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Rajat Sharma’s Blog: भारत को अपनी खस्ताहाल स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार करने की जरूरत क्यों है

मंगलवार की रात हमने 'आज की बात' में दिखाया था कि कैसे मधुबनी जिले में एक ब्लॉक स्तरीय अस्पताल खंडहर में बदल चुका है, लेकिन वहां 'पदस्थ' डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी अपनी तनख्वाह ले रहे हैं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated : May 26, 2021 16:53 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

भारत में कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर में उल्लेखनीय गिरावट देखने को मिली है। मंगलवार को देश में कोरोना वायरस संक्रमण के नए मामलों की संख्या गिरकर 2,08,921 पर पहुंच गई, जबकि 4,157 मरीजों की मौत हुई। कोविड के सक्रिय मामलों की संख्या अब 24,95,591 रह गई है जबकि देश में कुल टीकाकरण की संख्या 20 करोड़ के आंकड़े को पार कर 20,06,62,456 तक पहुंच गई है।

रिकवरी रेट में भी इजाफा देखने को मिला है और अब यह 89.66 फीसदी पर पहुंच गया है। देश में मंगलवार को अब तक के सबसे ज्यादा 22.17 लाख कोरोना टेस्ट किए गए। कुल मिलाकर साफ नजर आ रहा है कि कोरोना की दूसरी लहर अब ढलान पर है, हालांकि पूर्व और उत्तर पूर्व के कई राज्यों में नए मामलों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।

एक ध्यान देने वाली बात यह है कि इस बार कोरोना वायरस से संक्रमण के गंभीर मामले ज्यादा हैं और महामारी की पहली लहर की तुलना में इस बार काफी ज्यादा मरीजों की मौत हुई है। ज्यादातर राज्यों से जो डेटा आया है, उससे पता चलता है कि कोरोना के पॉजिटिव केस तो कम हुए हैं, लेकिन ICU बेड्स पर जो मरीज हैं उनकी संख्या में ज्यादा गिरावट नहीं आई है। ऐसे मरीज जो ICU में भर्ती नहीं हैं वे तो बड़ी संख्या में ठीक होकर घर जा रहे हैं, लेकिन जो मरीज ICU में हैं, ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं, उन्हें ठीक होने में लंबा वक्त लग रहा है। केंद्र और राज्य, दोनों सरकारें यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश कर रही हैं कि कोरोना से संक्रमित गंभीर रोगियों को बेहतर देखभाल मिले और वे ठीक हो जाएं, लेकिन सियासत के चक्कर में कुछ राजनेता आम लोगों की संवेदनाओं को चोट पहुंचा रहे हैं।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने सहयोगियों के साथ एक वर्चुअल कैबिनेट मीटिंग के बाद घोषणा की कि उनकी सरकार अब कोरोना से जान गंवाने वालों को मुफ्त में कफन देगी। उन्होंने कहा, ‘झारखंड में किसी को कफन खरीदना नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह हमारे राज्य में सभी को मुफ्त में उपलब्ध कराया जाएगा।’ मुझे लगता है कि सोरेन ने राजनैतिक फायदे के लिए यह घोषणा की, लेकिन उनका दांव उल्टा पड़ गया। बीजेपी नेता निशिकांत दुबे ने कोविड पीड़ितों की मौतों के मुद्दे पर राजनीतिक लाभ लेना की कोशिश करने के लिए उनकी आलोचना की। उन्होंने सीएम से कहा कि वह मुफ्त कफन देने की बजाय कोरोना रोगियों को मुफ्त दवाएं, अस्पताल के बिस्तर और ऑक्सीजन उपलब्ध कराने पर ज्यादा ध्यान दें। मुझे लगता है कि सोरेन आसानी से इस मुद्दे को सियासत से ऊपर रखते हुए कोई घोषणा करने की बजाय चुपचाप कफन दे सकते थे।

मैं एक दूसरे मुद्दे लेकर ज्यादा चिंतित हूं। जहां कोरोना के नए मामलों में तेजी से गिरावट आ रही है, वहीं मौतों के आंकड़ों में उतनी तेजी से कमी देखने को नहीं मिल रही है। और यह खासतौर से 4 राज्यों में हो रहा है जहां हालत काफी खराब है- तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और केरल। सोमवार को हुई 3,511 मौतों में से 1,814 मौतें इन 4 राज्यों में हुई हैं। कोरोना के चलते जब किसी मरीज की मौत होती है, तो सिर्फ किसी अपने के बिछड़ने का गम नहीं होता, बल्कि मौत के बाद शव को ले जाना, दाह संस्कार करना या दफनाना भी अपने आपमें एक बड़ा चैलेंज हो गया है।

मंगलवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने राजस्थान के दो दिल दहला देने वाले मामले दिखाए। पहले मामले में एक पिता को अपनी बेटी की लाश को ड्राइवर के बगल वाली सीट से बांधकर कार चलाते हुए कोटा से 80 किलोमीटर दूर झालावाड़ तक दाह संस्कार के लिए ले जाना पड़ा। 34 साल की सीमा की कोटा के न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोरोना वायरस के संक्रमण से मौत हो गई। शव को मुर्दाघर से एंबुलेंस तक लाने के लिए कोई वार्ड बॉय मौजूद नहीं था। सीमा के परिजन उनके शव को मुर्दाघर से लेकर आए। इसके बाद प्राइवेट एंबुलेंस वालों ने शव को 80 किमी दूर झालावाड़ ले जाने के लिए 20,000 से 35,000 रुपये तक की मांग की। पिता की हैसियत इतने ज्यादा पैसे देने की नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी बेटी की लाश को आगे की सीट से बांधा और खुद कार चलाकर झालावाड़ तक ले गए। यह ऐसा एकलौता मामला नहीं था। एक अन्य मामले में, परिजनों को मरीज के शव को अपनी कार में ले जाना पड़ा क्योंकि प्राइवेट एम्बुलेंस के मालिक काफी ज्यादा पैसे मांग रहे थे।

कोटा की खबर 'आज की बात' पर प्रसारित होने के बाद जिला प्रशासन हरकत में आ गया। कोटा नगर निगम के एक असिस्टैंट इंजीनियर और एक RTO इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया है, जबकि एक कंडक्टर सुपरवाइजर को बर्खास्त कर दिया गया है। इसके साथ ही 2 प्राइवेट एंबुलेंस को जब्द करके उनके मालिकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है। भविष्य में इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए स्थानीय निगम, RTO और पुलिस की एक टीम अस्पताल में तैनात की गई है।

मंगलवार रात 'आज की बात' में झालावाड़ से ही एक और दिल दहला देने वाला वीडियो सामने आया। यहां के सुनेल कस्बे में रहने वालीं एक महिला की कोरोना से मौत हो गई। परिजनों ने महिला के शव को श्मशान घाट तक ले जाने के लिए हेल्थ डिपार्टमेंट से एंबुलेंस मांगी, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट ने हाथ खड़े कर दिए और एंबुलेंस देने से मना कर दिया। स्वास्थ्य विभाग ने महिला के 2 बेटों को PPE किट दे दिया, जिसे पहनकर वे खुद ही शव को ठेले में रखकर श्मशान घाट तक ले गए।

हमने अपने रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य से तफ्तीश करने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि राजस्थान में इस समय डायल 108 इमरजेंसी एंबुलेंस सेवा के तहत कुल 741 एंबुलेंस चलाई जा रही हैं, लेकिन इनमें से आधी से ज्यादा यानी कि 421 एंबुलेंस खस्ता हालत में हैं। इन 421 एंबुलेंस में से ज्यादातर 8 से 10 साल पुरानी हैं। इनमें से ज्यादातर एंबुलेंस तो चलने लायक नहीं हैं, लेकिन इसके बाद भी कागजों पर चल रही हैं। राजस्थान जैसे बड़े राज्य में डायल 108 इमरजेंसी एंबुलेंस सेवा के तहत इस वक्त सिर्फ 320 एंबुलेंस ऐसी हैं जो सही हालत में हैं।

जब मामले के बारे में जिलेवार पड़ताल की गई तो और भी हैरान करने वाली बातें पता चलीं। मनीष ने बताया कि अजमेर में 29 सरकारी एंबुलेंस हैं, लेकिन इनमें 15 एंबुलेंस खराब पड़ी हैं। इसी तरह जोधपुर जिले में 38 में से 14, पाली जिले में 29 में से 16, झुंझनु मे 26 में से 20, सिरोही में 26 में से 20, कोटा जिले में 18 मे से 10, भरतपुर जिले में 32 में से 12, दौसा में 13 में से 9 और सवाई माधोपुर में 16 में से 8 एंबुलेंस खराब हैं। भीलवाड़ा जिले में 25 सरकारी एंबुलेंस हैं, लेकिन इनमें से 10 में ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं हैं। ऐसी हालत में यह उम्मीद करना बेमानी होगी कि कोरोना के सभी मरीजों को हॉस्पिटल ले जाने के लिए एंबुलेंस मिल पाएंगी, श्मशान तक शवों को ले जाने के लिए एंबुलेंस के इंतजाम की तो बात ही छोड़ दीजिए।

