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RAJAT SHARMA BLOG: तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र को नष्ट कर रही है

इस पर कोई यकीन नहीं करेगा कि राज्य निर्वाचन आयोग को कुछ मालूम नहीं था। ऐसे हालात में राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका संदेह के घेरे में आ जाती है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: April 11, 2018 18:45 IST
Rajat Sharma blog- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV RAJAT SHARMA BLOG: Trinamool Congress is subverting democracy in West Bengal

पश्चिम बंगाल में सभी मुख्य विपक्षी दलों-बीजेपी, सीपीआई (एम) और कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से बलपूर्वक रोककर पंचायत चुनावों को करीब-करीब हाईजैक कर लिया है। पश्चिम बंगाल में 1, 3 और 5 मई को पंचायत चुनाव होने हैं। तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी दलों के आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया है कि ये दल अपनी संगठनात्मक शक्तियों के अभाव में उम्मीदवारों की तलाश में नाकाम रहे हैं। 

हालांकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है। टीएमसी के समर्थकों ने सीपीआई (एम) के दो पूर्व सांसदों पर उस समय बम फेंका जब वे नामांकन दाखिल करने गए थे। एक जिले में टीएमसी समर्थकों ने नामांकन दाखिल करने गए बीजेपी उम्मीदवार पर हमला कर उसकी हत्या कर दी। अधिकांश जिलों में विपक्षी दलों और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो रहे हैं जिससे निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी माहौल बिगड़ रहा है। बीरभूम और मुर्शिदाबाद जिलों में तमाम विपक्षी दलों को किनारे लगाते हुए ज्यादातर पंचायत समिति और जिला परिषद की सीटों पर विपक्षी उम्मीदवारों की गैरमौजूदगी में टीएमसी के उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं। पंचायत चुनाव में जिस तरह विरोधियों को नामांकन दाखिल नहीं करने दिया गया और मारपीट कर भगाया गया, इसकी तस्वीरें टीवी चैनल्स पर दिखाई गईं। एक वीडियो में यह दिखाया गया कि कोलकाता के पास टीएमसी समर्थकों ने बीजेपी उम्मीदवार की बेटी की उस समय पिटाई की जब उसके पिता नामांकन दाखिल करने गए थे।

इस पर कोई यकीन नहीं करेगा कि राज्य निर्वाचन आयोग को कुछ मालूम नहीं था। ऐसे हालात में राज्य निर्वाचन आयोग की भूमिका संदेह के घेरे में आ जाती है। राज्य निर्वाचन आयुक्त ने 9 अप्रैल को नामांकन की आखिरी तारीख एक दिन के लिए बढ़ाई थी लेकिन दबाव में आकर अधिसूचना को कुछ घंटे बाद वापस ले लिया गया। 

राज्य निर्वाचन आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। यह समझा जा सकता है कि सरकार के दबाव में प्रशासन झुक सकता है, अफसर गड़बड़ी कर सकते हैं, पुलिस भी विरोधी पार्टी के नेताओं को परेशान कर सकती है लेकिन अगर चुनाव आयोग भी सरकार के दबाव में आकर विपक्षी कार्यकर्ताओं के साथ हिंसा की घटनाओं को नरजअंदाज करेगा तो ये लोकतंत्र के लिए चिंता की बात है। (रजत शर्मा)

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