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Rajat Sharma’s Blog: दिल्ली में यमुना नदी में कहां से आया जहरीला झाग?

यमुना नदी में झाग के सवाल पर राघव चड्ढा ने कहा कि बड़ी मात्रा में सर्फेक्टेंट से भरा पानी ऊंचाई से कालिंदी कुंज में गिरता है, जिसके चलते झाग बनता है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated : November 09, 2021 16:29 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

दिल्ली में दिवाली के बाद से ही वायु प्रदूषण के कारण सुबह के समय स्मॉग (धुंध) देखने को मिल रहा है। दुनिया भर के लोगों ने सोमवार को वे तस्वीरें देखीं जिनमें यमुना नदी झाग से भरी नजर आ रही है। इसी नदी में कमर तक गहरे पानी में खड़े होकर छठ पूजा कर रहे श्रद्धालु भी नजर आए। पिछले कुछ सालों में यमुना नदी की सफाई पर दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने लगभग 5,000 करोड़ रुपये की भारी रकम खर्च की है, लेकिन नतीजे निराशाजनक रहे हैं। दिल्ली में यमुना का पानी काला पड़ चुका है और यह नहाने या हाथ धोने के लायक भी नहीं है, पीना तो बहुत दूर की बात है। इस तरह देखा जाए तो दिल्ली वायु और जल प्रदूषण, दोनों ही तरह के खतरों का सामना कर रही है।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि झाग से भरी नदी में नहाने से चर्म रोग हो सकते हैं। 4 दिनों तक चलने वाले छठ पूजा के पर्व की सोमवार को शुरुआत हो गई। इसके साथ ही श्रद्धालुओं के यमुना में स्नान को लेकर सियासत भी शुरू हो गई। जहां दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने यमुना तट पर पूजा-अर्चना पर रोक लगाई थी, वहीं स्थानीय नेताओं के नेतृत्व में बीजेपी के कार्यकर्ता सोमवार सुबह पूर्वांचल के श्रद्धालुओं के साथ अनुष्ठान के लिए नदी किनारे पहुंच गए। छठ के पर्व की शुरुआत नदी में नहाने से होती है। नदी के पानी से ही प्रसाद बनाया जाता है, खाना बनाया जाता है और घरों में छिड़काव होता है। झाग और इसके नीचे यमुना के प्रदूषित पानी को देखकर यह सोचना मुश्किल है कि भक्त किस स्थिति में अनुष्ठानों को संपन्न कर रहे होंगे।

दिल्ली के कालिंदी कुंज के पास झाग से भरी यमुना को देखकर किसी को भी हैरानी हो सकती है कि क्या ये अलास्का की ठंड के चलते जम चुकी नदी है या अंटार्कटिका के पिघलते हुए ग्लेशियर हैं। यमुना दिल्ली की लाइफलाइन है। वजीराबाद और सोनिया विहार के पास यमुना के पानी का इस्तेमाल पीने के लिए होता है, जबकि आगे चलकर इसी नदी में उद्योगों और घरों से छोड़ा गया कचरा नजर आता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यमुना नदी में जैव रासायनिक ऑक्सीजन और डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन का लेवल बेहद खराब क्वॉलिटी का है और यह पानी नहाने लायक भी नहीं है।

सवाल यह है कि यमुना ऐक्शन प्लान और अन्य सभी प्रॉजेक्ट्स का क्या हुआ जिनके लिए फंड जारी किया गया था, लेकिन सारी कोशिशें बेकार गईं?

मैं आपके सामने कुछ तथ्य रखता है। दिल्ली सरकार अब तक यमुना की सफाई पर 2387 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। पड़ोसी राज्यों, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को भी इस नदी की सफाई पर पैसे खर्च करने थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने यमुना की सफाई पर 2052 करोड़ रुपये खर्च किए, जबकि हरियाणा सरकार अब तक 549 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। तीनों राज्यों का खर्च मिला दें तो अब तक सरकारें 4988 करोड़ रुपये यमुना की सफाई में बहा चुकी हैं, लेकिन इसका पानी साफ होने के बजाय गंदा ही होता गया।

आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली सरकार यमुना ऐक्शन प्लान 1 और 2 के तहत 1514 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी हैं। ‘नमामि गंगे’ प्रॉजेक्ट के तहत यमुना नदी की सफाई के लिए 17 परियोजनाओं को मंजूरी मिली थी जिनकी लागत 3941 करोड़ रुपये हैं। इसके अलावा यमुना ऐक्शन प्लान तो 1993 से चल रहा है। तबसे लेकर आज तक 28 साल का वक्त बीत गया, लेकिन यमुना साफ नहीं हो पाई।

