Sunday, December 22, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog: कौन कर रहा है किसानों के आंदोलन को हाइजैक करने की कोशिश?

Rajat Sharma’s Blog: कौन कर रहा है किसानों के आंदोलन को हाइजैक करने की कोशिश?

इन नेताओं के पिछले बयानों को अगर आप देखें, तो आप यही कहेंगे कि सिर्फ राजनीति चमकाने के चक्कर में ये नेता किसानों को बहका और भड़का रहे हैं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated : December 08, 2020 18:58 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on Farm Bills, Rajat Sharma Blog on Farmers
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

इस वक्त तकरीबन तमाम विपक्षी दल नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आन्दोलन में कूद पड़े हैं। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान पिछले बारह दिन से दिल्ली की सीमा पर धरना देकर बैठे हुए हैं। मंगलवार को किसानों ने भारत बन्द की कॉल दी, और तमाम विपक्षी दल इसका समर्थन करते हुए सियासत में कूद पड़े। कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, अकाली दल, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों समेत ज्यादातर विपक्षी दलों ने मांग की है कि नए कानूनों को रद्द किया जाय।  राहुल गांधी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, मायावती समेत विपक्ष के तमाम बड़े चेहरे किसानों के समर्थन में आगे आ गए है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सोमवार को अपने ट्वीट में मांग की कि ‘अंबानी-अडानी कृषि कानूनों को रद्द किया जाए।’ तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने दिल्ली में किसानों से मिलने के लिए अपने खासमखास सहयोगी डेरेक ओ'ब्रायन को भेजा। अखिलेश यादव यूपी में 'किसान पदयात्रा'  के लिए निकले, लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सिंघू बॉर्डर पर बैठे  पंजाब के किसानों से मिले और कहा कि मैं एक सीएम के रूप में नहीं,  एक 'सेवादार' के रूप में आया हूं।

सोनिया और राहुल गांधी से लेकर शरद पवार, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, मायावती, और के. चंद्रशेखर राव तक,  तमाम बड़े विपक्षी नेता किसानों को समर्थन देने के लिए मैदान में कूद पड़े हैं। लेकिन किसान नेता ये सब देखकर परेशान हैं। उन्होंने तो आज तक किसी पार्टी के नेता को अपने मंच पर आने नहीं दिया क्योंकि उनका कहना था कि जब यही पार्टियां विपक्ष में होती हैं तो किसानों से जुड़े मुद्दों पर अलग ही राग अलापती हैं और सत्ता में आते ही इनके सुर बदल जाते हैं। किसान नेताओं का कहना है कि जब ये नेता सत्ता में थे, उस वक्त इन्होने उन्हीं प्रावधानों का समर्थन किया था, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए कृषि कानूनों में शामिल किया हैं।

सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने दिखाया कि कैसे राजनीतिक दलों के नेता, जो अब कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, पहले 'मंडियों' को खत्म करने की बात कह रहे थे, कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने पर जोर दे रहे थे और अनाज, सब्जियों की स्टॉक लिमिट खत्म करने के पक्ष में थे।

इन नेताओं के पिछले बयानों को अगर आप देखें, तो आप य़ही कहेंगे कि सिर्फ राजनीति चमकाने के चक्कर में ये नेता किसानों को बहका और भड़का रहे हैं। ये नेता सियासी मौकापरस्ती का सहारा ले रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए किसान आंदोलन को हवा दे रहे हैं। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र की कुछ बातों का जिक्र किया है जिनमें ये वादा किया गया था कि एपीएमसी ऐक्ट को निरस्त या संशोधित किया जाएगा, लेकिन जब मोदी सरकार ने इस वादे को लागू करने की कोशिश की तो अब इसका विरोध किया जा रहा है।

6 साल पहले 27 दिसंबर 2013 को, जब मनमोहन सिंह की सरकार सत्ता में थी, राहुल गांधी समेत कांग्रेस के कई नेताओं और मुख्यमंत्रियों ने एक जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी जिसमें पार्टी के प्रवक्ता अजय माकन ने घोषणा की कि सभी कांग्रेस शासित राज्यों में किसानों को APMC मार्केट करे बाहर अपनी फसल को बेचने की इजाजत दी जाएगी। मुझे याद है कि 2004 में सरकार बनने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कृषि सुधार लाना चाहते थे, लेकिन लेफ्ट पार्टियों ने और उन्होंने कृषि क्षेत्र में रिफॉर्म का आइडिया ड्रॉप कर दिया। मनमोहन सरकार में मंत्री कपिल सिब्बल ने संसद में कहा था कि बिचौलिए APMC मार्केट में किसानों को लूटते हैं इसलिए उन्हें अपनी फसल सीधे बड़ी कंपनियों को बेचने की इजाजत होनी चाहिए।

इसी तरह का यू-टर्न एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने लिया है। पवार ने ही मनमोहन सिंह की सरकार में कृषि मंत्री रहते हुए APMC ऐक्ट में सुधार की वकालत की थी। उन्होंने 2010 में APMC ऐक्ट में सुधारों का समर्थन करने वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी थी। इंडिया टीवी ने शरद पवार द्वारा दिल्ली की तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखी गईं 2 चिट्ठियों को दिखाया है। इन चिट्ठियों में पवार ने लिखा था कि ग्रामीण इलाकों में विकास, रोजगार और आर्थिक समृद्धि के लिए कृषि क्षेत्र को अच्छी तरह से संचालित बाजार की जरूरत है, जिसके लिए कोल्ड स्टोरेज और मार्केटिंग ढांचे में बड़ा निवेश चाहिए। उन्होंने लिखा था कि ऐसे में निजी क्षेत्र को अहम रोल निभाने की जरूरत है और इसके लिए एक रेगुलेटर और नीतिगत माहौल होना चाहिएथ। पवार ने तब किसानों के लिए निजी क्षेत्र में मार्केटिंग चैनल के विकल्पों का आह्वान किया था।

