7 साल के लंबे अंतराल के बाद यह बात सामने आई है कि उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने अपने एक आवासीय बंगले को कांशीराम स्मारक घोषित कर दिया था। यह काम गोपनीय तरीके से 13 जनवरी, 2011 को उत्तर प्रदेश की कैबिनेट द्वारा किया गया था। बहुजन समाज पार्टी के नेता सतीश मिश्र द्वारा यह बात तब उठाई गई, जब वह बसपा नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ शुक्रवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने पहुंचे।
बहुजन समाज पार्टी के प्रतिनिधिमंडल ने योगी को बताया कि मायवती 13A, मॉल अवेन्यू स्थित इस बंगले के सिर्फ दो कमरों का इस्तेमाल करती हैं। सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का पालन करते हुए 17 मई को पूर्व मुख्यमंत्री के पास बंगला खाली करने का एक नोटिस भेजा गया था, जिसके बाद बसपा ने जल्दबाजी में 21 मई को इसके ऊपर ‘श्री कांशीराम जी यादगार विश्राम स्थल’ नाम से एक साइनबोर्ड लगा दिया।
बसपा नेता सतीश मिश्र ने योगी को यह भी बताया कि मायावती को 6, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग पर स्थित बंगले को खाली करने के लिए अभी तक कोई भी नोटिस नहीं दिया गया है। उन्होंने बताया कि यह बंगला मायावती को पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से दिया गया था। पार्टी ने अनुरोध किया कि मायावती को इस ‘स्मारक’ के दो कमरों में रहने की इजाजत दी जाए, जिसमें दिवंगत कांशीराम से जुड़ी एक लाइब्रेरी, मूर्तियां और अन्य कलाकृतियां मौजूद हैं। पार्टी ने कहा कि यदि दूसरे बंगले को खाली करने का नोटिस जारी किया जाता है, तो इसका पालन किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई को दिए गए अपने एक आदेश में कहा था कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रदेश के 6 पूर्व मुख्यमंत्रियों जिनमें मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, नारायण दत्त तिवारी और मायावती के नाम शामिल हैं, को अवंटित किए गए बंगले खाली कराए जाएं। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि जैसे ही एक मुख्यमंत्री अपना पद छोड़ता है, वह एक आम आदमी के बराबर हो जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह और राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने अपने-अपने बंगलों को छोड़ने का फैसला किया है, जबकि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने इसके लिए 2 साल का समय मांगा है। नारायण दत्त तिवारी की पत्नी उज्जवला ने यह दलील देते हुए बंगला खाली करने के लिए और समय मांगा है कि उनके 92 वर्षीय पति अब अपने जीवन के ‘अंतिम दिन’ बिता रहे हैं। जहां तक कांशीराम स्मारक की बात है, यूपी की कैबिनेट के पास 7 साल पहले लिए गए इस फैसले को पलटने की ताकत है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की भी नजर है, क्योंकि उसे पता है कि नेता जनता के पैसों से बने घरों पर कब्जा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। (रजत शर्मा)