इंडिया टीवी के पत्रकारों ने शुक्रवार को शाहीन बाग (दिल्ली), नागपाड़ा (मुंबई), घण्टाघर (लखनऊ), भोपाल, नागपुर और कई अन्य शहरों में सीएए विरोधी प्रदर्शनस्थलों का रियलिटी चेक किया। हमारे रिपोर्टर्स ने लगभग सभी प्रदर्शनस्थलों पर यह पाया कि धरने पर बैठी महिला प्रदर्शनकारियों की संख्या तेजी से घट रही है।
शाहीन बाग के प्रदर्शनस्थल पर टेंट उजाड़ दिखाई दिया। वहां केवल 10-12 महिला प्रदर्शनकारी ही मौजूद थीं। इंडिया टीवी के कैमरों को देखकर आयोजकों ने हूटर बजा दिया और जल्द ही धरनास्थल पर महिलाओं की तादाद बढ़ने लगी। प्रदर्शनकारियों ने हमारी महिला पत्रकारों मीनाक्षी जोशी और दिशा पांडे को वहां के हालात लाइव दिखाने से रोकने की पूरी कोशिश की। वे बेहद आक्रामक अंदाज में हमारे कैमरापर्सन्स को भी रोक रहे थे। शाहीन बाग को ही पूरे भारत में सीएए विरोधी प्रदर्शनों का केंद्र माना जाता है।
हमारे पत्रकारों ने देश में ऐसे ही कई अन्य प्रदर्शनस्थलों का भी रियलिटी चेक किया। भोपाल के इकबाल मैदान में पिछले 66 दिनों से महिला प्रदर्शनकारियों के लिए लगाया गया बड़ा-सा तम्बू लगभग खाली पड़ा था। जैसे ही कैमरा लिए हुए हमारे रिपोर्टर के आने की खबर फैली, लगभग 60 प्रदर्शनकारियों की भीड़, जिसमें ज्यादातर पुरुष थे, इकट्ठी हो गई और इंडिया टीवी के खिलाफ नारेबाजी करने लगी। उन्होंने हमारे रिपोर्टर अनुराग अमिताभ को धरनास्थल से भगा दिया और धक्का-मुक्की भी की। धरनास्थल पर उस समय सिर्फ 3 महिलाएं और 8-10 पुरुष ही मौजूद थे, जबकि बाकी भीड़ तंबू के बाहर से इकट्ठा हुई थी।
ऐसा ही नजारा लखनऊ के घंटाघर में भी देखने को मिला। यहां प्रदर्शनकारियों के लिए 48 दिन पहले तंबू लगाया गया था। तंबू में कुछ मुट्ठीभर महिला प्रदर्शनकारी ही मौजूद थीं और उन्होंने घटती संख्या के लिए कई बहाने बनाए। मुंबई के नागपाड़ा में विरोध का 41वां दिन था और वहां भी प्रदर्शनकारियों की संख्या घट गई है। प्रदर्शनकारियों में से कुछ ने कहा कि धूप के चलते लोगों की संख्या में गिरावट आ रही है। जयपुर के कमिश्नरेट ग्राउंड में विरोध प्रदर्शन के 40वें दिन केवल 21 महिला प्रदर्शनकारी मौजूद थीं। जगह-जगह गद्दे, कंबल, कुर्सियां और खाने के पैकेट रखे हुए हैं, लेकिन लोग घटते जा रहे हैं। प्रदर्शनकारियों में से एक ने लोगों की घटती संख्या का कारण खराब मौसम को बताया।
पिछले 83 दिनों से पूरे भारत में सीएए का विरोध हो रहा है। लोग अपने भाषणों में संविधान की रक्षा करने की बात कह रहे हैं। जब तक भीड़ मौजूद थी, तब तक इन प्रदर्शनकारियों ने उसे खूब दिखाया, लेकिन अब जब उनकी संख्या कम हो गई है तो वे मीडिया को हकीकत जानने से रोक रहे हैं। सवाल यह है कि शहरों के प्रमुख रास्तों को बंद करके दूसरों को परेशानी में डालने का हक प्रदर्शनकारियों को किसने दिया है? और वे इसके लिए कैसे-कैसे बहाने बना रहे हैं? कुछ महिलाओं ने कहा कि उन्हें नमाज पढ़ने के लिए घर जाना पड़ा, कुछ ने कहा कि वे अपने बच्चों के एग्जाम के चलते व्यस्त थीं और कुछ ने तो कोरोनोवायरस को भी इसका कारण बता दिया।
दो महीने पहले यही प्रदर्शनकारी जोर देकर कहते थे कि वे पत्रकारों को प्रदर्शनस्थलों पर आने की इजाजत तभी देंगे जब लाइव टेलिकास्ट किया जाएगा। शुक्रवार को मामला इससे जुदा था। वही प्रदर्शनकारी इस बात पर भड़क रहे थे कि धरनास्थल के दृश्यों को लाइव क्यों दिखाया जा रहा है। जो लोग आरोप लगा रहे थे कि मीडिया उनके विरोध की सच्चाई नहीं दिखा रहा, वे अब उस सच पर गुस्सा हो रहे थे जिसे लाइव दिखाया जा रहा था। सत्य और अहिंसा के अनुयायी होने का दावा करने वाले शुक्रवार को हिंसा पर उतारू हो गए और सच्चाई को छिपाने की कोशिश करते दिखे। जिन लोगों ने तिरंगे को पकड़कर और महात्मा गांधी की तस्वीरें लगाकर संविधान की रक्षा करने की कसम खाई थी, वे खुद सच्चाई को छिपाने की कोशिश कर रहे थे। जो लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में बोल रहे थे, वही आज मीडिया का मुंह बंद करने की कोशिश कर रहे थे। (रजत शर्मा)
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