आज मैं एक बेहद संवेदनशील मुद्दे पर लिखना चाहता हूं। अप्रैल और मई के महीनों में, जब पूरा भारत महामारी की दूसरी लहर की चपेट में था, कई लाख लोगों ने कोरोना की वजह से दम तोड़ दिया था। इनमें से ज्यादातर मरीजों की मौत ऑक्सीजन, अस्पताल में बिस्तरों और ICU वेंटिलेटर की कमी के कारण हुई। केंद्र सरकार ने मंगलवार को एक लिखित जवाब में संसद को बताया कि ‘ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी भी मौत की सूचना राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों ने नहीं भेजी है।’ सरकार के इस जवाब का सोशल मीडिया में मखौल हुआ और राजनीतिक हलकों में कोहराम मच गया। केंद्र सरकार ने ऐसा इसलिए कहा था क्योंकि राज्य सरकारों ने जो जानकारी भेजी, उसमें कहा गया था कि ‘ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई।’
क्या अप्रैल और मई के महीनों में एक-एक सांस के लिए तड़पते लोगों की तस्वीरें झूठी थीं? क्या ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिल कराने के लिए रात-दिन लाइनों में लगे लोगों की तस्वीरें काल्पनिक थीं? क्या एक-एक सिलेंडर के लिए लाखों रुपये लेकर घूमते लोग, हाथ जोड़कर रोते हुए डॉक्टर नाटक कर रहे थे? क्या कार में मां को लिटाकर खाली ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर भागते बेटे का वीडियो फर्जी था? क्या ऑटो में अपने मृतप्राय पति के मुंह से अपना मुंह लगा कर सांस देने की कोशिश करती महिला की दिल दहलाने वाली तस्वीर ड्रामा थीं? क्या अस्पतालों के बाहर एम्बुलेंस की कतार में ऑक्सीजन के लिए तड़पते लोगों और अस्पतालों के अंदर ऑक्सीजन के इंतजार में उखड़ती सांसों की तस्वींरें झूठी थीं या ये सब एक भ्रम था?
अगर तस्वीरें सच्ची थीं तो राज्य सरकारों ने झूठ क्यों बोला?
इसमें कोई शक नहीं है कि अप्रैल और मई के दौरान पूरे भारत के अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी थी। केंद्र ने देश के कोने-कोने में ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए अपनी नौसेना, वायु सेना, रेलवे और स्टील प्लांट्स को तैयार किया था। रेलवे ने करोड़ों टन ऑक्सीजन को देश के अलग-अलग शहरों तक पहुंचाने के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेनें चलाई थीं। आपने टीवी और मल्टीमीडिया पर वीडियो देखा होगा। फिर सरकार ने संसद को पूरे कॉन्फिडेंस के साथ क्यों बताया कि ‘ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी भी मौत की सूचना राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा नहीं दी गई है?’
मैंने दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, भोपाल, इंदौर, आगरा, पटना, जयपुर, मुंबई, चंडीगढ़, मोहाली, अहमदाबाद और गांधीनगर के अपने संवाददाताओं को उन अस्पतालों के डॉक्टरों से बात करने के लिए कहा जिन्होंने ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए डिस्ट्रेस कॉल किए थे। हमारे संवाददाताओं ने उन डॉक्टरों से बात की जिन्होंने आक्सीजन की कमी के कारण कोरोना के मरीजों की मौत की बात कही थी। इन डॉक्टरों से खासतौर पर पूछा गया कि क्या उन्होंने उस समय जो कहा था वह झूठ था, और यदि उनकी बात सच थी तो क्या उनके अस्पताल ने ऑक्सीजन की कमी से हुई मौत का आंकड़ा सरकार के साथ शेयर किया था?