चूंकि सरकारी एंबुलेंस खस्ता हालत में हैं, इसलिए प्राइवेट ऑपरेटर हालात का फायदा उठाते हैं। वे कोविड रोगियों के रिश्तेदारों से काफी ज्यादा पैसे वसूल रहे हैं। राजस्थान सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान एंबुलेंस के किराए की दर तय की हुई है। इसके तहत पहले 10 किलोमीटर तक का किराया 500 रुपये होगा और पीपीई किट के लिए 350 रुपये प्रति चक्कर अलग से देने होंगे। अगर कोई 10 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक मरीज को ले जाता है तो 12.50 रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से किराया देना होगा। इस हिसाब से कोटा से झालावाड़ तक जाने के लिए सरकारी रेट के हिसाब से 2,650 रुपये बनते हैं, लेकिन कोटा में प्राइवेट एंबुलेंस वाले मनमानी कीमत वसूल कर रहे हैं और झालावाड़ जाने के लिए 30 से 35 हजार रुपये तक वसूल रहे हैं।

कोटा तो उदाहरण मात्र है। राजस्थान के लगभग सभी जिलों में एंबुलेंस मालिकों द्वारा मरीजों को लूटा जा रहा है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर जगह एंबुलेंस को चलाने वाले लोगों की संवेदनाएं मर गई हैं। कल मुझे मथुरा के एक ऐसे एंबुलेंस ड्राइवर के बारे में पता चला जिसकी मां की मौत हो गई थी, लेकिन वह रात भर अपनी ड्यूटी करता रहा और 15 मरीजों को आसपास के गांवों से लाकर अस्पताल में भर्ती कराया।

बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत दयनीय है। मंगलवार की रात हमने 'आज की बात' में दिखाया था कि कैसे मधुबनी जिले में एक ब्लॉक स्तरीय अस्पताल खंडहर में बदल चुका है, लेकिन वहां 'पदस्थ' डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी अपनी तनख्वाह ले रहे हैं। सकरी प्रखंड में यह 30 बेड का सरकारी अस्पताल खंडहर में बदल चुका है और अब स्थानीय लोग इसे ‘भूत बंगले’ के नाम से जानते हैं। इसे बंद हुए करीब 10 साल हो चुके हैं लेकिन कागजों में यह अभी भी एक सरकारी अस्पताल हैं। कागजों में यहां अभी भी डॉक्टर, नर्स और सफाईकर्मियों की ड्यूटी लगती है। यह अस्पताल नेशनल हाइवे के बिल्कुल नजदीक है लेकिन इसके बावजूद कभी किसी अधिकारी या मंत्री का ध्यान इस पर नहीं गया। अस्पताल के डॉक्टर 15-20 दिन या एक महीने में एक बार आते हैं और 10-15 मिनट बैठकर चले जाते हैं। इस इलाके में और कोई भी सरकारी अस्पताल नहीं है, इसलिए लोगों को मजबूरन प्राइवेट अस्पताल या क्लिनिक में जाना पड़ता है। यदि किसी को सरकारी अस्पताल जाना है तो उसे दरभंगा या मुजफ्फरपुर का रुख करना पड़ता है।

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Image Source : INDIA TV
बिहार के भागलपुर में स्थित एक अस्पताल की सांकेतिक तस्वीर।

इसी तरह मधुबनी जिले के ही सिसवार गांव में भी स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति अच्छी नहीं है। यहां का स्वास्थ्य केंद्र बीते कई सालों से बंद पड़ा है। इस अस्पताल की इमारत अब खंडर में तब्दील हो चुकी है। स्थानीय लोगों ने अब इसे तबेला बना दिया है जहां वे अपनी गाय-भैंस बांध देते है।

आमतौर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ही वह पहली जगह होती है जहां गांववाले बुखार या कोरोना के अन्य लक्षण होने पर जाते हैं। लेकिन चूंकि अधिकांश स्वास्थ्य केंद्र लगभग बंद हो चुके हैं या केवल कागजों पर काम कर रहे हैं, इसलिए यह वास्तव में हैरान करने वाली बात है कि इस बार बिहार में कोरोना के मामले कम हैं। सोमवार को पूरे बिहार से कोरोना वायरस से संक्रमण के सिर्फ 3,306 नए मामले सामने आए। यदि यह आंकड़ा सही है, तो यह निश्चित रूप से राज्य सरकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।

ऐसे समय में जबकि महामारी सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक फैल गई है, अधिकांश राज्य सरकारों को अपने ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे में युद्ध स्तर पर सुधार करने की आवश्यकता है। यदि ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ठीक से काम करें, तो वे भारत के लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपनी चपेट में ले चुके कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में काफी अहम साबित हो सकते हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 25 मई, 2021 का पूरा एपिसोड

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