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BLOG: नूपुर और राजेश तलवार के खोये हुए वक्त को कौन लौटाएगा ?

चार साल से अपनी ही बेटी के कत्ल के इल्जाम में जेल में एक-एक दिन एक-एक रात नूपुर और राजेश ने कैसे काटी होगी? कितना दर्द सहा होगा? इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: October 13, 2017 18:28 IST
Arushi murder case- India TV Hindi
Arushi murder case

रहस्य बरकरार है। कोई पूरे भरोसे के साथ नहीं कह सकता कि आरुषि तलवार की हत्या किसने की। गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए राजेश और नूपुर तलवार को बरी कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पिछले चार साल से डेंटिस्ट दंपति डासना जेल के अंदर कारावास का दंश झेल रहे हैं। आरुषि वापस नहीं लौट सकती लेकिन राजेश और नूपुर जो अपने जीवन के चार साल जेल में खो चुके हैं उसे कौन लौटाएगा? हमें इस मुद्दे पर गहराई से विचार करना चाहिए। वहां यूपी पुलिस, एसआईटी और सीबीआई जैसी एजेंसी लगी हुई थी लेकिन अभी तक मर्डर केस सॉल्व नहीं हो सका। हत्यारा पकड़ा नहीं गया और न ही हत्या में इस्तेमाल हथियार का पता चल पाया।

सारी बातें ठीक हैं। सबूत नहीं थे, गवाह नहीं थे, हथियार बरामद नहीं हुआ, हत्या का मोटिव पता नहीं लगा और आरूषि के माता पिता को गुरुवार को कोर्ट ने बरी कर दिया। लेकिन क्या ये न्याय है? चार साल से अपनी ही बेटी के कत्ल के इल्जाम में जेल में एक-एक दिन एक-एक रात नूपुर और राजेश ने कैसे काटी होगी? कितना दर्द सहा होगा? इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। ये दर्द इसीलिए और भी ज्यादा है कि जिस बेटी को उन्होंने पाल पोसकर बड़ा किया...एक तरफ उसको खोने का गम और दूसरी तरफ नौ साल तक बेटी का हत्यारा कहलाने का कलंक। नूपुर और राजेश जब जेल से बाहर आ जाएंगे तो हो सकता है अपना दर्द बयां करें लेकिन नूपुर ने अपने दिल की बात जेल के अंदर दिए एक इंटरव्यू में कही थी। नुपुर की बातें सुनने लायक हैं। तिनका-तिनका फाउंडेशन की वर्तिका नंदा पिछले साल नवंबर में डासना जेल गयीं थीं। नूपूर से मिलीं, जेल में उनकी एक्टिविटी देखी, उनसे बातें की... वर्तिका को नूपुर ने बताया था कि शुरू में उनके लिए ये बात एक्सेप्ट करना मुश्किल था कि उन्हें और उनके पति को अपनी ही बेटी का कातिल बताया गया है। वो बार-बार सोचती थीं कि उनके साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है? शुरू में उनके लिए दिन काटना मुश्किल होता था। हर वक्त आरुषि का ख्याल आता था। फिर उन्होंने ध्यान डाइवर्ट करने के लिए जेल में ही पेशेंट्स का इलाज शुरू कर दिया था, कविताएं लिखने लगीं, तरह तरह की किताबें पढ़ने लगीं।

एक सवाल तो उठता है कि जो मां अपनी बेटी को इतना प्यार करती हो, जो पिता अपनी बेटी को इतना प्यार करता हो क्या वो अपनी बेटी को मार सकते हैं। पिछले चार साल में जब से नूपुर और राजेश को सजा हुई मुझे एक बार भी ये नहीं लगा कि वो गुनहगार हैं। दिल ने कभी ये नहीं माना कि एक पिता अपनी बेटी का गला काटा होगा। दिमाग ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया कि एक मां अपनी बेटी की हत्या करने वाले पति का साथ दे। CBI ने भी यही कहा था कि उसके पास इस बात के कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन निचली अदालत ने इसको नहीं माना। क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट में तब्दील करवा दिया और नूपुर राजेश को जेल भेज दिया। अगर नूपुर और राजेश के रिश्तेदार साथ न देते किसी तरह वकीलों को जुटाकर उनका केस न लड़ते तो न सिर्फ ये दोनों जेल में रहते बल्कि जिंदगी भर इस बोझ के तले जीते कि दुनिया उन्हें अपनी बेटी का कातिल मानती है। एक बड़ा सवाल ये भी है कि नूपुर और राजेश दोनों डॉक्टर हैं। दोनों डेंटिस्ट अब इसी समाज में कैसे रहेंगे? क्या अपनी क्लीनिक फिर से शुरू कर पाएंगे? क्या फिर से लोग उनके पास अपने दांतों का इलाज कराने आएंगे?

आरूषि तो वापस नहीं आ सकती लेकिन उसके माता पिता को चार साल कौन लौटाएगा? आज इसके बारे में सोचने का दिन है कि ऐसा केस जिसमें हत्यारा पकड़ा नहीं गया लेकिन बेकसूरों को चार साल जेल में रहने की सजा मिली। उन्हें समाज ने भी गुनहगार मान लिया। यह हमारे सिस्टम और जांच एजेंसियों की कमी है। यही हाल न्याय प्रक्रिया का है। अब धीरेःधीरे लोगों को ये लगने लगा है कि निचली अदालत में जो भी फैसला होना है जल्दी हो क्योंकि न्याय उन्हें हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से ही मिलेगा। इस परसेप्शन को सुधारने की जरूरत है। आज मुझे कई डॉक्टर्स ने फोन करके कहा कि उन्हें तो मरीज की हालत देखकर तुरंत फैसला करना पड़ता है। कोर्स ऑफ एक्शन तुरंत सोचना होता है इसमें कभी-कभी गलती भी होती है। लेकिन गलती होने पर डॉक्टर्स के खिलाफ केस होता है। उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। लेकिन निचली अदालतों के जजों के पास पूरा वक्त होता है। फिर भी अगर वो गलत फैसला सुनाते हैं। बेगुनाह को कातिल ठहरा कर पूरी जिंदगी के लिए सलाखों के पीछे भेज देते हैं तो ऐसी स्थिति को कैसे सुधारा जाए, आज इस पर भी सोचने की जरूरत है। (रजत शर्मा)

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