हमारे संवाददाताओं ने दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, गोवा, महाराष्ट्र, बिहार और छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्रियों से बात की और उनसे पूछा कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी से कोरोना के कितने मरीजों की मौत हुई, और केंद्र सरकार को राज्य सरकारों ने क्या जानकारी दी है।
मेरा पहला सवाल केंद्र सरकार से था। हमने बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा से पूछा कि इस तरह का जवाब क्यों दिया गया। उन्होंने कहा, सरकार द्वारा दिया गया जवाब राज्य सरकारों से मिले आंकड़ों का संकलन था। उन्होंने कहा कि सवाल राज्य सरकारों से पूछा जाना चाहिए। उन्होंने लिखित जवाब के पहले भाग की ओर इशारा किया: ‘हालांकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश नियमित रूप से केंद्र सरकार को कोविड के मामलों, और मौतों की रिपोर्टिंग के लिए दिशानिर्देशों के मुताबिक मौतों की संख्या के बारे में सूचना देते हैं।’
संबित पात्रा ने दिल्ली का उदाहरण दिया, जहां हजारों लोगों को अपने ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिल करवाने के लिए लाइनों में खड़े होना पड़ा था। पूरी दुनिया में दिल्ली में अस्पतालों के बाहर तड़प रहे मरीजों की तस्वीरें दिखाई जा रही थीं। हालात को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और उसने केंद्र सरकार से दिल्ली में ऑक्सीजन की सप्लाई तुरंत बहाल करने का आदेश दिया था। इसके बावजूद दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत रिपोर्ट नहीं हुई, यह बात हैरान करने वाली है। संबित पात्रा ने इल्जाम लगाया कि दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से दर्जनों मरीजों की मौत हुई थी, लेकिन दिल्ली सरकार की रिपोर्ट कहती है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, उनकी सरकार के पास ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों का कोई डेटा नहीं है क्योंकि केंद्र ने उनकी सरकार को कोविड रोगियों की मौतों के कारणों की जांच के लिए ऑडिट कमेटी बनाने की इजाजत नहीं दी। उन्होंने कहा, उपराज्यपाल ने ऑडिट कमेटी को भंग कर दिया। सिसोदिया ने आरोप लगाया कि केंद्र कुप्रबंधन के बारे में सच्चाई छिपाना चाहता है, और नहीं चाहता कि आंकड़े सामने आए।
ये सारे जबाव सियासी हैं, एक दूसरे पर तोहमत लगाने वाले हैं और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने वाले हैं। आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी, दोनों दलों के नेताओं ने अप्रैल और मई में ऑक्सीजन के लिए हांफते हुए हजारों मरीजों और सिलेंडर भरने के लिए कतारों में खड़े उनके रिश्तेदारों की तस्वीरें देखी थीं।
हमारे संवाददाता अस्पतालों में गए और डॉक्टरों से बात की। दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में 23 अप्रैल की रात ऑक्सीजन की कमी के कारण 22 मरीजों की मौत हो गई थी, और अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर ने अगले दिन इंडिया टीवी पर एक लाइव इंटरव्यू में इसकी पुष्टि की थी। क्या इन मौतों के बारे में केंद्र को बताने के लिए दिल्ली सरकार को ऑडिट कमेटी की जरूरत है? दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बुधवार को कहा कि ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीजों की कई मौतें हुईं, लेकिन उनकी ही सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा था कि ऑक्सीजन की कमी के कारण कोई मौत नहीं हुई।
इंडिया टीवी की रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा ने 23 अप्रैल की रात ऑक्सीजन की कमी के कारण मरने वालों के परिजनों से मुलाकात की। इन परिवारों ने मेडिकल डेथ सर्टिफिकेट दिखाया जिसमें मौत का कारण फेफड़े का फेल होना या हार्ट फेल होना दिखाया गया, लेकिन ऑक्सीजन की सप्लाई में कमी का कहीं जिक्र नहीं था। जब इसके बारे में जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल के डायरेक्टर से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ऑक्सीजन की कमी होने पर दिल, फेफड़े और शरीर के अन्य अंग फेल हो जाते हैं, लेकिन चूंकि मेडिकल सर्टिफिकेट में मौत का प्राथमिक कारण लिखा होता है, इसलिए यह कभी नहीं लिखा जाता कि दिल या फेफड़े ने काम करना क्यों बंद किया। इसलिए डेथ सर्टिफिकेट पर ऑक्सीजन की कमी को मौत का कारण नहीं बताया जाता।
