कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने बुधवार को एक न्यूज एजेंसी को दिये इंटरव्यू में पार्टी की मौजूदा स्थिति को लेकर कड़वी बात कही। उन्होंने कहा, 'हमारी सबसे बड़ी समस्या है कि हमारे नेता (राहुल) हमें छोड़कर चले गए। उनके जाने के बाद एक तरह का खालीपन है। सोनिया गांधी ने कार्यभार संभाला है लेकिन वे भी इसे एक आंतरिक व्यवस्था के तहत संभाली गई जिम्मेदारी मान रही हैं। काश! ऐसा नहीं होता।' खुर्शीद का यह बयान ऐसे समय में आया है जब पार्टी के नेता राहुल गांधी कंबोडिया में 'विपश्यना' ध्यान करने में व्यस्त हैं। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को महाराष्ट्र- हरियाणा जैसे अहम विधानसभा चुनाव के बीच मझधार में छोड़ दिया है। चुनाव प्रचार के लिए राहुल गांधी के वापस लौटने का फिलहाल कोई संकेत नहीं है। सलमान खुर्शीद के इस बयान से पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच हलचल सी मच गई है जो पहले से ही इन दो राज्यों में भारी बहुमत से सत्ता में कायम बीजेपी का सामना कर रहे हैं।
ये बात वाकई आश्चर्य में डालने वाली है कि जब महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव हो रहे हैं तो राहुल गांधी छुट्टी पर चले गए। जब इन दोनों राज्यों में उनके भरोसेमंद नेता संजय निरूपम और अशोक तंवर पार्टी आलाकमान के खिलाफ बगावत का झंडा उठा रहे हैं, तो राहुल गांधी उन्हें समझाने के बजाए गायब हो गए। कोई कोशिश नहीं की। हर किसी को उम्मीद थी कि राहुल भारत में रहकर इन नेताओं को मनाते, क्योंकि कांग्रेस की दोनों राज्य इकाइयों में गुटबाजी और असंतोष चरम पर है।
राहुल गांधी भले ही पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे चुके हैं लेकिन वे पार्टी के वरिष्ठ नेता तो हैं। वे पांच साल तक पार्टी के अध्यक्ष रहे और हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में पीएम पद के उम्मीदवार थे। इसके अलावा, वे मौजूदा पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी भी हैं। यदि राहुल गांधी जैसे कद का व्यक्ति पार्टी को उसके भाग्य पर छोड़ दे, संकट की घड़ी में इस तरह से किनारा कर ले, तो फिर पार्टी के कार्यकर्ता उन्हें मजबूत नेता कैसे मानेंगे। सच्चे नेता की पहचान संकट के समय में होती है। राहुल गांधी इस बात को जितनी जल्द समझ लेंगे, उतना ही यह उनके लिए और कांग्रेस के लिए बेहतर होगा। क्योंकि जब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में हैं, कांग्रेस के लिए संकट तो आते रहेंगे।
लेकिन कांग्रेस की समस्या सिर्फ राहुल गांधी का गायब हो जाना नहीं हैं। देश के अहम मुद्दों पर क्या स्टैंड क्या लेना है, इसको लेकर भी कांग्रेस में कन्फ्यूजन है। खासतौर पर बालाकोट एयरस्ट्राइक, राफेल विमानों का अधिग्रहण और अनुच्छेद 370 को खत्म करने जैसे मुद्दे पर कांग्रेस का कन्फ्यूजन साफ नजर आया। जब बालाकोट पर एयरस्ट्राइक हुई थी तब कई दिनों तक राहुल गांधी तय नहीं कर पाए थे कि इसका समर्थन करना है या विरोध करना है। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने एयर स्ट्राइक में भारतीय वायुसेना की सफलता के दावों पर सवाल खड़े किये। यही हाल अनुच्छेद 370 को खत्म करने के मुद्दे पर भी था। जब पूरा देश जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को खत्म करने के मुद्दे पर एकजुट था, कांग्रेस पार्टी असमंजस में दिखी। वे तय नहीं कर पा रहे थे कि समर्थन करना है या विरोध। अंतत: उसे भी मोदी सरकार की कार्रवाई स्वीकार करनी पड़ी।
राफेल लड़ाकू विमानों के अधिग्रहण के मुद्दे को राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के दौरान खूब उछाला। राहुल जहां-जहां भी गए वहां इसे चुनाव का मुद्दा बनाया। उन्होंने पीएम मोदी पर गंभीर आरोप भी लगाए, लेकिन इन आरोपों को साबित करने के लिए उनके पास न तो कोई तथ्य था और न ही कोई सबूत। लिहाजा हर जगह कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी।
इसी तरह दशहरा के दिन जब फ्रांस में भारतीय वायुसेना को पहला राफेल विमान हैंडओवर किया जा रहा था तब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 'शस्त्र पूजा' की थी। इस शस्त्र पूजा को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खडसे ने 'तमाशा' बता दिया। अनादिकाल से भारत में दशहरा के दौरान 'शस्त्र पूजा' की परंपरा रही है, और राफेल के हैंडओवर के दौरान रक्षा मंत्री द्वारा की गई पूजा इसी परंपरा और वार्षिक अनुष्ठान का एक हिस्सा था। इसे 'तमाशा' बताकर कांग्रेस अपने ही भाग्य का नुकसान कर रही है और वो भी खासकर ऐसे समय में जब महाराष्ट्र और हरियाणा की वोटिंग में कुछ दिन ही बचे हैं। ऐसा लगता है कि या तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच तालमेल की कमी है या फिर कोई मजबूत हाईकमान नहीं होने से पार्टी में असंतोष और असमंजस की स्थिति है। कांग्रेस पार्टी जितनी जल्दी अपने अंदर के बिखराव को समेट ले, उतना ही अच्छा है। (रजत शर्मा)
देखिये, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 09 अक्टूबर 2019 का पूरा एपिसोड