यमुना के पानी में गंदगी को लेकर सोमवार को बीजेपी और AAP नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी रहा। बीजेपी नेता मनोज तिवारी ने लोगों को याद दिलाया कि कैसे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यमुना को लंदन की टेम्स नदी की तरह स्वच्छ बनाने का वादा किया था। तिवारी ने मांग की कि सुप्रीम कोर्ट को इस तथ्य का स्वत: संज्ञान लेते हुए दिल्ली सरकार से जवाबदेही की मांग करनी चाहिए। जवाब में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर आरोप लगाया कि ये दोनों पड़ोसी राज्य यमुना में कुल मिलाकर 15 करोड़ गैलन गंदा पानी रोजाना छोड़ते हैं।

कालिंदी कुंज में यमुना नदी में झाग के सवाल पर राघव चड्ढा ने कहा कि बड़ी मात्रा में सर्फेक्टेंट से भरा पानी ऊंचाई से कालिंदी कुंज में गिरता है, जिसके चलते झाग बनता है। उन्होंने यमुना नदी में बढ़ते जहरीलेपन के लिए हरियाणा सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

सियासत को छोड़ दिया जाए तो सच्चाई यही है कि दिल्ली में पिछले तीन दशकों में बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की सरकारें रही हैं। 1,400 किलोमीटर लंबी यमुना दिल्ली में सिर्फ 22 किलोमीटर बहती है और नदी को साफ रखने की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की है। चड्ढा ने उत्तर प्रदेश सरकार पर भी आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, कालिंदी कुंज के पास ओखला बैराज की जिम्मेदारी यूपी सरकार की है, लेकिन यूपी के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि राज्य सरकार केवल ओखला बैराज में पानी के प्रवाह के लिए जिम्मेदार है न कि उसके ट्रीटमेंट के लिए। उन्होंने दिल्ली सरकार को और अधिक STP (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) स्थापित करने की सलाह दी ताकि यमुना स्वच्छ रह सके।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि दिल्ली में डिटर्जेंट बनाने वाली फैक्ट्रियां फॉस्फेटिक केमिकल्स से भरा कचरा छोड़ती हैं जो अम्लीय पानी के साथ प्रतिक्रिया करके झाग की शक्ल अख्तियार कर लेता है। उन्होंने कहा कि इसे राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के दिशानिर्देशों को सख्ती से लागू करके रोका जा सकता है।

यमुना पुनरुद्धार योजना (Yamuna Revitalization Plan) के तहत यमुना में छोड़े जा रहे कचरे में प्रदूषकों की केवल परमिसेबल लिमिट सुनिश्चित करने का प्रस्ताव था, लेकिन पिछले 2 सालों में कुछ खास नहीं हुआ है। इसके बाद NGT ने 2018 में मॉनिटरिंग कमेटी बनाई ताकि ट्रिब्यूनल के के फैसले को लागू किया जाए, लेकिन जनवरी 2021 में इसे भंग कर दिया गया। यमुना में प्रदूषण के प्रमुख कारणों में जल स्तर का कम होना और 18 नालों (मुख्य रूप से नजफगढ़ और बारापुला) द्वारा नदी में इंडस्ट्रियल वेस्ट छोड़ना शामिल हैं। नजफगढ़ नाले में गुरुग्राम और मानेसर के कारखानों द्वारा छोड़ा गया कचरा भी आता है। वजीराबाद के बाद सबसे पहले नजफगढ़ नाला ही यमुना में आकर मिलता है जिससे पानी इतना प्रदूषित हो जाता है कि इसमें ऑक्सीजन की मात्रा काफी कम हो जाती है।

अब सवाल ये उठता है कि दिल्ली सरकार क्या कर रही है? एक महीने पहले दिल्ली पॉल्युशन कंट्रोल कमेटी ने एक रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में रोजाना 720 मिलियन गैलन (MGD) का सीवेज, यानी प्रदूषित पानी पैदा होता है। दिल्ली सरकार कहती है कि इसे साफ करने के लिए 20 जगहों पर 34 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) लगे हुए हैं और इन STP की क्षमता रोजाना 577 MGD कचरे को साफ करने की है। लेकिन यही रिपोर्ट कहती है कि ये ट्रीटमेंट प्लांट अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते और 577 में से सिर्फ 514 MGD कचरा ही रोज साफ हो पाता है। यानी 11 प्रतिशत कचरा सीधे यमुना नदी में गिरता है। दूसरे शब्दों में कहें तो 720MGD कचरे में से 206 MGD कचरा सीधे नदी में चला जाता है।

