'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' नए साल की सबसे विवादास्पद फिल्म हो सकती है क्योंकि यह पूरी तरह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 10 साल तक चलाई गई यूपीए सरकार पर केंद्रित है। सत्ता के गलियारों में हुई घटनाओं की पूरी इनसाइड स्टोरी आपको इस फिल्म में मिलेगी। यह फिल्म 11 जनवरी को रिलीज होगी और मैंने थोड़े दिन पहले इस फिल्म को देखा है। इस फिल्म को देखने के बाद इसके महत्वपूर्ण दृश्यों को रेखांकित कर मैं आपको यह बता सकता हूं कि क्यों फिल्म का ट्रेलर सोशल मीडिया पर सर्कुलेट होने के बाद विवादों में घिर गया।
'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' के तौर पर अभिनेता अनुपम खेर के सामने एक बेहद चुनौतीपूर्ण रोल था जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है। फिल्म देखते हुए अनुपम खेर की आवाज, चाल-ढाल, हावभाव, अंदाज देखकर ऐसा लगा है कि वाकई में मनमोहन सिंह खुद पर्दे पर उतर आए हैं। यह रोल इसलिए भी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि मनमोहन सिंह न तो काल्पनिक करैक्टर हैं, न ही वे कोई बहुत पुराने एतिहासिक फिगर हैं। हम अपनी रीयल लाइफ में हर रोज उन्हें देखते हैं।
यह फिल्म डॉ. सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू द्वारा लिखी गई किताब पर आधारित है। यह किताब 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व प्रकाशित हुई थी और अब जबकि लोकसभा चुनाव में चंद महीने बाकी हैं, फिल्म पर्दे पर आ रही है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने शुक्रवार को इस फिल्म को हरी झंडी दे दी है।
एक चीज मैं यहां कहना चाहूंगा कि इस फिल्म के सभी किरदार में अप्रत्यक्ष या प्रतीक के रूप में कुछ भी नहीं है। फिल्म में उन किरदारों के गेटअप भी उनकी रियल लाइफ के काफी करीब है। अनुपम खेर ने इसमें मनमोहन सिंह का किरदार निभाया है, उन्होंने उनकी आवाज से लेकर चलने के स्टाइल और सारे हाव-भाव को काफी हदतक कॉपी किया है। ट्रेलर देख कर समझ आ रहा है कि अनुपम खेर ने इस किरदार के लिए काफी मेहनत की है, बेहद करीब से मनमोहन सिंह के कैरेक्टर का अध्ययन किया है। अक्षय खन्ना ने मीडिया सलाहकार संजय बारू का रोल किया है। जर्मन अभिनेत्री सुशान बर्नेट ने सोनिया गांधी का रोल किया है। यूरोपियन होने के चलते उनकी हिंदी भी सोनिया गांधी के लहजे से मेल खाती है। आहना कुमार प्रियंका गांधी के रोल में हैं और अर्जुन माथुर ने राहुल गांधी का किरदार निभाया है।
इन सभी अभिनेताओं ने अपने-अपने रोल को बेहद ईमानदारी से निभाया है और रीयल लाइफ में वे कैरेक्टर्स जैसे हैं ठीक उनके करीब अपने अभिनय को रखने की कोशिश की है। फिल्म के ट्रेलर से यह साफ जाहिर होता है कि कुछ अहम मुद्दों पर डा. सिंह और सोनिया गांधी के बीच कुछ झगड़ा था। इस फिल्म में दिखाया गया है कि परमाणु समझौते जैसे अहम मुद्दे पर पार्टी के भीतर मनमोहन सिंह को कितना दबाव झेलना पड़ा था। फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि राष्ट्रहित से जुड़े अहम मसलों पर फैसला लेने डॉ. सिंह को रोका जाता था, और जब सरकार पर भ्रष्ट्राचार के आरोप लगे तो मनमोहन सिंह के चेहरे को आगे रखा गया ताकि गांधी परिवार पर दाग़ न लगे। इस फिल्म में हर उस विवाद के पीछे की कहानी बतायी गयी है जो यूपीए के 10 साल के शासन के दौरान हुई थी।
संजय बारू इस पूरी फिल्म में सूत्रधार के रूप में दिखाई देंगे। पूरी स्टोरी उनके जरिए नैरेट की गई है। कई जगह संजय बारू मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार के बजाय उनके राजनीतिक सलाहकार नजर आते हैं। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के रोल में जर्मन एक्ट्रेस सुजैन बर्नेट हैं जिनकी आवाज और जिनका अंदाज भी सोनिया गांधी की तरह ही है। फिल्म इस बात का भी खुलासा करती है कि कैसे सोनिया गांधी ने डॉ. सिंह के कई फैसलों को रोक दिया और कैसे वे अपने बेटे राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश में लगी थीं।
फिल्म में एक जगह पर पार्टी अध्यक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को यह कहते हुए दिखाया गया है कि अगर सारे फैसले वे खुद ही लेना शुरू कर देंगे तो फिर उनके बेटे के लिए क्या बचेगा। फिल्म के एक दृश्य में जब डॉ. सिंह इस्तीफे की पेशकश करते हैं तो सोनिया गांधी को यह कहते हुए दिखाया गया है कि जब भ्रष्टाचार के इतने मामले हैं..ऐसे में राहुल टेकओवर कैसे करे...वो प्रधानमंत्री कैसे बने?
