बुधवार रात तेलुगु देशम पार्टी के सुप्रीमो और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने यह ऐलान किया कि केंद्र में उनके दो मंत्री इस्तीफा दे देंगे क्योंकि बीजेपी ने आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा नहीं देकर उनके साथ धोखा किया है। गुरुवार को नायडू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की और इसके तुरंत बाद केंद्र सरकार में टीडीपी कोटे के दोनों मंत्री पीएम आवास पहुंचे और अपना इस्तीफा सौंप दिया।
यह राजनीतिक तूफान लंबे समय से चल रहा था। विशेष दर्जे की मांग को लेकर टीडीपी के सांसद संसद भवन के अंदर पिछले चार दिन से अपना विरोध जता रहे थे। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को यह साफ किया कि कानून में किसी राज्य को विशेष दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है। केवल उत्तर-पूर्वी राज्यों और तीन पहाड़ी राज्यों में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए केंद्र सरकार 90 फीसदी शेयर उपलब्ध कराती है। जेटली ने कहा कि केंद्र सरकार विशेष उद्देश्य साधन के तहत आंध्र प्रदेश को विशेष सहायता देने के लिए तैयार है लेकिन टैक्स में हिस्सेदारी नहीं बढ़ाई जा सकती है।
इस पूरे घटनाक्रम में दो बातें समझने वाली हैं। पहली, आंध्र प्रदेश में बीजेपी धीरे-धीरे अपना विस्तार कर रही है लेकिन वह अकेले दम पर चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं हैं। 2014 में बीजेपी ने चंद्रबाबू नायडू के साथ चुनावी तालमेल किया लेकिन अब वाईएसआर कांग्रेस के प्रमुख वाईएस जगनमोहन रेड्डी एक बड़ी राजनीतिक ताकत के तौर पर उभर रहे हैं। बीजेपी के नेताओं ने रेड्डी की पार्टी साथ आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए बातचीत शुरू कर दी है।
दूसरी बात, अगर टीडीपी के साथ गठबंधन से बीजेपी खुद बाहर निकलती तो इससे उसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ता और पार्टी की ज्यादा किरकिरी होती। आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा देने की मांग एक भावनात्मक मुद्दा है और चंद्रबाबू नायडू इसे एक बड़े मुद्दे के तौर पर पेश कर रहे हैं। अब जबकि केंद्र ने उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया है, नायडू ने आखिरी विकल्प के तौर पर बीजेपी से रास्ता अलग करने का फैसला किया। (रजत शर्मा)