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Rajat Sharma’s Blog: किसान नेता कोई भी बात सुनने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं?

देश कानून से चलता है, संविधान से चलता है, संसद से चलता है, सुप्रीम कोर्ट से चलता है और अगर कोई इनमें से किसी की भी बात नहीं सुनेगा तो फिर अराजकता पैदा हो जाएगी।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : January 09, 2021 17:30 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

अब यह बिल्कुल साफ हो गया है कि दिल्ली के बॉर्डर पर बीते 45 दिनों से धरना दे रहे किसान यूनियनों के नेता कोई भी बात सुनने के लिए तैयार नहीं हैं और टकराव के रास्ते पर आगे बढ़ते जा रहे हैं। शुक्रवार को केंद्र ने भी अपने रुख को सख्त करते हुए तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की किसी भी संभावना को पूरी तरह खारिज कर दिया। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने किसान नेताओं को साफ-साफ कहा कि कानून निरस्त नहीं होंगे और यदि किसान संगठनों को सरकार की बात पर यकीन नहीं है तो सुप्रीम कोर्ट की बात मानें। कानूनों के बारे में सुप्रीम कोर्ट की राय भी 11 जनवरी यानी कि सोमवार को सामने आ जाएगी।

किसान यूनियनों के नेताओं ने केंद्र की तरफ से रखे गए हर प्रस्ताव को खारिज कर दिया: उन्होंने कृषि कानूनों में संशोधन करने के तोमर के प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब तक ‘कानून वापसी’ नहीं होगी तब तक ‘घर वापसी’ नहीं होगी। उन्होंने केंद्र से कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट भी उनसे धरना खत्म करने के लिए कहता है तो वे ऐसा नहीं करेंगे। उन्होंने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट के द्वारा नियुक्त पैनल के सामने भी अपनी बात रखने से इनकार कर दिया कि इस मसले पर अदालत नहीं बल्कि चुनी हुई सरकार फैसला करेगी। उन्होंने तोमर के बाबा लक्खा सिंह को मध्यस्थता करने देने के तीसरे प्रस्ताव को भी यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह कोई धार्मिक मसला नहीं है।

तोमर ने किसान नेताओं से कहा कि चूंकि सरकार ने उनकी चार मांगों में से दो मांगें पहले ही मान ली हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य को जारी रखने के लिए लिखित गारंटी देने को तैयार है, इसलिए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग ही एकमात्र ऐसा विवादित मुद्दा रह जाता है जिसका समाधान निकलना बाकी है। तोमर ने कहा कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को किसानों द्वारा बनाई गई किसी कमिटी के सामने रखने के लिए भी तैयार है ताकि वह इनमें संशोधन के लिए सुझाव दे सके, लेकिन किसान नेताओं ने इस प्रस्ताव को भी यह कहते हुए खारिज कर दिया कि तीनों कानूनों की वापसी के अलावा उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं है।

बातचीत के दौरान दोनों पक्षों के बीच थोड़ी गरमा-गरमी भी हुई। आखिर में नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों से साफ कह दिया कि नए कृषि कानून पूरे देश के लिए बनाए गए हैं ना कि एक या दो राज्यों के लिए। उन्होंने कहा कि सरकार दूसरे राज्यों के उन तमाम किसानों की भावनाओं की अनदेखी नहीं कर सकती है जो इन नए कानूनों का पूरी तरह समर्थन करते हैं। ढाई घंटे तक चली बताचीत के बाद 15 जनवरी को एक बार फिर से बात करने का फैसला किया गया।

