केंद्र ने गुरुवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से म्यूकरमाइकोसिस, जिसे ब्लैक फंगस के नाम से भी जाना जाता है, को महामारी रोग अधिनियम 1897 के तहत अधिसूच्य बीमारी बनाने का निर्देश दिया। केंद्र का यह निर्देश इस घातक बीमारी से देशभर में 126 लोगों की जान जाने की खबर सामने आने के बाद सामने आया है। देश के विभिन्न राज्यों से अभी तक इस बीमारी के आधिकारिक तौर पर 5,500 मामले सामने आए हैं।
ब्लैक फंगस के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रमुख दवा लिपोसोमल एम्फोटेरिसिन बी की दिल्ली और 9 अन्य राज्यों में भारी कमी देखने को मिल रही है। हालात को देखते हुए केंद्र सरकार ने फार्मा कंपनियों से युद्धस्तर पर इस दवा का उत्पादन बढ़ाने के लिए कहा है। दिल्ली में ब्लैक फंगस से पीड़ित 200 से ज्यादा मरीज अलग-अलग अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं। इन मरीजों में से ज्यादातर 50 साल से ऊपर के हैं। 90 मरीजों की मौत के साथ महाराष्ट्र इस बीमारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य है, इसके बाद हरियाणा में 14 लोगों की जान गई है। इस बीच बिहार की राजधानी पटना में व्हाइट फंगस के मरीज मिलने की खबर सामने आई है।
एम्स द्वारा ब्लैक फंगस रोग का पता लगाने और इसके इलाज के बारे में गाइडलाइंस जारी करने के साथ ही मैंने गुरुवार रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में डॉक्टर निखिल टंडन से इस महामारी से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बात की। डॉ. निखिल एंडोक्रिनोलॉजी, मेटाबॉलिज्म ऐंड डायबिटिज डिपार्टमेंट के हेड हैं और उन्हें फंगल इंफेक्शन का एक्सपर्ट माना जाता है।
इंटरव्यू के दौरान डॉ. टंडन ने कुछ बातें स्पष्ट रूप से कही: नंबर एक, ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस कोई नई बीमारियां नहीं हैं। फंगस हमारे आसपास हमेशा से रहा है, लेकिन पहले इससे जुड़े एक-दो मामले सामने आते थे, लेकिन कोविड-19 के इलाज में स्टेरॉयड्स के इस्तेमाल की वजह से ब्लैक फंगस का फैलाव हुआ। जो लोग डायबिटिज से पीड़ित हैं, जिनकी इम्युनिटी कमजोर है, उन्हें इसका खतरा ज्यादा है। यह ब्लैक फंगस छोटी-छोटी रक्त वाहिकाओं और केशिकाओं पर हमला करता है।
दूसरी बात, यदि इस बीमारी को वक्त रहते पहचान लिया जाए तो मरीज को बचाया जा सकता है। डॉक्टर टंडन ने लोगों को सलाह दी कि खांसी, जुकाम और बुखार जैसे लक्षणों में खुद दवा न लें, क्योंकि सेल्फ मेडिकेशन से ब्लैक फंगस का खतरा बहुत बढ़ जाएगा। दूसरी बात, उन्होंने कहा कि अगर आंख लाल हो, चेहरे पर सूजन आए, दो-दो इमेज दिखें, चेहरे पर स्पॉट्स पड़ें तो इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें। डरना नहीं हैं, लेकिन डॉक्टर के पास तुरंत जाएं और अपनी जांच कराएं। इस बीमारी का इलाज घर में नहीं हो सकता। इस बीमारी का इलाज केवल हॉस्पिटल में हो सकता है। डॉ. टंडन ने यह भी बताया कि लोगों को कोविड-19 से ठीक होने के बाद क्या सावधानियां बरतनी चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों सरकारें अब ब्लैक फंगस नाम की इस बीमारी को लेकर सतर्क हैं और सभी राज्यों को इसकी प्रमुख दवा के पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।
पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में व्हाइट फंगस के मामले सामने आए हैं। इस अस्पताल में ब्लैक फंगस के भी लगभग 50 मरीजों का इलाज चल रहा है। गुरुवार को व्हाइट फंगस के 4 नए मामले सामने आए। व्हाइट फंगस के इन मामलों ने पटना के इस अस्पताल के डॉक्टरों कों चिंता में डाल दिया। यह बीमारी पहले लंग्स और चेस्ट कैविटी पर हमला करती है, औऱ इसके बाद शरीर के अन्य अंगों में फैल जाती है।