दिल्ली के अस्पतालों द्वारा जारी एक भी मेडिकल डेथ रिपोर्ट में ऑक्सीजन की कमी को मौत का प्राथमिक कारण नहीं बताया गया है। 1 मई को दिल्ली के बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से एक डॉक्टर समेत 12 मरीजों की मौत हो गई थी। अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर एस.सी.एल. गुप्ता अपने साथी की मौत के बारे में बात करते-करते कैमरे के सामने रोने लगे थे। मुझे आज भी वह वीडियो याद है जो काफी तेजी से वायरल हो गया था। फिर भी आधिकारिक तौर पर मृत्यु का प्राथमिक कारण ऑक्सीजन की कमी होने के बारे में कोई सर्टिफिकेट जारी नहीं किया गया।
अप्रैल और मई के दौरान दिल्ली के अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन की भारी कमी थी। यहां तक कि दिल्ली सरकार ने भी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए यह बात मानी थी। बत्रा और जयपुर गोल्डन अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत के मामलों के बारे में सभी को पता है। मुझे अभी भी मैक्स और शांति मुकुंद अस्पतालों के वे ट्वीट याद हैं जिनमें ऑक्सीजन की तुरंत सप्लाई की मांग की गई थी। दिल्लीवासियों के हजारों ट्वीट और वॉट्सऐप मैसेज हैं जिनमें वे अपने प्रियजनों के लिए ऑक्सीजन की मांग कर रहे थे।
क्या सरकार को यह पता लगाने के लिए ऑडिट कमेटी की जरूरत है कि ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की मौत हुई या नहीं? दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट से क्यों कहा कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई? तड़पते हुए मरीजों, ऑक्सीजन के लिए दौड़ते-भागते परिवारों को सबने देखा था, मौत पर मातम सबने किया था, सहानुभूति सबने जताई थी। लगभग सभी लोगों ने कहा था कि ये मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुई हैं, लेकिन कागज पर किसी ने नहीं लिखा। न अस्पताल ने और न दिल्ली सरकार ने लिखित में दिया कि ऑक्सीजन की कमी की वजह से कोरोना के मरीजों की मौत हुई। क्यों? क्योंकि लाशों का बोझ कोई नहीं उठाना चाहता, मौत की जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता। और ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ दिल्ली में हुआ, बल्कि ज्यादातर राज्यों का यही हाल था।
26 अप्रैल को ठाणे के वेंदात हॉस्पिटल में ऑक्सीजन की कमी से कम से कम 5 मरीजों की मौत हो गई थी। इसके बाद परिवार के लोगों ने अस्पताल के बाहर हंगामा भी किया था। नाशिक में तो एक मरीज ने ऑक्सीजन के इंतजार में कोविड सेंटर के बाहर दम तोड़ दिया था। इसकी तस्वीरें खूब वायरल हुई थीं जिन्हें लाखों लोगों ने देखा था। लेकिन महाराष्ट्र सरकार यह बात मानने को तैयार नहीं कि सूबे में ऑक्सीजन की कमी से किसी कोविड मरीज की मौत हुई। विडंबना यह है कि सत्तारूढ़ शिवसेना के नेता संजय राउत ने कहा कि वह केंद्र सरकार के लिखित जवाब को पढ़कर नि:शब्द हो गए थे। राउत ने कहा, जिन परिवारों ने ऑक्सीजन की कमी के कारण अपनों को खो दिया है, वे सरकार के खिलाफ केस दर्ज करें। विडंबना यह है कि उनकी ही पार्टी की गठबंधन सरकार ने ही केंद्र को यह रिपोर्ट भेजी थी कि महाराष्ट्र में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई है।
इसी तरह, कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ऑक्सीजन की कमी के कारण हजारों कोविड मरीजों की मौत हो गई, और फिर भी, इन राज्य सरकारों ने केंद्र को बताया कि ऑक्सीजन की कमी के कारण किसी की मौत नहीं हुई। बुधवार को राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने स्वीकार किया कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी के कारण हजारों लोगों की मौत हुई है। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि उनके विभाग ने केंद्र को ये रिपोर्ट क्यों भेजी कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की जान नहीं गई, तो शर्मा ने इसे हंसी में उड़ाकर कहा, ‘आंकड़ों के मायाजाल में क्या फंसना, जो हकीकत है, वह सबके सामने है।’
उत्तर प्रदेश में भी ऑक्सीजन की कमी से सैकड़ों कोविड मरीजों की मौत हो गई थी। लखनऊ, मुरादाबाद, मेरठ और आगरा में हजारों लोग अपने ऑक्सीजन सिलेंडर को रिफिल करवाने के लिए रात भर लाइनों में खड़ा होना पड़ा और अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी के कारण सैकड़ों मरीजों की जान चली गई। आगरा की एक तस्वीर खूब वायरल हुई थी जिसमें एक महिला अपने पति की लाश में जान फूंकने की कोशिश कर रही है। वह पति को अपने मुंह से सांस देने की नाकाम कोशिश करती दिख रही थी। 26 अप्रैल को मेरठ के 3 बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से कम से कम 21 कोविड मरीजों की मौत हो गई थी। लखनऊ के बख्शी का तालाब में ऑक्सीजन की कमी के कारण एक परिवार के 7 लोगों की जान चली गई थी। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक, आज तक एक भी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। यह चमत्कार कैसे हुआ?
