शुक्रवार की रात इंडिया टीवी ने एक विस्तृत रिपोर्ट दिखाई थी जिसमें बताया गया था कि लटयेन्स ज़ोन में रहने वाले हमारे नेता और अफसर किस तरह बंदरों के आतंक का सामना कर रहे हैं। कुछ राजनेताओं ने कैमरे पर बताया कि बंदर कैसे उनका जीवन नरक बना रहे हैं।
मैं बहुत से ऐसे मंत्रियों, सांसदों, ब्यूरोक्रेट्स और जजों को जानता हूं, जो इस इलाके में रहते हैं और बंदरों से परेशान हैं। उन्होंने खुद मुझे बताया है कि कैसे बंदरों को अपने घरों और दफ्तरों से दूर रखना उनके लिए रोज की मुसीबत हो गई है। लेकिन पब्लिक फिगर होने के कारण जगहंसाई के डर से वे अपना दर्द किसी से नहीं कह पाते।
ये बंदर लोगों को काटते हैं, घर के सामान को तोड़ देते हैं और यहां तक कि मेहमानों और अन्य लोगों पर हमला भी कर देते हैं, लेकिन वीवीआईपी अपनी इस समस्या को लेकर सार्वजनिक तौर पर चाहकर भी कुछ नहीं बोल पाते। कुछ साल पहले तक इन बंदरों को भगाने के लिए लंगूर रखे जाते थे, लेकिन उस पर भी पशु प्रेमियों, खासकर मेनका गांधी ने कड़ा ऐतराज जताया था। इसके बाद कुछ नियम बन गए और अब इस इलाके के लोग इन नियमों के चलते कुछ कर भी नहीं सकते।
कुछ नेताओं ने तो बाकायदा ऐसे लोगों की भर्ती की है जो लंगूरों की आवाज निकलकर बंदरों को डराने की कोशिश करते हैं। बंदरों के आंतक का मुद्दा पिछले सेशन में कुछ सांसदों ने बाकायदा राज्यसभा में भी उठाया था, जिसपर चेयरमैन वैंकेया नायडू खुलासा किया था कि वह भी बंदरों से परेशान हैं और उनके घर पर भी बंदरों ने मुसीबत कर रखी है।
अब जबकि संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है, लोकसभा सचिवालय ने बाकायदा सांसदों के लिए बंदरों से बचने के लिए एडवाइजरी जारी की है। इस एडवाइजरी से शायद ही सांसदों को ज्यादा मदद मिल पाए, इसलिए उन्हें मेनका गांधी के पास जाकर समस्या के निदान के लिए मदद मांगनी चाहिए। (रजत शर्मा)
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