हमारे पटना के रिपोर्टर नीतीश चंद्र ने बताया कि व्हाइट फंगस के सभी मरीजों में एक ही जैसे शुरुआती लक्षण देखने को मिले हैं। इन्हें पहले खांसी हुई और फिर बुखार हो गया। जब ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल कम होने लगा, तो HRCT स्कैन किया गया, जिसमें मरीजों के फेफड़ों पर धब्बे नजर आए। इस बीमारी के लक्षण वही हैं जो कोविड-19 के किसी मरीज के होते हैं। लेकिन हैरानी की बात ये थी कि जब इन रोगियों की सारी रैपिड एंटीजेन और RT-PCR रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन फेफड़ों पर दिख रहे धब्बों ने डॉक्टरों को बेहद जरूरी सुराग दे दिए।
इनमें से एक मरीज खुद डॉक्टर थे, इसलिए उन्होंने पहले फंगल इन्फेक्शन के टेस्ट करने के लिए कहा। इसके बाद स्पोटम टेस्ट किया गया, यानी कि बलगम की जांच की गई, कल्चर टेस्ट किया गया. तब उसमें व्हाइट फंगस का पता चला। इसके बाद उन्हें फंगल इन्फेक्शन की दवा दी गई और वह सिर्फ 3 दिन में ही ठीक हो गए। हमारे रिपोर्टर ने इस बीमारी को मात देने वाले डॉक्टर बसंत कुमार से बात की। उन्होंने बताया कि उन्हें पूरा अंदाजा था कि उन्हें फंगल इन्फेक्शन हुआ है। इसलिए जब कोरोना का टेस्ट निगेटिव आया, तो उन्होंने फंगल इन्फेक्शन टेस्ट करवाने पर जोर दिया, और यह बीमारी वक्त पर पकड़ में आ गई।
व्हाइट फंगस एक फंगल इंफेक्शन है, इसे वैज्ञानिक भाषा में कैंडिडोसिस भी कहते हैं और यह मानव शरीर के नम त्वचा वाले भागों में फैलता है। यह सबसे ज्यादा उन लोगों पर अटैक करता है जिनकी इम्युनिटी कम है। यह बीमारी कीमोथेरेपी या एंटीबायोटिक इलाज का एक दुष्प्रभाव भी हो सकती है। फंगस आमतौर पर पानी में, हवा में, जमीन की सतह पर पाई जाती है। छोटे बच्चे जब डायपर पहनते हैं, तो उन्हें रैशेज हो जाते हैं, वहीं कुछ लोगों के मुंह में छाले पड़ जाते हैं। यह सब फंगस की मौजूदगी के चलते ही होता है। इस तरह के फंगल इन्फेक्शन हल्की-फुल्की दवाओं से ठीक हो जाते हैं, लेकिन यदि संक्रमण फेफड़ों तक पहुंच जाए तो मामला घातक हो जाता है। ब्लैक फंगस की तरह व्हाइट फंगस भी उन्हीं लोगों पर सबसे ज्यादा अटैक करता है जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है, या जो डायबिटिज, एड्स या कैंसर से पीड़ित हैं। डॉक्टरों का कहना है कि घर में ऑक्सीजन सिलिंडर का इस्तेमाल करने वाले लोगों द्वारा डिस्टिल्ड वॉटर की जगह नल के साधारण पानी का इस्तेमाल करने से भी ऑक्सीजन लेते समय नाक और गले के जरिए फेफड़ों में फंगस का संक्रमण हो सकता है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस से पीड़ित सभी मरीजों के इलाज के लिए मल्ट-डिसिप्लिनरी अप्रोच की जरूरत है। इस टीम में आंख के सर्जन, ENT स्पेशलिस्ट, जनरल सर्जन और न्यूरो सर्जन समेत कई अन्य एक्सपर्ट डॉक्टर्स होने चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने सभी सरकारी अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और निजी अस्पतालों द्वारा व्हाइट फंगस और ब्लैक फंगस के सभी मामलों की जांच, निदान और प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। दिल्ली, गुरुग्राम, मुंबई, अहमदाबाद, लखनऊ और महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार के अन्य शहरों से नए मामले रोजाना सामने आ रहे हैं।
दिल्ली सरकार ने LNJP, GTB और राजीव गांधी अस्पताल में ब्लैक फंगस के लिए अलग से वॉर्ड बनाने की तैयारी शुरु कर दी है। अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में ब्लैक फंगस के 400 से ज्यादा मरीज भर्ती हैं। लगभग सभी राज्यों में डॉक्टरों और मरीजों को लिपोसोमल इंजेक्शन की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
राज्यों में फंगल इन्फेक्शन के मामले सामने आने के बीच केंद्र ने गुरुवार को कोरोना वायरस के ट्रांसमिशन को लेकर एक अलर्ट जारी किया। भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय ने ‘स्टॉप द ट्रांसमिशन, क्रश द पैंडेमिक’ शीर्षक से एक अडवाइजरी जारी की। इसमें लोगों को आगाह किया गया है कि कोविड-19 से पीड़ित व्यक्ति की छींक से निकलने वाली छोटी बूंदें 2 मीटर के क्षेत्र में गिर सकती हैं और इससे निकलने वाली फुहार (एयरोसोल) 10 मीटर दूर तक जा सकती है।
अडवाइजरी के मुताबिक, ‘हमेशा याद रखें: जिन लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखते, वे भी वायरस फैला सकते हैं। कोविड-19 के वायरस का प्रकोप कम करने में खुली हवादार जगह अहम भूमिका निभा सकती है और एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे में संक्रमण फैलने के खतरे को कम कर सकती है। अच्छे वेंटिलेशन के चलते वायरस को फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है। खिड़कियों और दरवाजों को बंद करके एयर कंडीशनर चलाने से संक्रमित हवा कमरे के अंदर ही रह जाती है और ऐसे में किसी संक्रमित कैरियर से दूसरे में ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ जाता है।’ अडवाइजरी में दफ्तरों, प्रेक्षाग्रहों, शॉपिंग मॉल आदि में गेबल-फैन प्रणाली और रोशनदानों की भी सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है, 'फिल्टरों को लगातार साफ करना चाहिये और जरूरत हो, तो उन्हें बदल देना चाहिए।'
अडवाइजरी में कहा गया है कि जब कोई संक्रमित बोलता, गाता, हंसता, खांसता या छींकता है, तो वायरस थूक या नाक के जरिये हवा में तैरते हुये स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंच जाते हैं। संक्रमण के फैलने का यह पहला जरिया है। ‘एक संक्रमित शख्स द्वारा उत्सर्जित बूंदें विभिन्न सतहों पर गिरती हैं (जहां वे लंबे समय तक जीवित रह सकती हैं)। दरवाजे के हैंडल, लाइट स्विच, टैबलेट, कुर्सियों और फर्श जैसी जगहों, जिन्हें एक से ज्यादा लोग इस्तेमाल करते हैं, को ब्लीच और फिनाइल जैसे कीटाणुनाशक से बार-बार साफ करने की सलाह दी जाती है।’
अडवाइजरी में कहा गया है, अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्तर पर टेस्टिंग और आइसोलेशन को बढ़ाना होगा। किसी इलाके में बाहरी लोगों के प्रवेश से पहले रैपिड एंटीजन टेस्ट करना जरूरी है, और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को भी एन95 मास्क जरूर पहनना चाहिए। केंद्र का लक्ष्य है कि प्रतिदिन कोरोना के 45 लाख टेस्ट किए जाएं। रैपिड एंटीजन किट खरीदने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। इससे कोविड-19 से संक्रमित लोगों का जल्द पता लगाने और उनका इलाज करने में मदद मिलेगी।
ये बात सही है कि देश में पिछले हफ्ते तक हालात बहुत खराब थे और महामारी की दूसरी लहर में लोगों ने बहुत दुख झेले। इन डेढ़ महीनों के दौरान ऑक्सीजन सप्लाई और ऑक्सीजन सिलिंडर की भारी कमी थी। लोगों को अस्पताल में बेड और आईसीयू वेंटिलेटर की तलाश में दर-दर भटकना पड़ा। लोगों को श्मशान घाट के बाहर अपने प्रियजनों के दाह संस्कार के लिए लंबी कतारों में इंतजार करना पड़ा। लेकिन अब हालात थोड़े बेहतर हुए हैं। अस्पताल में बेड की कोई कमी नहीं है। अधिकांश अस्पतालों में अब बेड उपलब्ध हैं। भारतीय रेलवे, भारतीय वायु सेना और नौसेना द्वारा किए गए अथक प्रयासों की बदौलत अब ऑक्सीजन भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। सेना और अर्धसैनिक बलों ने जरूरतमंदों के इलाज के लिए कोविड अस्पताल बनाए हैं।
कोरोना के मामलों में कमी आई है लेकिन इसके साथ-साथ हम सबकी जिम्मेदारी और बढ़ गई हैं। अब हम सबको इस बात के लिए कमर कसनी है कोरोनो को फिर सिर ना उठाने दें। इसलिए जरा भी शक हो तो टेस्ट कराना जरूरी है, आइसोलेशन जरूरी है। लेकिन ध्यान रहे सेल्फ मेडीकेशन बिल्कुल न करें। ये खतरे को कई गुना बढ़ाता है। और सबसे जरूरी बात, मास्क आपका कवच है और इसे हल्के में न लें। बेहतर होगा कि डबल मास्क पहनें जिससे आपकी नाक और मुंह पूरी तरह से ढके हों। आप बचे रहेंगे तभी देश भी बचा रहेगा। अगली सबसे जरूरी चीज वैक्सीनेशन है। हर भारतीय का टीकाकरण जरूरी है। इस समय वैक्सीन की कमी भले ही हो, लेकिन केंद्र सरकार ने कहा है कि अगले महीने से वैक्सीन की ज्यादा डोज उपलब्ध होंगी। अगले तीन महीनों में वैक्सीनेशन तेज होगा। जब तक कम से कम 70 पर्सेंट लोगों का वैक्सीनेशन नहीं हो जाएगा तब तक कोरोना से जंग जारी रहेगी। (रजत शर्मा)
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