देश के सबसे अनुभवी राजनेताओं में से एक डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी 86 वर्ष के हैं और वह बीजेपी के मार्गदर्शन मंडल का हिस्सा हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में डॉ. जोशी ने कानपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीता। पार्टी नेतृत्व ने उन्हें सक्रिय राजनीति से दूर रहने के लिए 2014 और 2019 में कई बार संकेत दिए थे, और यहां तक कि उन्हें राज्यसभा सीट की पेशकश भी की थी, लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता ने चुनाव लड़ने पर ही जोर दिया था।
सोमवार को जोशी ने एक बयान जारी कर कहा कि भाजपा के संगठन सचिव रामलाल ने उनसे ‘कानपुर या कहीं और से चुनाव नहीं लड़ने’ के लिए कहा है। जोशी का यह बयान काफी कुछ कह गया। दोपहर में बीजेपी ने घोषणा की कि यूपी सरकार में मंत्री सत्यदेव पचौरी को कानपुर से पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया है। जोशी इस प्रकार पार्टी के दिग्गजों लालकृष्ण आडवाणी, शांता कुमार, बीसी खंडूरी और भगत सिंह कोश्यारी की लिस्ट में शामिल हो गए, जिन्हें बुजुर्ग होने के कारण पार्टी ने इस बार टिकट नहीं दिया है।
यदि डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने खुद ही चुनाव न लड़ने की पेशकश की होती तो बेहतर होता। यह उन्हें और पार्टी नेतृत्व, दोनों को शर्मिंदगी से बचा सकता था। इस तथ्य से कोई इनकार नहीं है कि डॉ. जोशी ने अपना पूरा जीवन पार्टी के निर्माण में लगाया, वह पार्टी अध्यक्ष बने, वाजपेयी की सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री बने और उन्होंने कई बार पार्टी की मैनिफेस्टो ड्राफ्टिंग कमिटी का नेतृत्व किया। उन्होंने इलाहाबाद, वाराणसी और कानपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
जहां तक मैं जानता हूं, न तो पार्टी को उनसे कोई शिकायत है, और न ही पार्टी नेतृत्व के प्रति उन्हें। एकमात्र बाधा उनकी उम्र थी और पार्टी नेतृत्व ने उन्हें चुनावी मुकाबले से दूर करके एक सही फैसला किया है। सपा-बसपा गठबंधन से गंभीर चुनौती, जातिगत एवं सामुदायिक समीकरणों के कारण पार्टी नेतृत्व को यूपी की हर सीट के लिए जिताऊ मुद्दों पर ध्यान देना पड़ा। लोकसभा चुनावों की मुख्य लड़ाई बिहार, यूपी और पश्चिम बंगाल में लड़ी जाएगी और पार्टी नेतृत्व इस मामले में कोई जोखिम नहीं उठा सकता। (रजत शर्मा)
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