिएक्शन महाराष्ट्र एनसीपी प्रमुख जयंत पाटिल का आया। दरअसल एनसीपी में शरद पवार सुप्रीमो हैं, फिर नंबर आता है उनकी सांसद बेटी सुप्रिया सुले का और तीसरे नंबर पर हैं शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के डिप्टी चीफ मिनिस्टर अजीत पवार।  चौथे नंबर पर अजित पवार के बेटे पार्थ पवार हैं। इसलिए एनसीपी नेता जयंत पाटिल यह तो नहीं कह  सकते कि कहां हैं वंशवाद? लेकिन इतना जरूर कहा-'अगर पार्टी और पार्टी के कार्यकर्ताओं को दिक्कत नहीं है तो फिर किसी और को बोलने की क्या जरूरत है? अगर किसी परिवार के कई लोगों को जनता चुनती है, तो उसमें गलत क्या है ?'
 
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मोदी की बात का समर्थन करते हुए कहा-'वंशवाद की राजनीति थोड़े वक्त के लिए भले ही चल जाए,लेकिन कुछ समय के बाद जनता इसे रिजेक्ट कर देती है।'
 
नरेन्द्र मोदी ने देश में ऐसा वातावरण बना दिया है कि कम से कम बीजेपी में तो कोई वंशवाद की बात नहीं करता। बीजेपी के नेता पार्टी में पद की बात तो छोड़िए अपने बेटे के लिए टिकट मांगने से पहले भी सौ बार सोचते हैं। नरेन्द्र मोदी के रहते बीजेपी में कोई सिर्फ इसलिए नेता नहीं बन सकता कि उसके पिता बड़े नेता हैं या उसकी मां मंत्री हैं। 
 
इसी तरह नीतीश कुमार ने भी अपने परिवार को सक्रिय राजनीति से दूर रखा है लेकिन बाकी ज्यादातर दूसरी पार्टियों में एक ही परिवार का कब्जा है। जैसे राजा का बेटा राजा बनता था उसी तरह इन पार्टियों में अध्यक्ष पद एक ही परिवार के पास रहता है। 
 
लालू यादव तो इसका क्लासिक उदारहण हैं। पहले खुद पार्टी के अध्यक्ष थे और बिहार के मुख्यमंत्री भी थे। जेल गए तो पार्टी के अध्यक्ष बने रहे लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर राबड़ी देवी को बैठा दिया और जब चारा घोटाले में सजा हो गई और चुनाव लड़ने पर रोक लग गई तब भी पार्टी के अध्यक्ष बने रहे। लालू ने दोनों बेटों को विधानसभा चुनाव लड़वाया और दोनों को मंत्री बनवाया। लोकतन्त्र के लिए इससे ज्यादा शर्म की क्या बात हो सकती है? 
 
नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में लोकतन्त्र की जिस दूसरी बीमारी का जिक्र किया उसे भी लालू यादव से जोड़कर देखा गया। मोदी ने कहा 'वंशवादी राजनीति के बाद लोकतंत्र के लिए भ्रष्टाचार दूसरी सबसे बड़ी बुराई है। जब देश का युवा यह देखेगा कि भ्रष्टाचार के दोषी नेता को फिर पहले की तरह मान-सम्मान मिल रहा है। वह नेता पहले की तरह राजनीति में एक्टिव हो रहा है तो फिर लोग यही सोचेंगे कि भ्रष्टाचार करना गलत नहीं है। इससे देश में बहुत खराब संदेश जाएगा।' 
 
हालांकि पीएम मोदी ने अपने बयान में किसी का नाम नहीं लिया लेकिन माना जा रहा है कि उनका इशारा लालू प्रसाद यादव की तरफ था। चारा घोटाले में लालू यादव दोषी साबित हो चुके हैं। आजकल वो ज़मानत पर हैं और एक बार फिर से सियासत में एक्टिव हो रहे हैं। बिहार विधानसभा उपचुनाव में उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से उनकी बात होती है, शरद पवार उनसे मिलने जाते हैं, विपक्षी दलों की मीटिंग में लालू शामिल होते हैं। यानी चुनाव लड़ने के अलावा लालू यादव हर वो काम कर रहे हैं जो एक एक्टिव लीडर करता है। एक तरह से कहा जाए तो पॉलिटिक्स में लालू यादव का पुनर्वास हो चुका है।
 
मोदी का संदेश निश्चित रूप से उन नेताओं  तक गया होगा जिन्होंने शुक्रवार के कार्यक्रम का बहिष्कार किया था। उनका एकमात्र उद्देश्य नरेन्द्र मोदी को नीचा दिखाने का था। वरना इस समारोह को नरेन्द्र मोदी ने तो आयोजित नहीं किया था। इसे लोकसभा अध्यक्ष ने आयोजित किया था। दो दिन पहले सभी पार्टियों को कार्ड भेजे गए थे। जहां तक कांग्रेस का यह इल्जाम है कि विपक्ष को सिर्फ मोदी का भाषण सुनने के लिए बुलाया गया था, विपक्ष को सम्मान नहीं दिया गया। जबकि हकीकत यह है कि इस समारोह में मंच पर विपक्ष के नेता के तौर पर अधीर रंजन चौधरी और मल्लिकार्जुन खड़गे दोनों के बैठने की व्यवस्था की गई थी और आखिरी वक्त पर मंच से कुर्सियां हटानी पड़ी। इसलिए विरोधी दल कोई भी तर्क दें लेकिन  विपक्ष के इस रवैए का समर्थन नहीं किया जा सकता। विपक्ष को समझना चाहिए कि संविधान किसी एक पार्टी या किसी एक सरकार का नहीं बल्कि देश का है।
 
संविधान की गरिमा की रक्षा की जितनी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की है उतनी ही राहुल गांधी, शरद पवार, ममता बनर्जी और अन्य नेताओं की है। संविधान की रक्षा की उतनी ही जिम्मेदारी मेरी भी है और आपकी भी है। इसलिए संविधान दिवस समारोह का बहिष्कार करने का विपक्ष का फैसला ठीक नहीं था। 
 
संविधान सबको अभिव्यक्ति की आजादी देता है, हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है और सबको न्याय मिले इसका वादा करता है। आज सबसे ज्यादा जरूरी है कि सरकार, संसद और न्यायपालिका मिलकर यह सुनिश्चित करें कि सरकार की योजनाओं का लाभ सबको मिले। न्याय की प्रक्रिया इतनी जटिल न हो कि गरीब इससे वंचित रह जाए और संसद के समय का इस्तेमाल लड़ाई-झगड़े में न हो बल्कि कानून बनाने के लिए किया जाए। कुल मिलाकर संविधान दिवस का असली संदेश तो यही है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 26 नवंबर, 2021 का पूरा एपिसोड

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