अब जब मोदी सरकार ने इन सुझावों को नए कानूनों में शामिल कर लिया है, तो पवार मोदी का विरोध कर रहे हैं। 2005 में एक इंटरव्यू में पवार ने तो धमकी तक दे दी थी कि अगर APMC ऐक्ट में बदलाव के लिए राज्य सरकारों ने सहमति नहीं दी तो केंद्र सरकार राज्यों को आर्थिक मदद देना बंद कर देगी। आज भी पवार के करीबी नेता प्रफुल्ल पटेल नए कृषि कानूनों का विरोध नहीं कर रहे हैं। वह केवल यह मांग कर रहे हैं कि एमएसपी सिस्टम, जो कि एक प्रशासनिक निर्णय है, को ऐक्ट में ही शामिल कर लिया जाए।

लेकिन एक बेहद जरूरी सवाल पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है। यदि केंद्र हर साल 22 फसलों के लिए MSP तय करता है, तो एक्सपर्ट्स के मुताबिक सरकार को सभी 22 फसलों को एमएसपी पर खरीदने के लिए लगभग 17 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इस समय सरकार का कुल राजस्व ही 16.5 लाख करोड़ रुपये है। ऐसे में यदि सारा पैसा फसलों की खरीद पर ही खर्च कर दिया जाएगा तो स्वास्थ्य, शिक्षा और देश की सुरक्षा के लिए पैसा कहां से आएगा?

एनसीपी और शिवसेना, दोनों ने इन तीन नए कृषि कानूनों को संसद में 'मौन समर्थन' दिया था। उस समय शिवसेना नेता अरविंद सावंत ने इन कानूनों का विरोध नहीं किया था। उन्होंने सिर्फ यह सुझाव दिया था कि MSP के मुद्दे पर और कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग में किसानों के साथ धोखा न हो। जब सावंत से नए कानूनों के बारे में संसद के बाहर पूछा गया तो उन्होंने कहा था कि अगर कोई नया कानून लाकर अच्छा काम कर रहा है, तो हम उसका विरोध क्यों करें? वही शिवसेना आज भारत बंद के आह्वान का समर्थन कर रही है।

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव को, जो ‘किसान पदयात्रा’ निकालना चाहते थे, पता होना चाहिए कि उनके पिता मुलायम सिंह यादव खुद 2019 में कृषि पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य थे। संसद के पिछले साल के शीतकालीन सत्र में समिति की रिपोर्ट पेश हुई थी जिसमें मुलायम सिंह यादव की टिप्पणी का जिक्र है मुलायम सिंह ने  कहा था कि मंडियों को बिचौलियों के चंगुल से आजाद किए जाने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को इसी का जिक्र करते हुए आरोप लगाया कि जो पार्टियां कृषि सुधारों का विरोध कर रही है, वही संसद की स्थायी समिति की बैठक में उनका समर्थन कर रहे थे। योगी ने साफ कहा कि अब राजनीतिक फायदे की उम्मीद में किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर नरेंद्र मोदी को निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं होगा।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सोमवार को सिंघु बॉर्डर पर 'सेवादार' बनकर किसानों के बीच पहुंचे, उनसे मुलाकात की और नए कृषि कानूनों का विरोध किया। लेकिन उन्होंने किसानों को यह नहीं बताया कि 23 नवंबर को उनकी ही सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को अपने गजट में अधिसूचित करके दिल्ली में लागू कर दिया था।

जिन पार्टियों और नेताओं का मैंने जिक्र किया है, उन्होंने मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों के ज्यादातर प्रावधानों का कभी न कभी समर्थन किया था। जब उन्हें आज यही बात याद दिलाई जाती है तो उनका तर्क होता है कि इन कानूनों को जल्दबाजी में बनाया गया और किसानों से सलाह नहीं ली गई। उनकी मांग है कि इन कानूनों को सेलेक्ट कमिटी के पास भेजा जाना चाहिए था। वे तर्क देते हैं कि इन्हें राज्यसभा में जल्दबाजी में बगैर बहस के क्यों पारित किया गया।

लब्बोलुआब यह है कि चाहे राहुल गांधी हों या शरद पवार, मायावती हों या अखिलेश यादव, ये सभी चुनावों में असफल रहे हैं और वे नरेंद्र मोदी को घेरने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते। उन्होंने विपक्षी दलों का महागठबंधन बनाने की भी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। उन्होंने धार्मिक असहिष्णुता, सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर मोदी को मुस्लिम विरोधी घोषित करके घेरने की कोशिश की, लेकिन इससे भी कोई फर्क नहीं पड़ा।

विपक्ष अब किसानों को मोदी के खिलाफ लामबंद करने और उन्हें इन नए कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर करने की कोशिश कर रहा है। किसानों की भलाई से इन नेताओं को कोई मतलब नहीं है। किसानों को अब यह बात सोचनी होगी कि कहीं उनके आंदोलन को राजनीतिक नेताओं द्वारा हाइजैक तो नहीं किया जा रहा है। किसान नेताओं को इस बात का भी अहसास जरूर होना चाहिए कि कैसे पाकिस्तान और खालिस्तान का समर्थन करने वाले राष्ट्रविरोधी संगठन उनके आंदोलन से फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं।

साफ है कि किसानों के आंदोलन का अब राजनीतिकरण हो चुका है, और विदेशी ताकतें भारत के खिलाफ इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं। ये सभी अंततः राष्ट्रीय हित के लिए हानिकारक साबित होंगे। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 07 दिसंबर, 2020 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement