राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पू्र्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सात जून को अपने नागपुर स्थित मुख्यालय में आरएसएस स्वयंसेवकों के तीसरे वर्ष के प्रशिक्षण शिविर, संघ शिक्षा वर्ग को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया है। पूर्व राष्ट्रपति ने इस आमंत्रण को स्वीकार कर लिया है और वे आरएसएस के स्वयंसेवकों को संबोधित करेंगे।
आरएसएस के कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी के शामिल होने की खबर से कांग्रेस के कई नेता परेशान हो उठे हैं जो कि संघ को 'विभाजनकारी' संगठन मानते रहे हैं। कांग्रेस नेता और पूर्व रेल मंत्री सीके जाफर शरीफ ने एक चिट्ठी भेजकर प्रणब मुखर्जी से अनुरोध किया है कि वे अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।
प्रणब मुखर्जी देश के सबसे सीनियर नेताओं में से एक हैं। वे बहुत समझदार और अनुभवी हैं। यूपीए शासन के दौरान उन्हें संकटमोचक के तौर पर जाना जाता था। पूर्व राष्ट्रपति का आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होने में मुझे कुछ भी आपत्तिजनक नहीं लगता।
जहां तक कांग्रेस के नेताओं को बुरा लगने का सवाल है तो मैं कांग्रेस के सीनियर नेताओं को आरएसएस से जुड़े कुछ तथ्यों से अवगत कराना चाहूंगा। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान आरएसएस के स्वयंसेवकों ने सिविल डिफेंस (नागरिकों की रक्षा) में अनुकरणीय भूमिका निभाई और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1963 में दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने के लिए एक विशेष दल भेजने की अनुमति दी। महात्मा गांधी ने खुद 1934 में वर्धा स्थित आरएसएस कैंप का दौरा किया था और वहां के अनुशासन की तारीफ की थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में आरएसएस द्वारा किए गए राहत कार्यों की प्रशंसा की थी।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता और लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव ने भी प्रणब मुखर्जी की नागपुर यात्रा पर आपत्ति जताई है। तेजस्वी अभी छोटे हैं और उनमें अनुभव की कमी है। उन्हें मालूम नहीं है कि सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक राम मनोहर लोहिया ने भी आरएसएस का गुणगान किया था। जयप्रकाश नारायण भी आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल हुए थे और स्वयंसेवकों को संबोधित किया था। इसलिए प्रणब मुखर्जी भी अगर आरएसएस के कार्यक्रम में शामिल होते हैं तो इसमें गलत कुछ भी नहीं है। अलग-अलग विचारों के लोग मिलें, अपनी बात कहें और दूसरों की बात सुनें, यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है। (रजत शर्मा)