दिल्ली सरकार ने मॉनिटरिंग कमिटी को बताया था कि वह जून 2019 तक STP के जरिए 99 पर्सेंट कचरे को साफ करेगी, लेकिन इस बात को भी 2 साल बीत चुके हैं। इंटरसेप्टर सीवर प्रॉजेक्ट का काम भी सिर्फ कागजों पर ही हुआ है। दिल्ली की 1700 कॉलोनियों में 40 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। इनमें से सिर्फ 561 कॉलोनियों में सीवर लाइन है। बाकी कॉलोनियों से सीवेज नालों के जरिए सीधे यमुना में जाता है। कुछ स्थानों पर ठोस कचरे में पाए जाने वाले प्रदूषक ‘वांछनीय स्तर’ से 760 गुना ज्यादा हैं।

अब सवाल यह उठता है कि इसका समाधान कैसे हो? मोटे तौर पर दो कदम उठाए जाने की जरूरत है।

पहला कदम यह कि यमुना में पानी के प्रवाह का स्तर पूरे साल बढ़ाए रखा जाए। इसका मतलब है कि जब यमुना में कम पानी होता है (लीन सीजन) उस दौरान पड़ोसी राज्यों से नदी में ज्यादा पानी छोड़ा जाए। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (NIH, रूड़की) की एक रिपोर्ट कहती है कि ‘लीन सीजन’ के दौरान यमुना में 23 क्यूसेक पानी की आवश्यकता होती है। चूंकि राज्यों के बीच पहले से ही कई तरह के समझौते हैं, इसलिए इसे लागू करना आसान नहीं है।

दूसरा तरीका है कि पानी में मौजूद कचरे को ज्यादा से ज्यादा साफ किया जाए और इसके लिए ज्यादा STP लगाए जाएं। रिठाला, कोंडली, यमुना विहार और ओखला में STP लगाने का काम पहले से ही चल रहा है। इसके अलावा 595 कॉलोनियों में सीवर पाइप बिछाए जा रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यमुना में जाने से पहले पानी स्वच्छ हो जाए।

 
इस समय एक मजबूत राजनीतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। फिलहाल इसकी कमी नजर आ रही है। नीति तो बनती है लेकिन नीयत साफ नहीं है। चाहे बीजेपी हो, कांग्रेस हो या आम आदमी पार्टी, तीनों ने यमुना को साफ करने का वादा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

13 नवंबर 2015 को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ISBT के यमुना घाट पर यमुना आरती करने गए थे। तब उन्होंने वादा किया था कि वह अगले 5 सालों में यमुना का पुनरोद्धार कर देंगे, लेकिन सोमवार को पूरी दुनिया ने देखा कि उस वादे का क्या हुआ। यमुना को साफ करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने 5000 करोड़ रुपये खर्च कर दिए। जापान से कर्ज लेकर भी यमुना की सफाई की गई। सारा पैसा बर्बाद हो गया और यमुना मैली की मैली रह गई। 1993 से लेकर अब तक, यमुना की सफाई के लिए कई बार डेडलाइन बनाई गई और फिर आगे बढ़ाई गई।

अब एक नई डेडलाइन तय की गई है। नेशनल कैपिटल रीजन प्लानिंग बोर्ड ने कहा है कि 2026 तक यमुना पूरी तरह से साफ हो जाएगी। दिल्ली की AAP सरकार ने 2023 तक यमुना को साफ करने का वादा किया है। मुझे लगता है कि जब तक हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सरकारें केंद्र के साथ मिलकर काम नहीं करेंगी, तब तक यमुना का उद्धार होना मुश्किल है। इसके साथ ही लोगों को भी इस मिशन से जुड़ना होगा। उन्हें यमुना में कचरा फेंकना बंद करना होगा। इसके बाद ही हम दिल्ली में स्वच्छ यमुना नदी के सपने को साकार कर सकते हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 08 नवंबर, 2021 का पूरा एपिसोड

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