शुक्रवार की बातचीत खत्म होने के बाद ऑल इंडिया किसान सभा के नेता हन्नान मोल्लाह ने कहा कि अब एकमात्र रास्ता यही बता है कि आंदोलन को और तेज किया जाए क्योंकि क्योंकि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने के तैयार नहीं है। एक और किसान नेता, क्रान्तिकारी किसान यूनियन के दर्शन पाल ने कहा कि उन्हें अब केंद्र सरकार पर भरोसा नहीं रह गया है और आंदोलन ही एकमात्र रास्ता है। इस बारे में किसान नेताओं की राय भी अलग-अलग है कि क्या वे 15 जनवरी को होने वाली अगले दौर की बातचीत में शामिल होंगे या नहीं। जहां भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि वह बातचीत में शिरकत करेंगे, वहीं एक अन्य किसान नेता कुलवंत सिंह ने कहा कि इस तरह व्यर्थ की बातों में वक्त बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है।

किसान नेता अब रविवार को तय करेंगे कि 15 जनवरी को बातचीत में शामिल होना है या नहीं। उनमें से एक बड़ा तबका अपने आंदोलन को 26 जनवरी, जब वे एक ‘ट्रैक्टर परेड’ की प्लानिंग कर रहे हैं, तक जारी रखकर सरकार पर दबाव बनाना चाहता है। उन्होंने लोगों से अपील की है कि वे इस परेड के दौरान अपने साथ लाए गए झंडों को दान कर दें।

किसान नेताओं ने कानूनों की वापसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है, और इसलिए वे किसी की भी बात सुनने के लिए तैयार नहीं हैं। वे कानूनों में संशोधन नहीं चाहते, वे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को भी मानने के लिए तैयार नहीं हैं, और न ही वे किसी की मध्यस्थता चाहते मोदी का विरोध करने वाले विपक्षी दल इसका पूरा फायदा उठाने के लिए तैयार हैं। वामपंथी नेता अपने कैडर के साथ पहले से ही पूरी तरह ऐक्टिव हैं और आपने लाल झंडे के साथ किसानों के नाम पर आंदोलन चला रहे हैं।

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने शुक्रवार को अपनी पार्टी के सभी सांसदों से मुलाकात की और उनसे कहा कि पार्टी अब आंदोलन कर रहे किसानों के साथ खुलकर सामने आएगी। यह बैठक राहुल गांधी के आवास पर आयोजित की गई थी। राहुल गांधी इन दिनों इटली में छुट्टियां मना रहे हैं। कांग्रेस और वामपंथी दल अब मिल गए हैं और सरकार को मजबूर करने के लिए किसानों को मोहरा बना रहे हैं। अब किसान नेताओं को यह तय करना होगा कि वे एक चुनी हुई सरकार को, संसद को, सुप्रीम कोर्ट को उचित सम्मान देना चाहते हैं या नहीं।

देश कानून से चलता है, संविधान से चलता है, संसद से चलता है, सुप्रीम कोर्ट से चलता है और अगर कोई इनमें से किसी की भी बात नहीं सुनेगा तो फिर अराजकता पैदा हो जाएगी। लोकतंत्र में बातचीत जरूरी है और यदि दो पक्षों में में बात नहीं बन रही तो अदालत का रास्ता है। यदि एक पक्ष कोर्ट-कचहरी से भी बचना चाहता है तो सामान्य परंपरा पंचायत की है, जिस पर दोनों पक्षों का भरोसा हो। ऐसी पंचायत या मध्यस्थों से फैसला कराया जा सकता है। एक चुनी हुई सरकार को सड़क पर उतरे प्रदर्शनकारियों की धमकी में नहीं आना चाहिए। आज कांग्रेस आंदोलन कर रहे किसानों ने हमदर्दी दिखा रही है, नरेंद्र मोदी को 'क्रूर' और 'निरंकुश' कह रही है, लेकिन उसे याद रखना चाहिए कि कैसे उसने 2011 में रामलीला मैदान में स्वामी रामदेव और उनके समर्थकों द्वारा दिए जा रहे धरने को खत्म करने के लिए आधी रात को पुलिस से लाठियां चलवाई थीं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 08 जनवरी, 2021 का पूरा एपिसोड

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