हमारे रिपोर्टर ने यूपी के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह से बात की। उनका जवाब दिलचस्प था। उन्होंने कहा, ‘हमारी सरकार ने कोरोना से हुई प्रत्येक मौत का ऑडिट किया, लेकिन चूंकि केंद्र द्वारा विकसित CoWin पोर्टल में मृत्यु के कारण का उल्लेख करने का कोई विकल्प नहीं था, इसलिए यह कहना गलत होगा कि यूपी सरकार ने सच्चाई छिपाई।’
जद(यू)-भाजपा गठबंधन सरकार के शासन वाले बिहार में जनवरी से मई तक कोरोना से 8,500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई, लेकिन राज्य सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि उनमें से किसी की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने इंडिया टीवी को दिलचस्प जवाब देते हुए कहा, 'अस्पतालों में अप्रैल और मई के दौरान ऑक्सीजन की मांग 14 गुना बढ़ी, लेकिन ऑक्सीजन की कमी से एक भी मरीज की मौत नहीं हुई। हमने अस्पतालों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन की आपूर्ति की थी। ऐसे हो सकता है कि मरीज अस्पतालों तक नहीं पहुंच पाए और रास्ते में ही ऑक्सीजन की कमी से उनकी मौत हो गई, लेकिन हमारी सरकार के पास उनकी मौत के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है।’ मंगल पांडे को यह कौन समझाएगा कि ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे मरीजों के लिए अस्पतालों में बिस्तर उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेवारी है?
दुख की बात यह है कि ज्यादातर राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों ने ऐसे ही जबाव दिए। मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने दावा किया कि अस्पतालों को ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति की गई थी। जब हमारे संवाददाता ने बताया कि अस्पतालों के बाहर तो मरीजों के परिवार वाले ऑक्सीजन की कमी की शिकायत कर रहे थे, तो उन्होंने जवाब दिया, ‘मुझे अस्पतालों के बाहर क्या हुआ, इसकी कोई जानकारी नहीं है। मैं इतना ही कह सकता हूं कि अस्पतालों के अंदर ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई।’
केंद्र ने संसद में जो कुछ भी कहा वह गलत सूचना हो सकती है, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व खुद अपने स्वास्थ्य मंत्रियों से क्यों नहीं पूछ रहा कि वे क्यों ऐसा कह रहे हैं? राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने ट्वीट में ऑक्सीजन की समस्या से हुई मौतों पर तीखी टिप्पणी की । यह कांग्रेस बनाम बीजेपी का मुद्दा नहीं है, न ही यह केंद्र बनाम राज्य का मुद्दा है। वैसे कुछ राज्य हो सकते हैं जहां मेडिकल ऑक्सीजन की कमी न हुई हो, लेकिन सभी राज्यों के बारे में ये बात नहीं कही जा सकती।
ऑक्सीजन से मरने वालों की संख्या को लेकर नेताओं की तरफ से जिस तरह बयानबाजी हुई, जिस तरह की सियासत हुई, उसे देखकर मुझे दुख और हैरानी हुई। राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के इस बयान का मजाक उड़ाया कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई। उन्होंने ट्वीट किया, ‘सिर्फ ऑक्सीजन की ही कमी नहीं थी। संवेदनशीलता व सत्य की भारी कमी तब भी थी, आज भी है।’ मैं मानता हूं कि यह कहना कि ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा, असत्य है, संवेदनहीन है लेकिन कांग्रेस के बड़े नेताओं को राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों से भी पूछना चाहिए था कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई। क्या उनके अपने स्वास्थ्य मंत्री संवेदनहीन हैं या वे झूठ बोल रहे हैं? महाराष्ट्र में भी कांग्रेस की भागीदारी वाली सरकार है जिसमें शिवसेना और एनसीपी उसके पार्टनर हैं। वहां की सरकार ने तो बॉम्बे हाईकोर्ट में एफिडेविट फाइल करके कहा कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी यही काम किया।
सबसे ज्यादा दुख की बात तो यह है कि हमारा सिस्टम ही ऐसा है। सरकार बीजेपी की हो, कांग्रेस की हो या किसी और पार्टी की, कागज पर कुछ और होता है और सियासी जबान पर कुछ और। अस्पतालों ने डेथ सर्टिफिकेट में लिख दिया मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी नहीं, हार्ट या फेफड़ों का फेल होना है। अस्पतालों ने मौत के प्राथमिक कारण के रूप में ऑक्सीजन की कमी का जिक्र नहीं किया। राज्य सरकारों ने आंख बंद करके इसे मान लिया। इसके बाद यही रिकॉर्ड राज्य सरकारों ने केंद्र को भेज दिया और केंद्र सरकार ने संसद को दिए जवाब में कह दिया कि देश में ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई।
जरा सोचिए। भारत में कौन ऐसा है जो इस सच को नहीं जानता कि बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन की कमी से तड़प-तड़प कर मर गए? सच सब जानते हैं, मौतों का दुख सबको है, संवेदना भी है, पर सिस्टम ऐसा है कि सच को सामने आने नहीं देता। लेकिन भारत की जनता, देश की भाग्य विधाता तो सब जानती है। उसने अपनी आंखों से मरीजों की उखड़ती सांसें देखी हैं, ऑक्सीजन की कमी से उन्हें दम तोड़ते देखा है। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 21 जुलाई, 2021 का पूरा एपिसोड