अधिकांश घटनाओं का जिक्र संजय बारू ने अपनी किताब में किया है जो कि पांच साल पहले प्रकाशित हुई थी लेकिन इसका प्रभाव पर्दे पर ज्यादा पड़ेगा। फिल्म में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की उस घटना को भी दिखाया गया है जब राहुल गांधी ने केंद्रीय कैबिनेट द्वारा पास अध्यादेश की कॉपी को मीडिया के सामने फाड़ दिया था। फिल्म में ये घटना भी दिखाई गई है कि जब डॉ. सिंह और सोनिया गांधी पॉलिसी के मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श कर रहे थे उस वक्त राहुल गांधी बेहद अनिच्छुक भाव में थे और ऐसा लग रहा है जैसे वो अपने सेलफोन पर गेम खेल रहे हैं या वीडियो देख रहे हैं।
इस फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी, एल.के. आडवाणी से लेकर अहमद पटेल और पी. चिंदबरम का अभिनय करनेवाले भी कमाल के हैं। बिल्कुल इन लोगों के जैसे दिखते हैं और उसी अंदाज में बातें भी करते हैं।
अनुपम खेर इस फिल्म में डॉ. मनमोहन सिंह की भूमिका से काफी खुश हैं। उन्होंने 'आज की बात' में अपने इंटरव्य़ू में मुझे बताया कि इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, जबक मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इसका कड़ा विरोध कर रही है। कांग्रेस के नेताओं ने मांग की है कि इस फिल्म के रिलीज को रोका जाना चाहिए। इनके मुताबिक कुछ खास लोगों को बदनाम करने के लिए इसमें आपत्तिजनक दृश्य हैं। बीजेपी इससे खुश है और उसने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस फिल्म के ट्रेलर को पोस्ट कर दिया। बीजेपी के ट्विटर हैंडल पर पोस्ट होने कुछ घंटों के भीतर ही इसे 3.84 लाख लोग देख चुके थे।
महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस अध्यक्ष ने इस फिल्म के प्रोड्यूसर को चिट्ठी लिखकर धमकी दी है कि वे इस फिल्म के प्रदर्शन में बाधा डालेंगे। कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि यह फिल्म बीजेपी के प्रोपेगंडा का हिस्सा है। मैं फिल्म के प्रोड्यूसर सुनील बोरा को व्यक्तिगत तौर पर जानता हूं। उनका कोई पॉलिटिकल कनेक्शन नजर नहीं आया। लेकिन अगर किसी का कोई पॉलिटिकल कनेक्शन हो भी तो उससे फिल्म बनाने का हक तो नहीं छीना जा सकता। उसे अभिव्यक्ति की आजादी से वंचित तो नहीं किया जा सकता।
मैं कांग्रेस नेताओं को याद दिलाना चाहूंगा कि जब फिल्म 'उड़ता पंजाब' की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाया गया था तब उन्होंने किस तरह विरोध जताया था। जब तमिल फिल्म 'मर्सल' की स्क्रीनिंग रोकने की बात आई तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद ट्वीट कर विरोध जताया था। राहुल ने ट्वीट किया था- मोदी जी, सिनेमा तमिल संस्कृति और भाषा की गहरी अभिव्यक्ति है... मर्सल में हस्तक्षेप कर तमिल गौरव का मान घटाने की कोशिश न करें। ( "Mr Modi, Cinema is a deep expression of Tamil culture and language ..Don't try to demon-etise Tamil pride by interfering in Mersal.")
विरोध प्रदर्शनों के बजाय कांग्रेस को अभिव्यक्ति की आजादी की इजाजत देनी चाहिए और पार्टी को कुछ गंभीर आत्ममंथन करना चाहिए। (रजत शर्मा)
देखें 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 28 दिसंबर का पूरा एपिसोड