उत्तर प्रदेश के मैनपुरी शहर में शुक्रवार को एकबार फिर से इतिहास लिखा गया जब बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती, समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह के साथ एक मंच पर दिखाई दीं और उन्होंने मतदाताओं से अपील की कि वे मुलायम सिंह यादव को चुनाव में विजयी बनाकर संसद भेजें। मुलायम सिंह और मायावती एक समय एक-दूसरे के कट्टर शत्रु थे।
अपने भाषण में मायावती ने 1995 के उस चर्चित लखनऊ गेस्ट हाउस कांड का जिक्र किया जब मुलायम सिंह के समर्थकों ने उन्हें घेर लिया था और अपनी रक्षा के लिए उन्हें खुद को एक कमरे में बंद करना पड़ा था।
इस घटना ने कटुता से भरे एक ऐसे झगड़े को जन्म दिया जिसका अंत 24 साल के बाद हुआ। मुलायम और मायावती उत्तर प्रदेश की राजनीति में दो ध्रुव माने जाते थे।
शुक्रवार को मायावती ने मुलायम सिंह और उनके बेटे अखिलेश की मौजूदगी में कहा, 'मुझे पता है कि लोग सोच रहे होंगे कि मैं स्टेट गेस्ट हाउस कांड की घटना के बावजूद यहां क्यों आई हूं... कभी-कभी जनहित में और अपनी पार्टी के आंदोलन के लिए कठिन फैसले लेने फैसले लेने पड़ते हैं।'
मेरा मानना है कि 'नामुमकिन' इसलिए 'मुमकिन' हो पाया कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों के उद्देश्य और दोनों की इच्छा समान है, और वो है नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करना। अखिलेश यादव ने एसपी-बीएसपी गठबंधन के लिए उत्प्रेरक का काम किया और शुक्रवार को भी उन्होंने इस समारोह के संचालन में अहम भूमिका निभाई और भीड़ को बड़ी चतुराई से संभाला।
ये बात सही है कि अगर बीएसपी और एसपी के बीच गठबंधन हुआ तो इसके लिए सबसे ज्यादा कोशिश अखिलेश यादव ने की। शुक्रवार की जनसभा में बार-बार उन्होंने लोगों से कहा कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती को पूरा सम्मान दें। उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह से यही बात कहलवाई। यह बड़ी बात है। लेकिन इस गठबंधन की पूरी राजनीति सिर्फ मुसलमान, दलित और ओबीसी के वोट पर टिकी है।
अखिलेश यादव नया प्रधानमंत्री बनाने की बात तो कह रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में सिर्फ 37 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। मायावती और अखिलेश के भाषणों में न कोई कॉमन एजेंडा नजर आ रहा है, न कोई कॉमन प्रोग्राम। उनकी एकता सिर्फ मोदी को हटाने के लिए हुई है, और यही उनका नारा भी बन गया है।
अब सवाल है कि अखिलेश ने सिर्फ मोदी को हटाने के लिए मायावती से समझौता क्यों किया?मायावती ने दिल पर पत्थर रख शर्मनाक गेस्ट हाउस कांड को भूलकर मुलायम सिंह के लिए वोट क्यों मांगे?
इसका उत्तर साफ है, मायावती के सामने मौजूदा दौर में बहुजन समाज पार्टी के अस्तित्व को बचाने का सवाल है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी का खाता तक नहीं खुल पाया। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों में से एक सीट भी बसपा के खाते में नहीं आई। मायावती जानती हैं कि अगर वही रिजल्ट इस बार भी आया तो उनकी पार्टी खत्म हो सकती है। अखिलेश और मायावती दोनों ने इसलिए हाथ मिलाया है क्योंकि उन्हें डर है कि प्रधानमंत्री मोदी इस बार फिर से सत्ता में बने रह सकते हैं। (रजत शर्मा)
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